मंगलवार, 15 नवंबर 2022

मृत दंतैल के दांत और सिंघा के सींग को लेकर उठते सवाल कहां गए तस्करी में राजसात किए गए वन्य प्राणियों के अंग अवशेष

 

मृत दंतैल के दांत और सिंघा के सींग को लेकर उठते सवाल कहां गए तस्करी में राजसात किए गए वन्य प्राणियों के अंग अवशेष 


देवपुर के समीप मृत हाथी और उसके दांत


अलताफ हुसैन

रायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) बार अभ्यारण्य क्षेत्र से सटे देवपुर के पकरीद गिधपुर  मार्ग विश्राम गृह के करीब स्थित धरती का सबसे विशाल भारी भीमकाय जानवर हाथी की करंट से मृत्यु विगत दिनों हो गई आनन फानन में उच्च अधिकारियों की देख रेख मे उसका पोस्ट मार्टम करवाकर कथित मृत हाथी को दफना भी दिया गया मृत हाथी के दफन के साथ ही उसके पीछे बहुत से सवाल भी छोड़ दिया जिसको लेकर अब संपूर्ण वन विभाग सहित आम वर्ग  में भी मृत गजराज की मौत और उसके दफन को लेकर तरह तरह की चर्चाएं चल रही है
      चर्चाओं के बीच  एक बहुत पुरानी कहावत की याद भी ताजा हो रही है कहते है जीवित हाथी लाख का और मर गया तो सवा लाख का ज्ञात हुआ है कि मृत गजराज जो विगत कई माह से या एकाध वर्ष पूर्व से बार नवापारा अभ्यारण्य क्षेत्र से लेकर देवपुर अर्जुनी,कसडोल,सहित बलौदाबाजार सिरपुर फुसेराडीह,कोडार क्षेत्र में प्रायः विचरण करते देखा गया एक प्रकार से गजराज उपरोक्त क्षेत्र को अपना रहवास क्षेत्र बना चुका था बताते  चले कि बार नवापारा अंतर्गत रवान परिक्षेत्र जो बार अभ्यारण्य  का एक क्षेत्र है तथा वन विकास  निगम के अंतर्गत आता है उसी के  एक कक्ष क्रमांक में इसी वर्ष चिन्हित पौधों के थिनिंग कार्य के समय जो फरवरी माह से लेकर जून जुलाई तक मे वन विकास निगम द्वारा कराया जाता है उसी कक्ष क्रमांक के क्षेत्र से सायकल पर जा रहे एक दैनिक वेतन भोगी श्रमिक को क्षेत्र में कई माह से विचरण कर रहे दंतैल द्वारा कुचल कर मार दिया गया था यही नही गत वर्ष  मोटर सायकिल से जा रहे दो लोगों में से एक की मृत्यु भी हाथी के हमले से हो चुकी है  अनुमान लगाया जा रहा है कि यह वही दंतैल था जो उपरोक्त क्षेत्र में विगत कई माह से विचरण कर रहा था जिसकी चर्चा कथित मृत हाथी के रूप में किया जा रहा है यही नही इसकी क्षेत्र में लगातार मुक्त वातावरण मे विचरण की पुष्टि स्थानीय ग्रामीण वासी पर्यटक एवं परिक्षेत्र के निगम के अधिकारी,कर्मचारी भी कर चुके है फिर भी  वन विभाग द्वारा आसपास के ग्रामीणों की सुरक्षा करने के कोई सार्थक उपाय नही उठा पाया  जबकि मानव हाथी द्वंद के रोकथाम के लिए प्रति वर्ष वन विभाग करोड़ों का बजट जारी करता है जिसमें महासमुंद वन मण्डल को भी बजट जारी किया जाता है  मगर वहाँ केवल औपचारिक बुकलेट,पाम्पलेट  प्रकाशित  तथा अन्य माध्यम से प्रचार प्रसार कर केवल खानापूर्ति कर सारे बजट का वारा न्यारा कर दिया जाता है महासमुंद वन मंडल द्वारा जन जागरूकता के नाम पर