शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

पानाबरस बनाम धनबरस परियोजना मंडल कार्यालय भ्र्ष्टाचार के मामले में अव्वल

 पानाबरस बनाम धनबरस परियोजना मंडल कार्यालय भ्र्ष्टाचार के मामले में अव्वल

अलताफ हुसैन  

रायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) छग राज्य वन विकास निगम में वैसे तो अनेक फर्जीवाड़ा,भ्रष्टाचार, कार्यों में गड़बड़ी के प्रकरण प्रकाश में आते रहते है लेकिन नियम और कानून को बलाए ताक रख कर फर्जीवाडा किए जाने वाले  प्रकरण के मामले में पानाबरस बनाम धन बरस परियोजना मंडल कार्यालय ने तो सारे रिकॉर्ड ही ध्वस्त कर दिए यही नही फर्जीवाड़ा कर भ्रष्टाचार को अंजाम दिए जाने का यह खेल केवल वर्ष दो वर्ष ने नही बल्कि वर्ष 2015 से लेकर अनवरत कार्यों में अनियमितता एवं फर्जी बिल के माध्यम से सावन की झड़ी के मानिंद बरस रहे धन को लुटने का कार्य चल रहा है अब तक के इन  पांच छ वर्षों  के लंबे अंतराल में पाना बरस बनाम धन बरस परियोजना मंडल  ने  करोड़ों रुपयों का चूना  शासन एवं छग वन विकास निगम को लगा चूके है इनमें  कुछ अधिकारी,कर्मचारी, तो बेचारे दिवंगत हो गए शेष सेवानिवृत अधिकारी कर्मचारी, उन्ही भ्रष्ट राशि से विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे है फिर भी छग वन विकास निगम में ऊपर बैठे उच्च अधिकारी ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के कार गुजारी को देख कर भी अंजान बने  केवल आंख मूंदे उन्हें मूक भ्रष्टाचार करने की अनुमति दिए जाने जैसा प्रतीत हो रहा है और वन विकास निगम जो स्वपोषित संस्था के रूप में चिन्हित है वह शासकीय विभाग के अधिकारियों,कर्मचारियों के लिए केवल आर्थिक  आय अर्जित करने वाला एक चारागाह बन गया है जहां  अधिकारी कर्मचारी दस्तावेजों में कूटरचना कर गड़बड़ी,अनियमितता, एवं घोटाला के माध्यम से भ्र्ष्टाचार,करने के नए नए अवसर तलाशते रहते है  आश्चर्य तब और अधिक होता  है कि जब विभागीय दस्तावेजो में इतना बड़ा खेल हो जाने के बावजूद  निगम में ऊपर बैठे अधिकारी न ही मैदानी क्षेत्रों में संपादित किए गए कार्यों का समुचित भौतिक मूल्यांकन करते है और न ही उसकी गुणवत्ता की जांच की जाती है केवल आंख बंद कर कागजों पर साइन सिंगनेचर,से खेल हो जाता है तथा सब को अपना अपना कमीशन भी मिल जाता है अब निगम द्वारा संपादित कराए गए कार्य की क्या स्थिति होती है उसका कोई पुरसाने हाल नही सब भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है जब संपादित कार्यों की सुध लेने किसी आम जन द्वारा सूचना के अधिकार के माध्यम से जानकारी मांगी जाती है तो या तो अधिकारी गोलमोल या आधी अधूरी जानकारी प्रदान कर आवेदक को दिग्भ्रमित करने का प्रयास करते हैं या फिर बगले झांक कर टालमटोल की स्थिति निर्मित की जाती है ऐसा ही एक सूचना का अधिकार का  प्रकरण सामने आया है जिसमे छह माह पूर्व आवेदक फॉरेस्ट क्राइम द्वारा दो  पत्रों के माध्यम से  दिनांक 05/02/2021 को  पत्र क्रमांक क्रमशः 291/292 /सु.का.आ./02/2021/के माध्यम से 01 जनवरी वर्ष  2016 से 30 दिसंबर 2020 तक 5000 से अधिक का नगद,भुगतान, या चेक ड्राफ्ट,आर.टी.जी.एस. के माध्यम से किए गए उक्त व्यक्ति फर्म संस्था के नाम बैंक स्टेटमेंट की सत्यापित छायाप्रति मांगी गई थी जिस पर माह फरवरी माहान्त से कोरोना काल प्रारंभ होने तथा मानव दृष्टिकोण के चलते जवाब दो माह विलंब से प्रदाय किया गया परन्तु उसमें भी चाय,नाश्ता, भोजन,पेट्रोल,विधुत बिल इत्यादि के दस्तावेज दिए गए जबकि राज्य सूचना आयोग को दिए गए पत्र के जवाब में पाना बरस परियोजना मंडल के अधिकारियों द्वारा आवेदक को  260 पृष्ठों की जानकारी दी गई जो राज्य सूचना आयोग को भी दिग्भ्रमित करने वाला है वही वन विकास निगम के  मंडल कार्यालय द्वारा मात्र 