दाल रोटी खाओ ...परभू के गुण गाओ ..ये गीत सुन के हर गरीब आदमी खुश होता था की चलो हम कम से कम इस देश में रहते हुए दाल रोटी नसीब तो हो ही जाती है मगर अब तो दिन -ब- दिन सुरसा की भांति बढ रही महगाई ने तो अब लोगों की दाल भी पतली कर रखी है एक गरीब आदमी दिन भर की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद कम से कम दाल रोटी का जुगाड़ तो कर ही लेता था मगर जिस दिन से दाल का भाव ९०....से १०० रूपये तक पहुँची है ये आम आदमी के पहुँच से दूर हो हो गई है वही हमारी सरकार ने अत्यन्त गरीब आदमी के लिए १ रूपये चांवल और मात्र गरीब के लिए दो किलो दाल तो कर दिया मगर वही आम आदमी के लिए दाल का भाव एकदम आसमान छूने से उसका बजट भी गडबडा दिया है इसके पीछे भी कई तर्क वितर्क पेश किए जा रहे है की गरीब और मजदूर तबका जो दिन भर की मेहनत के पश्चात् शम्म के मौसम में ५० से १०० रूपये मात्र दारू पिने में व्यय कर देता है मगर वह दाल खरीदने में ५० रूपये खर्च नही कर सकता ?क्यों ? वही अन्य लोगों का तर्क है की शासन ने गरीब परिवार के लिए यह सुविधा दी है जो काफी सराहनीय है परन्तु इसका साइड इफेक्ट अलग हो रहा है ....जो कम गार व्यक्ति था उसे जब मात्र १-२ रूपये मूल्य पर चावल और मुफ्त में नमक तथा २ रूपये में गेहूं मिल जाएगा तो वह कमाने ही क्यों जाएगा इस से लोगों में आलस्य पैदा हो रही है तथा अपने कार्यों के प्रति उदासीन हो गए है
                      वहीं दूसरा तर्क यह प्रस्तुत किया जाता है की एक और शासन ने गरीब वर्ग के उत्थान के लिए जन कल्याण कारी योजनाये बना इ है वह सराहनीय है परन्तु इसके साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए की इसका  परभाव कहाँ तक कहाँ तक कारगर है एक और तो गरीब मजदूर तबके के उत्थान के लिए सरकार कतिबद्छ है वही सरकार इस आयोजन कों सफल बनाने में ऍम आदमी कों निशाना बना रही है यही कारन है की आज की दिन ब दिन बढ रही महंगाई जिसमे दाल भी एक महत्व पूर्ण आहार है कों ठीक कई गुना बड़ा कर शासन के नाक के नीछे बेचीं जा रही है वहीं व्यापारियों का तर्क यह है की अन्य परदेशों से आयातित दालों का उत्पादन कम हुआ है जिसकी वजह से दालों के रेट में कई गुना इजाफा हुआ है  
        अब सरकार कों चाहिए की इस तरह दिन ब दिन बढ रही महंगाई कों मद्दे नज़र रखते हुए कम से कम दालों के रेट में अंकुश लगाये ताकि आम आदमी इसका उपयोग सही दंग से कर सके ताकि देश के ऐसे आम तबका कम से कम आर्थिक रूप से टूटने से बच जाए ..जहाँ गरीबों कों १ रूपये चावल और दो रूपये में गेंहू पर्दान किया जा रहा है उसी तरह ऍम आदमी का बजट का ख्याल रखते हुए कुछ रियायत पर्दान की जानी चाहिय   और रहा गरीबों का चावल और गेहूं तो उसका वितरण प्रणाली में व्यापक सुधर की आवश्यकता है क्युकी यदि इस तरह का वितरण पर्नाली जारी रहा तो वाकई में एक दिन परदेश की आध्ही जनता आलस्य हो जायेगी और काम धाम से किसी कों कोई वास्ता नही रहेगा इस और शासन का ध्यान आकर्षित किए जाने की आवश्यकता है.......
 
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