हाथी मूवमेंट के हिसाब से मुनादी जैसे कार्य भर किए जाते रहे है परन्तु हाथी जैसे विशाल प्राणी  से वनवासियों की जानमाल सुरक्षा के कोई उपाय नही किए गए जैसे हाथियों के आवागमन मार्ग को कॉरिडोर बनाकर हल्के विद्युत तारों की फेंसिंग की जाए ताकि वह अन्यंत्र प्रवेश कर जान माल को नुकसान न पहुंचा सके क्योंकि वर्ष भर गजदल एक छोर से दूसरे छोर तक यहां तक महारष्ट्र,एमपी,बिहार  बॉर्डर तक आवागमन करते रहते है वह भी उसी मार्ग से जिस मार्ग से वर्ष भर वे इधर से उधर होते रहते है केवल नर दंतैल हाथी ही अपने चयनित स्थल पर  विचरण करता है मगर यहां जानमाल सुरक्षा के बजाए  सब भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है  जिससे आसपास के ग्रामीणों के लिए सदैव  खतरा और दहशत पूर्ण वातावरण में जीवन व्यतीत करने विवश होना पड रहा है अपनी खड़ी फसल बचाने वे खेत के चारों ओर हल्के झटके देने वाले विद्युत प्रवाहित तार लगाते है ताकि फसल बचाया जा सके परन्तु इसके बावजूद वन विभाग द्वारा मानव सुरक्षा हेतु कोई कारगर उपाय न करने की वजह से माह दो माह में हाथियों की जद में आए ग्रामीणों  की मौत के समाचार प्रकशित होते रहते है जबकि वन्य प्राणियों से सुरक्षा और संरक्षण संवर्धन के लिए केंद्र से भी करोड़ों रुपये आते है परंतु वो सब कहाँ जाता है इसका कोई पुरसाने हाल नही है  उल्लेखनीय है कि देवपुर,अर्जुनी परिक्षेत्रों में प्रायः शिकार की घटना आम है जहां जंगली सुअर हिरण कोटरी,बारह सिंगा  के शिकार के समाचार  मिलते रहते है  परंतु शिकार के लिए बिछाए गए तार से हाथी की मृत्यु होना सब सोची समझी साजिश का नतीजा माना जा रहा है कुछ तो मानव अपनी जान की सुरक्षा को लेकर ग्रामीणों के द्वारा गजराज के निर्धारित आवागमन मार्ग में हाई वोल्टेज विद्युत प्रवाह तार का मक्कड़ जाल बिछा दिया गया ताकि हाथी करंट संपर्क में आकर अकाल मृत्यु का निवाला बन सके और ऐसा हुआ भी तभी तो पांच दिन से ऊपर उसकी मृत काया वहां पड़े रही औऱ  सड़ने की स्थिति में पहुंच गई जबकि गजराज को मारने उक्त क्षेत्र मे उच्च दाब लगभग 1100 वॉट का तार बिछाया गया था जबकि 440 वॉट के झटके  से ही अच्छे अच्छे प्राणी का खून पल भर में सुख जाता है फिर कथित क्षेत्र में 
लगातार चारवाहे, आम लोगों का आवागमन होता रहता है फिर भी उसके मृत होने की सूचना समीप स्थित वन विभाग कार्यालय में देना किसी भी ग्रामीण ने उचित नही समझा जबकि करीब ही विभागीय कार्यालय और विश्रामगृह है जिसे मद्देनजर रख कर  वहां भला कोई शिकारी तार बिछाकर वन्य प्राणियों का शिकार करने की हिमाकत और साहस कैसा करेगा ?  यह तब ही संभव है जब तक वन विभाग कर्मियों की शिकारियों से सांठगांठ न हो उसका ही परिणाम कहा जा सकता है अवैध शिकार का यह परिक्षेत्र केंद्र बिंदु बना हुआ है गौर तलब है कि कुछ दिन पूर्व भी एक व्यक्ति की जान ऐसे ही विद्युत पाश की चपेट में आने से हो गई थी 


