वन्य प्राणियों की सुरक्षा या नुमाइश के नाम पर आर्थिक व्यवस्था
अलताफ़ हुसैन
रायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) छ्ग प्रदेश के वन क्षेत्रों में वन्य प्राणियों की स्थिति बड़ी दयनीय पहुँच चुकी है आए दिन शिकारियों द्वारा भिन्न भिन्न माध्य्मो से उनके शिकार प्रकरण की घटना के मामले समाचार पत्र की सुर्खियां बटोर रही है अब चाहे गरियाबंद मैनपुर,वन क्षेत्र हो या जगदलपुर बस्तर क्षेत्र हो, या फिर धमतरी, बलौदा बाजार,कोरबा, सूरजपुर,अंबिकापुर, या बार नवापारा अभ्यारणय एवं प्रदेश के किसी भी वन क्षेत्र क्यों न हो आए दिन किसी न किसी शिकार की घटना घटित होते रहती है जब यह समाचार लिखा जा रहा होगा उस समय भी प्रदेश के वन क्षेत्र के किसी हिस्से में कही न कहीं किसी वन्य प्राणी को काल कल्वित कर ने की व्यवस्था शिकारियों द्वारा की जा रही होगी
*प्राणियों के अस्तित्व का हरण, या मरण*
यही वजह है कि प्रदेश भर में वन्य प्राणियों की सांख्यिकी स्थिति का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है गिनें चुनें दुर्लभ वन्य प्राणी अपनी जी जान के साथ अपने अस्तित्व बचाने जद्दो जहद में भागा भागा यहाँ से वहाँ भटक रहा है इस संदर्भ में एक पुरानी उक्ति का स्मरण हो रहा है,,वन का श्रृंगार वन्य प्राणी होते है परंतु यह उक्ति मिथ्या साबित हो रही है अर्थात वन्य प्राणियों जो श्रृंगारित आभूषण रूपी माने जाते है उनके रूप अस्तित्व का हरण कर उन्हे मरण अवस्था मे पहुंचाया जा रहा है इस विकृत कार्य में कुछ तो मानव समाज एवं कुछ हिंसक वन्य प्राणियों द्वारा किया जा रहा है एक प्रकार से वन विभाग वन एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण, संवर्धन वाली बात कपोल कल्पित एवं खोखली साबित हो रही है लगातार वन एवं वन्य प्राणियों के विदोहन से इनके रहवास क्षेत्र पर उनकी उपस्थिति से मानव समाज उन्हे बेदखल करने जी तोड प्रयास कर रहा है निर्भय रह कर अरण्य क्षेत्र वन्य प्राणियों का आदि काल से रहवास रहा है मानव दखला एवं कांक्रिटिकारण, के चलते घटते वन की परिस्थिति किसी से छिपी नही है उस पर राजनीतिक दलों द्वारा वोटों को साधने की मंशा के चलते कोई भी सरकार द्वारा वन वासियों और वन आदिवासियों के पुनर्वास उत्थान का लाभ देने के चक्कर में अनेक गैर वन वासियों द्वारा वनों के मौलिकता को छिन्न भिन्न कर घर,फार्म हाउस, होटल मोटल जैसे निर्माण के मध्यम से वनों में अतिक्रमण एवं शेष वन क्षेत्र के अनगिनात् पेड़ पौधों का विदोहन कर चटियल मैदान के रूप मे परिवर्तित कर उस भूमि पर खेत खलिहान बना दिया गया जिसकी वजह से वनों का रकबा लगातार सिमटता चला जा रहा है इसके दुष्परिणाम यह आया कि आशान्वित मौसम जलवायु परिवर्तन तो हुआ ही साथ ही वन्य प्राणियों के समक्ष दाना, खाना पानी के लिए यत्र तत्र भटकना पड़ा यही वजह है कि शिकारियों को इनका शिकार करने सहजता से अवसर मिलने लगा भूख प्यास की