गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

जंगल का शेर सफारी में बीमार और भी वन्य प्राणियों की हो चुकी मौत

 जंगल का शेर सफारी में बीमार और भी वन्य प्राणियों की हो चुकी मौत


अलताफ़ हुसैन

रायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) छ्ग प्रदेश के नवा रायपुर मे मानव निर्मित जंगल सफारी वैसे तो पूरे भारत देश, सहित विदेश में  काफी लोकप्रिय हो चुका है लगातार विलुप्त होते वन्य प्राणियों के संरक्षण एवं संवर्धन कार्य हेतु छ्ग वन विभाग रात दिन जुटा रहता है इश्वरी संरचना की बे मिसाल सजीव तस्वीर से रूबरू होने इनके दर्शन मात्र हेतु जन मानस विशेष रूप से यहाँ पहुँचते है तथा भिन्न भिन्न जीव जंतु वन्य प्राणियों की छ सौ प्रजाति से साक्षात्कर होकर ईश्वरी संरचना की भूरि भूरि प्रशंसा व्यक्त करते है परंतु जब से वन्य प्राणियों का  संपर्क मानव से लगातार होने लगा तब से इनके स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने लग गया है  वन क्षेत्रों मे मुक्त एवं स्वच्छ वातावरण में रहने वाले वन्य प्राणियों की स्थिति बड़ी दयनीय अवस्था में पहुँचते जा रही है इनके दाना पानी जो नैसर्गिक हुआ करती थी अब वह रसायनिक,हाई ब्रिड के रुप में परिवर्तित हो चुका है प्राकृतिक रूप से मिलने वाले फल,फूल बीज, माँस सब वहीं से प्राप्त हो जाता था परंतु  जंगल सफारी एवं अन्य मानव निर्मित क्षेत्र में वन कर्मचारी उनके स्वस्थ्य की चिंता करते हुए एंटीबायटिक दवाओं एवं अन्य वस्तुओं का मिश्रण कर उन्हे धीमा जहर दे रहे है जिसकी वजह से अनेक वन्य प्राणी असमय काल के गाल में समा चुके है इसका जीता जागता उदाहरण नवा रायपुर स्थित जंगल सफारी में देखने मिल रहा है जहां  बंगाल टाईगर विगम कुछ दिनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ है तथा उसकी इह लीला कभी भी समाप्त हो सकती है ऐसा बताया जाता हौ



