शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

अलबेले कलाकार थे भगवान दादा

भगवान दादा ऐसे अलबेला सितारे थे, जिनसे महानायक अमिताभ बच्चन सहित आज की पीढ़ी तक के कई कलाकार प्रभावित और प्रेरित हुए। इन कलाकारों के अभिनय और खास तौर पर डांस के स्टेप्स में भगवान दादा की छाप साफ नजर आई।
भगवान दादा का जीवन और फिल्मी करियर जबरदस्त उतार चढ़ाव से भरा रहा लेकिन यह कलाकार सिनेमा के इतिहास में अपनी खास जगह रखता है। एक मिल के श्रमिक के घर एक अगस्त 1913 को पैदा हुए भगवान दादा यानी भगवान आभाजी पालव की आंखों में बचपन से फिल्मों के रूपहले परदे का सम्मोहन था। उन्होंने अपने जीवन की शुरूआत श्रमिक के रूप में की लेकिन फिल्मों के आकर्षण ने उन्हें उनके पसंदीदा स्थल तक पहुंचा दिया। भगवान मूक फिल्मों के दौर में ही सिनेमा की दुनिया में आ गए। उन्होंने शुरूआत में छोटी-छोटी भूमिकाएं की। बोलती फिल्मों का दौर शुरू होने के साथ उनके करियर में नया मोड़ आया। भगवान दादा के लिए 1940 का दशक काफी अच्छा रहा। इस दशक में उन्होंने कई फिल्मों में यादगार भूमिकाएं की। इन फिल्मों में बेवफा आशिक, दोस्ती, तुम्हारी कसम, शौकीन आदि शामिल हैं। अभिनय के साथ ही उन्हें फिल्मों के निर्माण निर्देशन में भी दिलचस्पी थी। उन्होंने जागृति मिक्स और भगवान आटर््स प्रोडक्शन के बैनर तले कई फिल्में बनाई जो समाज के एक वर्ग में विशेष रूप से लोकप्रिय हुई। इन फिल्मों में मतलबी, लालच, मतवाले, बदला आदि प्रमुख है। दिलचस्प बात यह है कि उनकी अधिकतर फिल्में कम बजट की तथा एक्शन फिल्में होती थी।
भगवान दादा की फिल्मों में गहरी समझ तथा प्रतिभा को देखते हुए राजकपूर ने उन्हें सामाजिक फिल्में बनाने की राय दी। भगवान ने उनके मशवरे को ध्यान में रखते हुए अलबेला फिल्म बनाई। इसमें भगवान के अलावा गीता बाली की प्रमुख भूमिका थी। इस फिल्म के संगीतकार सी रामचंद्र थे और उन्होंने ही इसमें चितलकर के नाम से पा‌र्श्व गायन भी किया। अलबेला फिल्म अपने दौर में सुपर हिट रही और कई स्थानों पर इसने जुबिली मनाई। इस फिल्म के संगीत का जादू सिने प्रेमियों के सर चढ़ कर बोला। इसका एक गीत शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के.. आज भी खूब पसंद किया जाता है। अलबेला के बाद भगवान दादा ने झमेला और लाबेला बनाई लेकिन दोनों ही फिल्में नाकाम रहीं और उनके बुरे दिन शुरू हो गए। कर्ज से बेहाल भगवान दादा को बाद में अपना बंगला और गाडि़यां बेचनी पड़ीं और रहने के लिए चाल की शरण लेनी पड़ी।
कभी सितारों से अपने इशारों पर काम कराने वाले भगवान दादा का करियर एक बार जो फिसला तो फिर फिसलता ही गया। आर्थिक तंगी का यह हाल था कि उन्हें आजीविका के लिए चरित्र भूमिकाएं और बाद में छोटी-मोटी भूमिकाएं करनी पड़ी। बदलते समय के साथ उनके मायानगरी के अधिकतर सहयोगी उनसे दूर होने लगे। सी रामचंद्र, ओम प्रकाश, राजिन्दर किशन जैसे कुछ ही मित्र थे जो उनके बुरे वक्त में उनसे मिलने चाल में भी जाया करते थे। हिन्दी सिनेमा में अभिनय और नृत्य की नई इबारत लिखने वाला यह कलाकार चार फरवरी 2002 को 89 साल की उम्र में अपना दर्द समेटे हुए बेहद खामोशी से इस दुनिया को विदा कह गया।