क्षुधा शांति के लिए उन्हे ग्राम शहर की ओर कुच करना पड़ा जहां मानव समाज, पालतू श्वान सहित अन्य प्राणियों द्वारा इनका शिकार किया जाने लगा घटना दुर्घटना से इनकी अकाल मृत्यु होने लगी घायल और चोटिल होने की अवस्था में उन्हे उपचार हेतु प्रदेश मे स्थित एक मात्र ऐसे मानव निर्मित जंगल सफारी एवं नंदन वन का सहारा लिया गया जहाँ कुछ तो उपचार में ही दम तोड़ दिया गया तो कुछ तो स्वस्थ्य होने पर उक्त मूक निरह वन्य प्राणियों की नुमाइश कर प्रदेश वन विभाग द्वारा आर्थिक लाभ उठाने नई योजनाएं बनाने लगा इनके दुर्लभ दर्शन लाभ के एवज में विभाग को लाखों का लाभ प्रति माह मिलने लगा मानव निर्मित जंगल सफारी नंदन वन में अवसर का लाभ उठाने नई नई योजनाओं का क्रियानव्यन किया जाने लगा उनके सुरक्षा, खान पान, उपचार की जगह निर्माण कार्यों को बहुत अधिक तरजीह दी जाने लगी
*खानपान,चारा के नाम पर गड़बड़ी*
शाकाहारी वन्य प्राणियों को दो टाइम हरी घास फुस, एवं मांसाहारी वन्य प्राणियों को चिकन, वरह (सुअर), मछली, इत्यादि डाइट दिया जाता है जिसकी वजह से अरुचि कर भोजन से उनके स्वस्थ्य पर विपरीत प्रभाव दिखने लगता है जबकि बहुत से शाकाहारी वन्य प्राणी जो प्राकृतिक रूप से घास फुस, फल, वनस्पति,का मन माफिक सेवन किया करते थे वही माँसाहारी वन्य प्राणी वनों मे रहने वाले छोटे बड़े प्राणियों का शिकार करके माँस भक्षण करते थे तब उनके स्वस्थ्य पर कोई भी विपरित प्रभाव नही पड़ता था परंतु जब से मानव द्वारा दिए जाने वाले खाद्य वस्तुएँ परोसे जाने लगी तब से वे असमय काल की ओर शनैः शनैः बढ़ते जा रहे है जंगल सफारी मे विगत दो वर्षों में अब चाहे कौसिंगा हो या फिर बस्तर क्षेत्र से लाए गए टाइगर हो, या हाल ही हिमालयान भालू को जंगल सफारी पहुँचते ही मौत हो गई स्थानीय किसी जिले मे शिकारियों द्वारा निकाले गए भालू के पंजो के नाखून या फिर सफारी के टाइगर के नवजात शावक हो वे सब गलत खान पान, चारा पानी,एवं गलत उपचार,,या ऋतु परिवर्तन मे जैसे भीषण गर्मी या सर्वाधिक शीत ऋतु की मार में परलोक सिधार गए जंगल सफारी, नंदन वन, के लिए ग्रीष्म ऋतु में वन्य प्राणियों की ठंडक लाने करोड़ों का बजट शासन ने जारी किया गया जंगल सफारी, नंदन वन,बार नवापारा अभ्यारणय में असंख्य पर्यटकों से विभाग को लाखों करोडो रुपये का आर्थिक लाभ देने वाले वन्य प्राणियों की देख रेख, समुचित खानपान, सुरक्षा स्थिति कितनी बेहतर है यह उन्हे दिये जा रहे डाइट, स्वछन्द विचरण करने वाले वन्य प्राणियों को जेल नुमा कैदी के मानिंद रहवास से ही इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि उनकी स्थिति किन परिवेश में निर्वहन हो रही है