हाथी दांत 

फिर क्षेत्र के रेंजर सहित वन कर्मी तत्काल एक्शन में क्यों नही आए ? जबकि परिक्षेत्र में बड़ी संख्या में फॉरेस्ट गार्ड रहते है वे ना ही वन क्षेत्रों का औचक भ्रमण करते है  और ना ही  शिकारियों काष्ठ तस्करों पर नकेल कसते है  इसका मतलब स्पष्ट है कि कथित परिक्षेत्र में ग्रामीणों,तस्करों  का एक ही लक्ष्य है कि वन जीवों को शिकार बनाना और उसका मांस भक्षण के साथ सिंग, खाल(चर्म) और कीमती अंग  अवशेष जैसे नाखून, इत्यादि की तस्करी करना जैसा मुख्य उद्देश्य मात्र रह गया है इसमें वन कर्मियों और तस्करों से बराबर सांठ गांठ रहता है जिन पर से विभागीय अधिकारियों का अंकुश पूरी तरह से हट चुका है या फिर इनके संरक्षण में शिकार की घटना को अंजाम दिया जा रहा है बताते चले कि देवपुर के प्रभारी रेंजर पंचराम यादव जो लंबे समय से देवपुर में जमे हुए है उनके ऊपर भी भ्रष्टाचार सहित बहुत से वर्षों पूर्व किए गए घटनाओं में आरोप लग चुके है तथा ज्ञात यह भी हुआ है कि शिकार अवैध संलिप्तता के कारण  वे लाल बंगले की सैर भी कर चुके है फिर भी उन्हें रेंज प्रभार देकर महिमा मंडित किया गया है इस संदर्भ में बताया जाता है कि वर्तमान किसी मंत्री का वरद हस्त प्राप्त होने के कारण वे बिंदास यहां जमे हुए है और देवपुर परिक्षेत्र को चारागाह समझ कर खोखला कर रहे है तथा सर्वाधिक शिकार और अवैध कटाई,विभागीय निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार बांस  करील की चोरी इत्यादि इनके ही कार्यकाल में हुए है ज्ञात तो यह भी हुआ है विभाग में बहुत से अधिकारी किसी न किसी मंत्री का करीबी होने का लाभ उठा रहा है एक प्रकार से ...जब सैय्या भयो कोतवाल तो अब डर काहे का.... वाली उक्ति यहां चरितार्थ होती नजर आ रही है ..कोई केंद्रीय मंत्री का करीबी,तो कोई छग के कोई,विधायक, मंत्री का विद्यार्थी जीवन काल का मित्र तो कोई मुख्यमंत्री के पाटन क्षेत्र का रहवासी होने का लाभ खुलकर उठा रहा है हालांकि किसी विधायक,मंत्री,छात्र सखा,या उनके निवास   क्षेत्र में रहने के कारण कोई विधायक मंत्री उन्हें बचाने नही आएंगे बल्कि संरक्षण देने से विपरीत ऐसे विशिष्ट जनों की बनी बनाई साख पर धब्बा लगेगा साथ ही जनता यह आरोप लगाएगी कि अब मंत्री ही अपने संरक्षण में ऐसे मैदानी अमले के अधिकारियों से अनैतिक कृत्य और भ्रष्ट कार्य करवा रहा है तब उनकी भावी राजनीतिक जीवन पर व्यापक बुरा प्रभाव पड़ सकता है इधर मंत्री विधायकों के नाम की आड़ में अधिकारी पूरी तरह से बेलगाम हो चुके है तथा अपनी मर्जी से वन नियम के इतर अपना जंगल कानून चला रहे है जिसकी वजह से  वनों की सुरक्षा का कोई माई,बाप नही  वन कर्मचारी भी खुले रूप मे अपने अपने क्षेत्रों में आतंक मचाए हुए है वन क्षेत्रों के भीतर होने वाले निर्माण कार्य से लेकर,अवैध,कटाई, शिकार,तस्करी, आम हो चुके है ऐसे भ्रष्ट अधिकारीयों पर अब विभागीय डंडा नही चलता बल्कि उसकी पीठ थपथपाकर उसे संरक्षण प्रदाय किया जाता है अधिक होने पर केवल इधर से उधर कर और मलाईदार जगह में बैठाया जाता है ताकि वह ज्यादा से ज्यादा मलाई दे सके  यही कारण है कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के नियुक्ति के कारण वन क्षेत्र में लगातार अवैध कटाई,शिकार,तस्करी के चलते वन्य प्राणियों की मौत की घटना की पुनरावृत्ति होती रहेगी और  गजराज,बारहसिंगा, हिरण,कोटरी,वन भैंसे जैसे शेड्यूल एक श्रेणी के वन्य प्राणियों की अकाल मृत्यु जैसी भयावह हृदय विदारक घटना होते रहेगी और फिर  एकाध,दो ग्रामीण और छोटे वन कर्मी को बलि का बकरा बना कर प्रकरण की इति श्री मान ली जाएगी परन्तु देवपुर परिक्षेत्र के गिधपुर मार्ग मे करंट से मृत गजराज के दफन के साथ ही बहुत से सवाल भी खड़ा कर दिया है जैसे बताया गया है कि दंतैल की मृत्यु चार से पांच दिन पूर्व हो चुकी थी सडांग बदबू के पश्चात ज्ञात हुआ कि हाथी मरा हुआ है इसके पश्चात वहां जेसीबी भी पहुंच गया और उसे गुपचुप तरीके से दफन की तैयारी भी हो चुकी थी परंतु जब पिथौरा के सक्रिय  पत्रकारो को इसकी भनक लगी तब वे मौका स्थल पहुंच कर एक मात्र फोटो,और वीडियो क्लिप शूट कर सोशल मीडिया में समाचार वायरल किया तब संपूर्ण वन विभाग में हड़कंप मच गया 