      जंगल सफारी जू के अति विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि बंगाल टायगर जो सफारी का प्रमुख आकर्षण का केंद्र बिंदु है विगत कुछ दिनों से बुरी तरह से अस्वस्थ चल रहा है प्रत्यक्षदर्शीयों का कथन है कि उसने कुछ दिनों से खाना पीना सब छोड़ चुका है उसे ग्लुकोज  ड्रीप्  लगा कर  उसे क्वारनटाईन मे रख कर उसे बचाने की जद्दोजहद की जा रही है तथा वह अचेतन, मरणासन्न स्थिति में पड़ा हुआ है लगातार डॉक्टर उसका इलाज कर रहे है परंतु  स्थानीय कर्मियों का कथन है कि वह कभी भी दम तोड़ सकता है जबकि यह भी ज्ञात हुआ है की  वन्य प्राणियों के खान पान में भारी लापरवाही बरती जाती है किस समय कौन से हिंसक प्राणियों को कौन सा माँस दिया जान है कोई ध्यान नही दिया जाता सफारी में दो  डॉ रहने के बाट उनके द्वारा सप्ताह या महीने में कोई परीक्षण नही किया जाता  इसका खामियाज़ा यह हुआ कि  शेर के ईलाज हेतु  गुजरात के जाम नगर स्थित अंबानी के वनतारा सफारी मे भेजा गया है  ईश्वर की कृपा रही तो वह भविष्य में  व्यधि। ग्रस्त  शेर के दर्शन स्थानीय जंगल सफारी में होंगे  नहीं तो फिर नया शेर आयातित   कर उसकी भरपाई करने योजना बनाई जाएगी   यही वजह है कि वर्ष भर पूर्व में  शेर के शावक सहित अन्य वन्य प्राणियो की मौत हो चुकी है  ज्ञात तो यह भी हुआ है कुछ दिन पूर्व एक काला हिरण की मौत होना  भी बताया गया जिसे जग जाहिर नही किया गया इस संदर्भ में सच्चाई ज्ञात करने जब जंगल सफारी के एस डी ओ शिव डहरिया से पूछा गया तो उन्होंने  किसी भी काला हिरण की मौत न होने की बात कही पश्चात   उन्होंने  किसी भी वन्य प्राणी की मृत्यु होना स्वभाविक,प्रकृति के अनुकूल होने की बात भी कही जबकि करोड़ों का राजस्व देने वाले वन्य प्राणियों को कारावास की स्थिति में पहुंचाने वाले मानव समाज ही है एवं उनकी सेवा सुश्रुषा करने का बीडा वन कर्मियों की ही बनती है फिर उनके खान पान से लेकर वन्य प्राणियों के स्वस्थ्य की चिंता कैसे नही होनी चाहिए परंतु यहाँ ठीक विपरीत स्थिति चल रहा है  ..यहाँ वन्य प्राणियों को चारा नसीब नही...एवं वन्य कर्मी मटन और मछली खा रहे है....ये वही खुराक है जिसे वन्य प्राणियों को परोसा जाता है प्रति वर्ष निकाली गई निविदा के मुताबिक वन्य प्राणियों को दी जाने वाली मटन की मात्रा कम दी जाती है वही  विजय पाटिल डिप्टी द्वारा यहाँ हर चार दिन में मछली मारा जाता है बताते चले की कुछ वर्ष पूर्व शेर के शावक को मछली खिला  दिया गया था जिसकी गले मे कांटा  फंसने  की वजह से बाद  में उसकी मृत्यु भी हो गई थी वही उद बिलाव घड़ियाल, मगर इत्यादि  के लिए मछली मंगवाई जाती है  लेकिन  निविदा कारों से  न लेकर  किस व्यवस्था के तहत  मछली स्थानीय  खंडवा जलाशय से निकाल कर लाखों का खेल कर लिया जाता है विश्वस्त सूत्र यह भी बताते है कि  यदि मछली का टेंडर कुछ लोग से किया गया  तो उन्हे स्थानीय  मछली मारने  का भुगतान किस मद से किया जाता है?  वही जंगल सफारी क्षेत्र में स्थित खंडवा जलाशय से मछली निकालने का फरमान डी एफ ओ द्वारा जारी किया गया वही सी सी एफ वन्य प्राणी के आफिस से मिले सूचना के अधिकार पत्र के अनुसार मछली मारने जैसा   कोई लेटर जारी नही किया गया इस प्रकार के अलग अलग विरोधाभासी पत्र प्राप्त होने  से  यह ज्ञात होता है कि वास्तविकता पर पर्दा डाल कर गड़बड़ी  कर भ्रष्टाचार  का नया इतिहास रचा जा रहा है  इस संदर्भ में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत। किसी भी प्रतिबंधित क्षेत्र, जैसे कि जू या सफारी, में मछली पकड़ना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के उल्लंघन के तहत एक दंडनीय अपराध है। यह गतिविधि जलीय,एवं वन्यजीवों के प्रजनन और उनके आवास को बाधित कर सकती है, और ऐसा करने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।  इन क्षेत्रों में मछली पकड़ने की अनुमति आमतौर पर विभाग को भी नहीं होती है, और ऐसा करने पर कार्रवाई की जा सकती है। 


 उल्लेखनीय है कि जंगल सफारी के सर्वाधिक चर्चित वन कर्मी कन्नौजे का आता है जिनके द्वारा वन प्राणियों के रसद आबंटन की महती जिम्मेदारी है परंतु वे उस पर भी कांटा मार देते है इनके संदर्भ में यह भी बताया जाता है कि गरियाबंद  डिविजन के धवल पूर रेंज के कक्ष क्रमांक 85*  में बहुत से भ्रष्ट कार्यों को अंजाम दिया था जहाँ प्लांटेशन न करते हुए पूरी की पूरी राशि हजम कर दिया गया जिसकी चर्चा आज भी चटकारे लेकर बताई जाती है वही एक अन्य सफारी वन कर्मी तो  बकायदा मछली जो टनों से निकाली गई थी जंगल सफारी के  वन  चौकीदार  चंद्रिका  सिन्हा के  सहयोग से पिछले  रास्ते निकाल कर किसे कब और कहाँ दी गई यह अब भी अबूझ पहेली बनी हुई है  इसकी संपूर्ण जांच की आवश्यकता है यही नही  श्रमिकों के भुगतान,निर्माण एवं अन्य मदों के बिल बाउचर की राशि में गड़बड़ी निकलेगी वह भी जांच का विषय है क्योंकि अब तो सीधे ऑन लाइन कार्य संपादित किया जाता है जिसमें ओवर राईटिंग करने का कोई खेल नही  कर सकता अब सारा खेल ठेकेदार उनसे लेकर भुगतान किये जाने वाले श्रमिकों के आधार कार्ड का सुक्षमता से निरीक्षण से सारा सच सामने आ जाएगा यही नही ठेकेदारों, एवं समिति, एन.जी.ओ.द्वारा संपादित कार्यों की समीक्षा भी मुख्य जांच का विषय है यदि ऐसा किया जाता है तो एक बहुत बड़े फर्जीवाड़ा होने का खुलासा होने की संभावना बताई जाती है

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