अलबेले कलाकार थे भगवान दादा

हिन्दी फिल्मों में नृत्य की एक विशेष शैली की शुरूआत करने वाले भगवान दादा ऐसे अलबेला सितारे थे, जिनसे महानायक अमिताभ बच्चन सहित आज की पीढ़ी तक के कई कलाकार प्रभावित और प्रेरित हुए। इन कलाकारों के अभिनय और खास तौर पर डांस के स्टेप्स में भगवान दादा की छाप साफ नजर आई।
भगवान दादा का जीवन और फिल्मी करियर जबरदस्त उतार चढ़ाव से भरा रहा लेकिन यह कलाकार सिनेमा के इतिहास में अपनी खास जगह रखता है। एक मिल के श्रमिक के घर एक अगस्त 1913 को पैदा हुए भगवान दादा यानी भगवान आभाजी पालव की आंखों में बचपन से फिल्मों के रूपहले परदे का सम्मोहन था। उन्होंने अपने जीवन की शुरूआत श्रमिक के रूप में की लेकिन फिल्मों के आकर्षण ने उन्हें उनके पसंदीदा स्थल तक पहुंचा दिया। भगवान मूक फिल्मों के दौर में ही सिनेमा की दुनिया में आ गए। उन्होंने शुरूआत में छोटी-छोटी भूमिकाएं की। बोलती फिल्मों का दौर शुरू होने के साथ उनके करियर में नया मोड़ आया। भगवान दादा के लिए 1940 का दशक काफी अच्छा रहा। इस दशक में उन्होंने कई फिल्मों में यादगार भूमिकाएं की। इन फिल्मों में बेवफा आशिक, दोस्ती, तुम्हारी कसम, शौकीन आदि शामिल हैं। अभिनय के साथ ही उन्हें फिल्मों के निर्माण निर्देशन में भी दिलचस्पी थी। उन्होंने जागृति मिक्स और भगवान आटर््स प्रोडक्शन के बैनर तले कई फिल्में बनाई जो समाज के एक वर्ग में विशेष रूप से लोकप्रिय हुई। इन फिल्मों में मतलबी, लालच, मतवाले, बदला आदि प्रमुख है। दिलचस्प बात यह है कि उनकी अधिकतर फिल्में कम बजट की तथा एक्शन फिल्में होती थी।
भगवान दादा की फिल्मों में गहरी समझ तथा प्रतिभा को देखते हुए राजकपूर ने उन्हें सामाजिक फिल्में बनाने की राय दी। भगवान ने उनके मशवरे को ध्यान में रखते हुए अलबेला फिल्म बनाई। इसमें भगवान के अलावा गीता बाली की प्रमुख भूमिका थी। इस फिल्म के संगीतकार सी रामचंद्र थे और उन्होंने ही इसमें चितलकर के नाम से पा‌र्श्व गायन भी किया। अलबेला फिल्म अपने दौर में सुपर हिट रही और कई स्थानों पर इसने जुबिली मनाई। इस फिल्म के संगीत का जादू सिने प्रेमियों के सर चढ़ कर बोला। इसका एक गीत शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के.. आज भी खूब पसंद किया जाता है। अलबेला के बाद भगवान दादा ने झमेला और लाबेला बनाई लेकिन दोनों ही फिल्में नाकाम रहीं और उनके बुरे दिन शुरू हो गए। कर्ज से बेहाल भगवान दादा को बाद में अपना बंगला और गाडि़यां बेचनी पड़ीं और रहने के लिए चाल की शरण लेनी पड़ी।
कभी सितारों से अपने इशारों पर काम कराने वाले भगवान दादा का करियर एक बार जो फिसला तो फिर फिसलता ही गया। आर्थिक तंगी का यह हाल था कि उन्हें आजीविका के लिए चरित्र भूमिकाएं और बाद में छोटी-मोटी भूमिकाएं करनी पड़ी। बदलते समय के साथ उनके मायानगरी के अधिकतर सहयोगी उनसे दूर होने लगे। सी रामचंद्र, ओम प्रकाश, राजिन्दर किशन जैसे कुछ ही मित्र थे जो उनके बुरे वक्त में उनसे मिलने चाल में भी जाया करते थे। हिन्दी सिनेमा में अभिनय और नृत्य की नई इबारत लिखने वाला यह कलाकार चार फरवरी 2002 को 89 साल की उम्र में अपना दर्द समेटे हुए बेहद खामोशी से इस दुनिया को विदा कह गया।