यही नही जंगल सफारी के अंदरखाने से यह बात भी छन कर सामने आई है कि पूर्व में हिंसक प्राणियों को बकरे का ताजा मटन दिया जाता था परंतु हाल ही मे बलौदा बाजार गए डी.एफ.ओ. ने तो पूरी व्यवस्था ही बदल दी जाने के पूर्ब उन्होंने वरह (सुअर) माँस जो सस्ता सुलभ मिलता है उसे मांसाहारी वन्य प्राणियों को दिए जाने की निविदा पारित कर नया डाइट चार्ट जारी करवा दिया जिसके चलते कुछ माह पूर्व तीन नन्हे शावक की अकाल मृत्यु हो गई बताते चले पालतू सुअर जो रोगाणु,एवं कीटाणु युक्त खाद्य वस्तु बताया जाता है ग्रीष्म ऋतु मे स्वाइन फ्लू, मुर्गी, चिकन से गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस)जैसे जानलेवा बीमारी के फैलने की आशंका बड़ जाती है यह मानव सहित वन्य प्राणियों के लिए स्वस्थ्य के लिए काफी घाताक होता है जबकि वैसे ही तालाब भराव क्षेत्र मे मच्छरों के काटने से भी मानव सहित जीव जंतु वन्य प्राणियों पर इसके दुष्परिणाम आते है उसी प्रकार मगरमच्छ घड़ियाल को दी जाने वाली बांध से निकाली गई ताजा मछली नही होना भी बताया जाता है वैसे ही चिकन जैसी खाद्य भी तेजी से रोग फैलने वाले मांसाहारी प्राणियों को दिया जाता है जिसके दुष्परिणाम में अन्य प्राणी संक्रमित हो कर मृत हो सकते है हाल ही प्रकाशित समाचार पत्रों की माने तो उपचार के नाम पर एक्सपायरी दवाई की वजह से अनेक वन्य प्राणी मारे जा चुके है इन सब का जिम्मेदार कौन है ? जंगल सफारी प्रबंधन को इन सब से कोई लेना देना नही उन्हे तो सिर्फ कार्य लगाने वाले ठेकेदार एवं वन कर्मी जो उन्हे आर्थिक लाभ दे सके एवं उनकी जेब गर्म कर सके उस पर अधिक ध्यान दिया जाता है कुछ जंगल सफारी कर्मियों ने नाम न छापने की शर्त पर यह भी बताया है कि जंगल सफारी मे पांच अलग अलग बैंक खाते खोले गए है जिसमे बहुत बड़ा खेल हो रहा है गड़बड़ घोटाला,भ्रष्टाचार के लिए ई कुबेर में सीधे आहरण न करके ठेकेदार, प्राथमिक वन समिति,वन प्रबन्ध समिति, महिला समूह, स्व सहायता समूह, एन.जी.ओ. सेवा समितियों जैसी संस्थाओं से अलग अलग बैंक अकाउंट के मध्यम से गड़बड़ झाला,और घोटाले को अंजाम दिया जा रहा है बाहरहाल, वन्य प्राणियों की मौत पर एक ही रटा रटाया शब्द वन कर्मियों का रहता है कि प्रकृति रूप से मृत वन प्रणियों को हम कैसे बचा सकते है? जब वे उनकी सुरक्षा स्वास्थ्य खान पान, उपचार, प्रबन्धन उचित ढंग से नही कर सकते तो उन्हे उनके मूल रहवास वनक्षेत्र मे प्राकृतिक, एवं स्वतंत्र रूप से सुरक्षात्मक दृष्टि कोण से निर्भय होकर जीवन निर्वाहन करने क्यों नही दिया जाता ? जबकि ग्रीष्म ऋतु में जंगल सफारी के वन्य प्राणी नंदन वन के पक्षी व्याकुल स्थिति में बैचेन जीवन बसर कर रहे है जो एक प्रकार से बंधक कारी जीवन एवं वन्य क्रूरता अधिनियम के तहत माना जाता है जबकि छ्ग वन विभाग ने हाल ही कुछ वर्षों पूर्व में लोगों द्वारा तोता, बर्ड,पाले जाने पर वन अधिनियम की तहत पक्षियों को क्रूरता की क्ष्रेणी मे रख उन्हे आम लोगों से रिहा करने का फरमान जारी किया गया था ? तो फिर वन्य प्राणियों को नंदन वन, जंगल सफारी, चिड़िया घर जैसे सुसज्जित क्षेत्र का निर्माण कर आम जन के समक्ष नुमाइश, प्रदर्शन कर आर्थिक लाभ क्यों ?