पकड़े गए बारह सिंगा के सींग

और आनन फानन में वरिष्ठ अधिकारी मौका स्थल पर पहुंचे यदि समाचार बाहर नही आता तो संभवतः जेसीबी मशीन जो पहले ही पहुंच चुकी थी  समाचार  वायरल होने के पहले ही उसे दफना दिया जाता और किसी को कानों कान खबर नही लगती और एक बहुत बड़ी घटना को गुपचुप तरीके से निपटा दिया जाता सवाल उठता है कि  विश्राम गृह के समीप  गिदपुरी मार्ग में चार पांच दिन से ऊपर मृत दंतैल जो पूरी तरह फूल कर अकड़ चुका था उसके शव का किस तरह डॉक्टरो ने पोस्ट मार्टम किया ? क्योंकि सडांग बदबू की वजह से वहां खड़ा होना दुरूह था  फिर तीन से चार डॉक्टरों ने संपूर्ण पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियो ग्राफी,फोटो ग्राफ मीडिया में क्यो नही भेजा ? मीडिया कर्मियों को समाचार कव्हरेज करने क्यों रोका गया ? यह सवाल विभागीय कर्मियों सहित आम नागरिकों के मन में कौतूहल और चर्चा का विषय बन चुका है कि पत्रकारों को भी पोस्टमार्टम होने के पूर्व एवं पोस्टमार्टम होने के  पश्चात मौका स्थल में जाकर फोटो लेने और समाचार संकलन करने  रोक दिया गया जबकि किसी विशिष्ट जन की मृत्यु और दाह संस्कार प्रक्रिया में पूरे मीडिया बिरादरी को कव्हरेज करने बुलाया जाता है मगर यहां ऐसा कुछ भी नही किया गया जबकि गजराज जो भगवान गणेश स्वरूप  पूजा जाता है फिर भी पोस्टमार्टम के और दफन होने के पूर्व के फोटो वीडियो  सार्वजनिक नही किया गया


बारह सिंगा का अंतराष्ट्रीय मूल्य 

  इससे मृत दंतैल के संपूर्ण  विभागीय कार्यवाही को लेकर बहुत से सवाल खड़े हो गए है यह स्थिति प्रदेश के एक अन्य वन क्षेत्र में घटित हो चुकी है जहां गजराज का कंकाल भर बचा था  और दांत गायब हो चुके थे जिसकी वजह से एक पीसीसीएफ रैंक के अधिकारी को लूप लाइन में जाना पड़ा था  आखिर दंतैल जिसके दांत की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में लाखों करोड़ों की है कहीं पोस्टमार्टम की आड़ में कीमती दांत तो नही निकाल लिए गए ? बताते चले कि पश्चिम बंगाल में 17 किलो हाथी के दांत पकड़े गए थे, जिनकी अंतरराष्ट्रीय मार्केट में वैल्यू करीब एक करोड़ 70 लाख रुपये है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके एक किलो की वैल्यू 10 लाख रुपये है. यानी अगर हाथी दांत 10 किलो के हैं तो उसके 1 करोड़ रुपये केवल दांत का मूल्य होता है इसलिए भी यह कहावत आज तक कहा जाता है कि जिंदा हाथी की कीमत लाख रुपये है तो मरने के बाद वह सवा लाख का होता है  वही एक अन्य प्रकाशित  समाचार की माने तो दिल्ली मे 28 अप्रेल 2022 को एक 23 वर्षीय महिला से बारहसिंगा के तीन किलो सिंग बरामद किए गए थे जिस की अंतरराष्ट्रीय कीमत  डेढ़ करोड़ बताई गई है उल्लेखनीय है कि लगभग चार माह पूर्व महासमुंद वन वृत के बागबाहरा परिक्षेत्र के लगभग छह किलोमीटर दूर स्थित हाथी गढ़ के सुकरा गौठान के समीप सात जुलाई को एक बारह सिंगा की मौत हो गई थी जिसे पहले दफना दिया गया पश्चात  ग्राम के आवारा श्वान के नोचकर बाहर निकाले जाने पर उसे खल्लारी वन क्षेत्र में कहीं फेक दिया गया ऐसा परिक्षेत्राधिकारी विकास चन्द्राकर का कथन था घटना के पीछे की कार्यवाही पंचनामा से लेकर पोस्टमार्टम तक का ब्यौरा तथा उसके नष्टीकरण,और लिखित प्रक्रिया, के संदर्भ में रेंजर द्वारा वन अधिनियम में परिवर्तन जैसी गोलमोल बातों को लेकर  विकास चन्द्राकर परिक्षेत्राधिकारी बागबाहरा  की भूमिका भी संदिग्ध बनी हुई है क्योंकि ज्ञात यह भी हुआ है कि बारहसिंगा की रिपोर्ट ऊपर मुख्यालय नही भेजी गई जो संदेह के दायरे में है बताया जाता है कि बारहसिंगा के मृत्यु पश्चात रेंजर विकास चन्द्राकर  पन्द्रह दिवस का  लंबा अवकाश लेकर अंतर्धान हो गए थे 