बुधवार, 5 अगस्त 2009

mahgi daal aur sasta chaval

दाल रोटी खाओ ...परभू के गुण गाओ ..ये गीत सुन के हर गरीब आदमी खुश होता था की चलो हम कम से कम इस देश में रहते हुए दाल रोटी नसीब तो हो ही जाती है मगर अब तो दिन -ब- दिन सुरसा की भांति बढ रही महगाई ने तो अब लोगों की दाल भी पतली कर रखी है एक गरीब आदमी दिन भर की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद कम से कम दाल रोटी का जुगाड़ तो कर ही लेता था मगर जिस दिन से दाल का भाव ९०....से १०० रूपये तक पहुँची है ये आम आदमी के पहुँच से दूर हो हो गई है वही हमारी सरकार ने अत्यन्त गरीब आदमी के लिए १ रूपये चांवल और मात्र गरीब के लिए दो किलो दाल तो कर दिया मगर वही आम आदमी के लिए दाल का भाव एकदम आसमान छूने से उसका बजट भी गडबडा दिया है इसके पीछे भी कई तर्क वितर्क पेश किए जा रहे है की गरीब और मजदूर तबका जो दिन भर की मेहनत के पश्चात् शम्म के मौसम में ५० से १०० रूपये मात्र दारू पिने में व्यय कर देता है मगर वह दाल खरीदने में ५० रूपये खर्च नही कर सकता ?क्यों ? वही अन्य लोगों का तर्क है की शासन ने गरीब परिवार के लिए यह सुविधा दी है जो काफी सराहनीय है परन्तु इसका साइड इफेक्ट अलग हो रहा है ....जो कम गार व्यक्ति था उसे जब मात्र १-२ रूपये मूल्य पर चावल और मुफ्त में नमक तथा २ रूपये में गेहूं मिल जाएगा तो वह कमाने ही क्यों जाएगा इस से लोगों में आलस्य पैदा हो रही है तथा अपने कार्यों के प्रति उदासीन हो गए है
वहीं दूसरा तर्क यह प्रस्तुत किया जाता है की एक और शासन ने गरीब वर्ग के उत्थान के लिए जन कल्याण कारी योजनाये बना इ है वह सराहनीय है परन्तु इसके साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए की इसका परभाव कहाँ तक कहाँ तक कारगर है एक और तो गरीब मजदूर तबके के उत्थान के लिए सरकार कतिबद्छ है वही सरकार इस आयोजन कों सफल बनाने में ऍम आदमी कों निशाना बना रही है यही कारन है की आज की दिन ब दिन बढ रही महंगाई जिसमे दाल भी एक महत्व पूर्ण आहार है कों ठीक कई गुना बड़ा कर शासन के नाक के नीछे बेचीं जा रही है वहीं व्यापारियों का तर्क यह है की अन्य परदेशों से आयातित दालों का उत्पादन कम हुआ है जिसकी वजह से दालों के रेट में कई गुना इजाफा हुआ है
अब सरकार कों चाहिए की इस तरह दिन ब दिन बढ रही महंगाई कों मद्दे नज़र रखते हुए कम से कम दालों के रेट में अंकुश लगाये ताकि आम आदमी इसका उपयोग सही दंग से कर सके ताकि देश के ऐसे आम तबका कम से कम आर्थिक रूप से टूटने से बच जाए ..जहाँ गरीबों कों १ रूपये चावल और दो रूपये में गेंहू पर्दान किया जा रहा है उसी तरह ऍम आदमी का बजट का ख्याल रखते हुए कुछ रियायत पर्दान की जानी चाहिय और रहा गरीबों का चावल और गेहूं तो उसका वितरण प्रणाली में व्यापक सुधर की आवश्यकता है क्युकी यदि इस तरह का वितरण पर्नाली जारी रहा तो वाकई में एक दिन परदेश की आध्ही जनता आलस्य हो जायेगी और काम धाम से किसी कों कोई वास्ता नही रहेगा इस और शासन का ध्यान आकर्षित किए जाने की आवश्यकता है.......

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

kya doctor bhagvaan hote hai?????

toshi:
Kya doctor Bhagwan hoten hain????????? shayad nahi kyonki maine jo fill kiya usase to aisa laga ki we bhagwan nahi shaitan hoten hain. mere papa ka aaj 11 baje ek truck accident hua jisme unke hath ki haddi ke do tukde ho gaye, 04 pasliyan tut gayi aur pair fracture ho gaya unhe RKC Raipur ke samne ke Agrawal Nursing Home me bharti karaya gaya janha ek juniar doctor ne unki patti ki aur we senior doctor ka 06 ghante tak intjar karte rahe papa dard se tadapte rahe aur aaj rat ko 9 baje unhe agrawal nursing home se discharge kar diya yah kah kar ki hamare yanha Orthopedic surgon nahi aate?????? bad me unhe Khemka Hospital me bharti kiya gaya aur 08:30 baje unka ilaj shuru ho paya. Dhanya hai Agrawal Nursiong Home ke doctor aur vanha ka management...........bhagwan na kare kal aap ko ya kisi bhi ko aisi taklif se gujrana pade isliye apne pure circle ke logon ko scrap karke aur blog ke dwara bataiye ki doctor bhagwan nahi hote we sadharan insan se bhi gayebite janwar hote hain...............pade http://patrakaronkiaawaz.blogspot.com/