*बारनवापारा अभ्यारण्य, इंदिरा स्मृति वन मोहरेंगा यानी जंगल में मंगल*
यह स्थिति तो मानव निर्मित जंगल सफारी की तो है ही मगर प्राकृतिक वन क्षेत्र बार नवापारा अभयरणय की स्थिति तो और भी अधिक चिंता जनक बताई जाती है वन्य प्राणियों की सुरक्षा के नाम पर बार वन अभ्यारण्य क्षेत्र में कोई पुख्ता इंतजाम नही है वी.आई.पी.वी.वी.आई.पी.आगमन पर उनकी आवभगत,तिमारदरी में सारे वन कर्मी तैनात रहते है यही वजह है कि वहाँ शिकार स्थानीय ग्राम वासियों के सहयोग से कब किया जाता है ज्ञात ही नही हो पाता इस पर ग्रीष्म ऋतु दावनाल में कितने वन्य प्राणी स्वाह हो जाते है उसका कोई आंकडा भी नही चोरी छुपे शिकार के संदर्भ में बार अभ्यारणय के वन कर्मियों की संलिप्तता भी बताई जाती है जिसका उदाहरण कुछ वर्ष पूर्व वन ग्राम सिनोधा में एक प्रकरण मे बाल, खाल, के साथ अन्य अपराधियों में एक वन कर्मी की भी गिरफ़्तारी हुई थी इससे ज्ञात होता है कि बार नवा पारा अभयारणय में शिकार अब भी निर्बाध गति से जारी है इसकी वजह से वन्य प्राणियों की संख्या नगण्य हो चुकी है बताते चले कि बार नवापारा अभ्यारणय में काले श्याम हिरण जिसे वर्ष 2022-2023 में
अर्थात कृष्ण मृग को दिल्ली ज़ू सहित बिलासपुर के कानन पेंडारी से मंगवाया गया था जिनकी संख्या उस समय सत्तर बताई गई थी लगभग तीन वर्षों मे उसकी संख्या दो गुना से अधिक वृद्धि हो जानी चाहिए थी परंतु वर्तमान में काले श्याम हिरण कितने है इसकी संख्या कोई भी बार वन कर्मी बताने से बचता है परंतु तुर्रा इस बात का जोर शोर से प्रचारित किया जाता है कि काले हिरण बार अभ्यारण्यय मे है यानी एक प्रकार से.....जंगल में मोर नाचा...किसी ने न देखा... वाली उक्ति चरितार्थ होते नज़र आ रही है यही नही तेंदुआ,लोमड़ी, लकडबग्धा,कोटरी,हिरण,गौर, चीता जैसे वन्य प्राणियों की जन संख्या कितनी है अब तक स्पष्ट नही है राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड को प्रति वर्षों की संख्या बताना अवश्य होता है फिर भी उनकी संख्या स्पष्ट नही इसका मतलब स्पष्ट है कि बार नवापारा अभयरणय मे वन्य प्राणियों की स्थिति में कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है या फिर पूरी दाल ही काली है वन्य प्राणी गौर जो बार अभ्यारणय में बहुतायात में दिखाई देते थे वह भी शावक और कुछ युवा गौर कही कहीं गिनती की संख्या मे यदा कदा परिलक्षित हो जाते है वन्य प्राणियों में इतनी कमी क्यों? जबकि होना यह था कि बढ़ते क्रम में प्रति वर्ष वन्य प्राणियों की संख्यिक गणना कर सुवाच्य शब्दों में बोर्ड में अंकित कर सार्वजनिक किया जाना चाहिए था ताकि प्रति वर्ष इनकी संख्या का सही आंकलन किया जा सके एवं उनके संवर्धन पर योजनाएं बनाई जा सके इसके उलट यह हो रहा है कि वन्य प्राणियों की संख्या मे इजाफा होना तो दूर साथ साथ वन क्षेत्र भी चटियल मैदान में तब्दील होते जा रहे है
*मोहरेगा इंदिरा स्मृति वन उपेक्षित*
खरोरा स्थित इंदिरा स्मृति वन मोहरेंगा में कुछ वर्ष पूर्व हिरण बरदी के बरदी झुंड में विचरण करते आसानी से सड़क से दिखाई दे जाते थे परंतु वर्तमान में उसके दर्शन के लिए नजरें उत्साह पूर्वक यहाँ वहाँ ढूंढती है वहाँ भी कोटेज एवं पगोडे निर्माण किया जा रहा है ताकि पर्यटकों को पूरी सुख सुविधा देकर प्रोत्साहित किया जा सके भले ही वर्तमान मे वन्य प्राणी के नाम पर कुछ हिरण,जंगली वराह के अलावाअन्य वन्य प्राणी हो या न हो फिर भी पूर्व में नरवा प्रोजेक्ट के अलावा वर्तमान मे कॉटेज,पगोडे का निर्माण कार्य द्रुत गति से अंतिम चरण मे संपादित किया जा रहा है इसके पश्चात पुनः वन्य प्राणियों को रखने नवीन योजनाएं क्रियान्वित् किया जाएगा और वन्य प्राणियों के दर्शनार्थ फिर से आर्थिक लाभ का मध्यम बना कर निरह वन्य प्राणियों पर बंधक बना दिया जाएगा इस प्रकार विलुप्त वन्य प्राणियों का संरक्षण संवर्धन संभव हो सकेगा ?