हाथी दांत का अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकन


बारह सिंगा के शव को लेकर अपनाई गई प्रक्रिया और उसके वास्तविकता जानने के  लिए  सूचना का अधिकार लगाकर संबंधित जानकारी मांगी जाएगी  बहरहाल, महासमुंद और बलौदाबाजार परिक्षेत्रों में अवैध शिकार की घटना बहुत अधिक बड़ी है जिसमे यदाकदा कुछ तस्करों पर विभाग द्वारा वन अधिनियम के तहत कार्यवाही भी की जाती है जिसमे कार्यवाही पश्चात तस्करों से वन्य प्राणियों  की खाल,सींग नाखून दांत,जैसे अवशेष भी बरामद कर  विभाग द्वारा राजसात किया जाता रहा है परंतु तस्करों पर कार्यवाही पश्चात वन्य प्राणियों के ऐसे खाल,दांत,सींग, नाखून,अवशेष जो राजसात किए जाते है वह जाता कहाँ है ? क्योंकि वन विभाग ऐसे  तस्करों पर खाल चमड़े, नाखून,दांत  इत्यादि को लेकर वन्यजीव अवशेष  तस्करी के नाम पर  कार्यवाही तो आज से नही अपितु वर्षों से कर  रही है परंतु राजसात किए गए वस्तुओं का क्या किया गया ? कौन से भंडारण में रखा गया ? इसका आज तक कोई ब्यौरा सार्वजनिक नही किया गया जो वन विभाग के कार्यशैली पर भी संदेह की उंगली उठाता है वही एक पर्यावरण,प्रकृति, वन्यजीव प्राणी प्रेमी द्वारा इसकी शिकायत और जांच की मांग

       7 जुलाई 22 को मृत बारह सिंगा


अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ  *( IUCN)*  में करने की बात कही है बताते चले कि यह अंतरराष्ट्रीय संघ के द्वारा  *(red data book )* रेड डेटा बुक जारी  करती है जिसमे पौधों और जानवरों की प्रजाति  की वैश्विक संरक्षण की स्थिति को दर्शाया जाता है उदाहरण हाथी और हिरण इसकी (red data book) में है,


           देखे वीडियो 

 *(CITES)* संस्था के परिशिष्ट i में जिसमे शामिल वन्य प्रजाति जैसे हाथी हिरन जिन्हें व्यापार से  और अधिक खतरा हो सकता उसपर प्रतिबन्ध लगाती है इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय ही नही अपितु भारत सरकार द्वारा भी वन्य जीवों पर खतरे को।कम करने हेतु *वन्य जीव (संरक्षण ) अधिनियम*),1972 पारित किया है जिसके अंतर्गत वन्य जीवों  के अवैध शिकार तस्करी अवैध व्यापार को  नियंत्रित करने हेतु पूर्णतः प्रतिबंधित किया है इस अधिनियम के तहत सरकार ने कठोर सजा व जुर्माने का प्रावधान भी दिया गया है इस अधिनियम के अनुसूची 1 में बारह सिंगा और हिरण दोनों  शामिल है इसमें शामिल जीवों का शिकार करने पर धारा 2,8,9,11,40,41,43,48,51,61 तथा धारा 62 के तहत कठोर दंड और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है परंतु तस्करों पर विभागीय कार्यवाही खाना पूर्ति की जाती है और वन्य प्राणियों के बाल से लेकर खाल और अंग अवशेषों की  तस्करी और शिकार आज भी छग प्रदेश के सघन वन क्षेत्रों में अनवरत जारी है

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