भगवान दादा ऐसे अलबेला सितारे थे, जिनसे महानायक अमिताभ बच्चन सहित आज की पीढ़ी तक के कई कलाकार प्रभावित और प्रेरित हुए। इन कलाकारों के अभिनय और खास तौर पर डांस के स्टेप्स में भगवान दादा की छाप साफ नजर आई।
भगवान दादा का जीवन और फिल्मी करियर जबरदस्त उतार चढ़ाव से भरा रहा लेकिन यह कलाकार सिनेमा के इतिहास में अपनी खास जगह रखता है। एक मिल के श्रमिक के घर एक अगस्त 1913 को पैदा हुए भगवान दादा यानी भगवान आभाजी पालव की आंखों में बचपन से फिल्मों के रूपहले परदे का सम्मोहन था। उन्होंने अपने जीवन की शुरूआत श्रमिक के रूप में की लेकिन फिल्मों के आकर्षण ने उन्हें उनके पसंदीदा स्थल तक पहुंचा दिया। भगवान मूक फिल्मों के दौर में ही सिनेमा की दुनिया में आ गए। उन्होंने शुरूआत में छोटी-छोटी भूमिकाएं की। बोलती फिल्मों का दौर शुरू होने के साथ उनके करियर में नया मोड़ आया। भगवान दादा के लिए 1940 का दशक काफी अच्छा रहा। इस दशक में उन्होंने कई फिल्मों में यादगार भूमिकाएं की। इन फिल्मों में बेवफा आशिक, दोस्ती, तुम्हारी कसम, शौकीन आदि शामिल हैं। अभिनय के साथ ही उन्हें फिल्मों के निर्माण निर्देशन में भी दिलचस्पी थी। उन्होंने जागृति मिक्स और भगवान आटर््स प्रोडक्शन के बैनर तले कई फिल्में बनाई जो समाज के एक वर्ग में विशेष रूप से लोकप्रिय हुई। इन फिल्मों में मतलबी, लालच, मतवाले, बदला आदि प्रमुख है। दिलचस्प बात यह है कि उनकी अधिकतर फिल्में कम बजट की तथा एक्शन फिल्में होती थी।
भगवान दादा की फिल्मों में गहरी समझ तथा प्रतिभा को देखते हुए राजकपूर ने उन्हें सामाजिक फिल्में बनाने की राय दी। भगवान ने उनके मशवरे को ध्यान में रखते हुए अलबेला फिल्म बनाई। इसमें भगवान के अलावा गीता बाली की प्रमुख भूमिका थी। इस फिल्म के संगीतकार सी रामचंद्र थे और उन्होंने ही इसमें चितलकर के नाम से पार्श्व गायन भी किया। अलबेला फिल्म अपने दौर में सुपर हिट रही और कई स्थानों पर इसने जुबिली मनाई। इस फिल्म के संगीत का जादू सिने प्रेमियों के सर चढ़ कर बोला। इसका एक गीत शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के.. आज भी खूब पसंद किया जाता है। अलबेला के बाद भगवान दादा ने झमेला और लाबेला बनाई लेकिन दोनों ही फिल्में नाकाम रहीं और उनके बुरे दिन शुरू हो गए। कर्ज से बेहाल भगवान दादा को बाद में अपना बंगला और गाडि़यां बेचनी पड़ीं और रहने के लिए चाल की शरण लेनी पड़ी।
कभी सितारों से अपने इशारों पर काम कराने वाले भगवान दादा का करियर एक बार जो फिसला तो फिर फिसलता ही गया। आर्थिक तंगी का यह हाल था कि उन्हें आजीविका के लिए चरित्र भूमिकाएं और बाद में छोटी-मोटी भूमिकाएं करनी पड़ी। बदलते समय के साथ उनके मायानगरी के अधिकतर सहयोगी उनसे दूर होने लगे। सी रामचंद्र, ओम प्रकाश, राजिन्दर किशन जैसे कुछ ही मित्र थे जो उनके बुरे वक्त में उनसे मिलने चाल में भी जाया करते थे। हिन्दी सिनेमा में अभिनय और नृत्य की नई इबारत लिखने वाला यह कलाकार चार फरवरी 2002 को 89 साल की उम्र में अपना दर्द समेटे हुए बेहद खामोशी से इस दुनिया को विदा कह गया।
 
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