*सिमटते वन घटते वन्य प्राणी*
लगातार वनों का विदोहन से भले ही हम अपने आप को आशान्वित करते रहे कि प्रदेश का वन क्षेत्र चालीस प्रतिशत है परंतु सही मायनों में इसका रकबा तीस से बतीस प्रतिशत पहुँच गया है जगदलपुर, बस्तर, जशपुर, अंबिकापुर, कोरबा, धमतरी, बलौदा बाजार मोहला, जैसे सघन बाहुल वन क्षेत्र पूरी तरह उजड़ा चमन बन चुका है लगातार वन कर्मियों और काष्ठ माफियाओं की सांठ गांठ, मिलीभगत से शासन को प्रति वर्ष करोडो, रुपये काष्ठ की क्षति हो जाती है डिपो और काष्ठागार मे नीलामी का आर्थिक लाभ का एक हिस्सा शासन को जाता है तो दो गुना राशि परस्पर बन्दर बांट हो जाती है इस मामले मे गरियाबंद काष्ठागार का नाम शीर्ष पर लिया जाता है जहाँ सात, आठ वर्षों से अधिक एक ही स्थान पर गरियाबंद डिविजन में अंगद की पांव की तरह पैर जमाए हुए एस डी ओ का नाम बहुत चर्चा मे है सेवा काल का प्रारंभिक दौर महासमुंद, बार नवापारा बागबाहरा के बड़े बड़े गड़बड़ी, घोटाला करने वाले किस्से आज भी लोग चटकारे ले कर बताते है तत्कालिक परिक्षेत्राधिकारी बागबाहरा में रहते हुए वनोंपज सहकारी प्रबन्धन समिति के पचासों लाखों के घोटाले की गूंज विधान सभा मे तत्कालिक विधायक द्वारा उठाया जा चुका है इन सब के बावजुद् वे गरियाबंद में अजगर के मानिंद शिकार निगल कर सुस्त अवस्था में अब भी जमे हुए है
अब वह ट्रक कब कब कहा जा रहे है यह किसी को ज्ञात नही वही बार अभ्यारण्य के भीतर वन क्षेत्रों से भी काष्ठ परिवहन किये जा रहे है इस प्रकार हजारों, लाखों घन मीटर सिर्फ बार नवापारा अभ्यारण्य से ही काष्ठों का परिवहन वर्षों से हो रहा है अब उस परिस्थिति में वनों और वन्य प्राणियों की क्या स्थिति होगी उजड़े वनों में क्या वन्य प्राणियों की एक सीमित दायरे में अपना जीवन निर्वहन कर सकेंगे?विचारणीय तथ्य है कि जब जंगल से प्राकृतिक पेड़ पौधे नही होंगे तब वन्य प्राणियों का औचित्य क्या ? इन परिस्थिति में वन्य प्राणियों के प्रदर्शनी हेतु, जंगल सफारी, नंदन वन, अभ्यारण्य, चिड़िया घर, जैसे छोटे छोटे रहवास वन क्षेत्र का निर्माण कर वन विभाग सभी वन क्षेत्रों का अपनी आर्थिक स्त्रोत सुदृढ़ता का मार्ग प्रशस्त करेगा या फिर शेष वन क्षेत्रों के काष्ठों का दोहन कर किस प्रकार वनों और वन्य प्राणियों की सुरक्षा तय करेगा. यह सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है.