50 पृष्ठों के अंदर चाय नाश्ता, बिजली बिल,पेट्रोल इत्यादि के ही बिल बाउचर की सत्यापित जानकारी  दी गई  जिस पर आवेदक ने अपनी असन्तुष्टि व्यक्त करते  हुए तत्काल राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया तथा राज्य सूचना आयोग के पत्र क्रमांक/54414/वा.02/प्र. क्र. A/528/रा./ 2021/ के दिनांक 03/06/2021 के माध्यम से पानाबरस  वन विकास निगम राजनांदगांव तथा आवेदक को दिनांक 02/07/2021/ सुनवाई हेतु उपस्थित होने कहा गया जहां निर्धारित तिथि को माननीय  महोदय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से निगम कर्मियों को फटकार लगाते हुए  प्रकरण क्रमांक ए/528/2021  में 15  दिवस के भीतर आवेदक को अवलोकन सहित चाही गई जानकारी सूचना केंद्र के पते पर डाक द्वारा उपलब्ध कराने के स्पष्ट  निर्देश दिए  पानाबरस मंडल कार्यालय द्वारा  दिनांक 20/ 07/2021/ सुनिश्चित कर  आवेदक को कार्यालयीन अवधि में उपस्थित होने कहा गया चूंकि वार्षिक त्योहार होने के कारण दो दिन विलंब से दिनांक 23/07/ 2021/ को आवेदक पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय में उपस्थित हुआ  समयाभाव में संपूर्ण दस्तावेजों का अवलोकन नही हुआ तथा शेष वर्ष के दस्तावेजो के अवलोकनार्थ हेतु पानाबरस मंडल  कार्यालय  द्वारा आगामी दिवस को मोबाइल से यह जानकारी दी गई कि अवलोकन हेतु  संपर्क कर निर्धारित तिथि बता दिया जाएगा जबकि राज्य सूचना आयोग का यह स्पष्ट निर्देश है कि सुनवाई पश्चात अवलोकन पश्चात 15 दिवस के भीतर आवेदक को वांछित जानकारी उपलब्ध करावें परन्तु उक्त निर्देशों का भी खुले आम धज्जियां उड़ाई जा रही है निर्धारित समयावधि व्यतीत होने के पश्चात यदि उक्त दिवस अंतराल में आवेदक को अवलोकन सहित संबंधित चाही गई दस्तावेज प्रदान नही किया जाता है तो उक्त परिस्थिति में आवेदक राज्य सूचना आयोग को पुनः अपील कर शिकायत दर्ज की जाएगी साथ ही आवेदक को  न्यायालयीन शरण मे जाने बाध्य होना पड़ेगा वही कुछ वर्षों पूर्व के दस्तावेजों का अवलोकन करने से यह ज्ञात हुआ है कि अर्दली भुगतान श्रमिक भुगतान सहित सामग्री क्रय भुगतान तथा निर्माण कार्य भुगतान में बड़ा खेल हुआ है  उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 पश्चात केंद्र सरकार द्वारा देश भर के समस्त राज्यों के शासकीय विभागों  मे उपरोक्त 5000 से ऊपर समस्त भुगतान  बैंक के माध्यम से किए जाने हेतु सर्कुलर जारी किए गए थे परन्तु पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय में उक्त आदेशों को अनदेखा कर समस्त भुगतान नगद अथवा कार्यालयीन अधिकारियों,कर्मचारियों द्वारा बैंक से राशि आहरित कर किया गया  जबकि  भुगतान बैंक द्वारा संबंधित व्यक्ति,संस्थान, को किया जाना सुनिश्चित है परन्तु इसके विपरीत छग वन विकास निगम पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय के मैदानी कर्मचारियों  द्वारा वर्ष 2016-17के  जॉब प्रमाणक एवं बाउचर अवलोकन से यह ज्ञात हुआ है कि एक मुश्त राशि जो कार्यालय द्वारा जारी की जाती थी वह लाखों में होती थी उक्त राशि को एकमुश्त आहरित कर संबंधितों को भुगतान अब चाहे वह श्रमिक भुगतान हो सामग्री क्रय हो या व्यक्तिगत भुगतान हो सभी का नगद भुगतान किया गया है वर्तमान स्थिति में बैंक से भुगतान  किए जाने के संदर्भ में कुछ अपवाद हो सकते है परन्तु इसका विकल्प भी निकाला जा चुका है यदि 30 अथवा 40 मजदूरो को श्रमिक भुगतान करना होता है तो मैदानी अधिकारी कर्मचारी, अपने रिश्तेदार,दोस्त,अहबाब के नाम जॉब कार्ड में जोड़ देते है तथा एक बड़ी राशि गड़बड़ घोटाला कर फर्जी तरीके से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है वही निर्माण अथवा सामग्री क्रय में ऊपर बैठे अधिकारीयों का कमीशन तो बंधा होता है वही फर्जी बिल तथा अन्य बैंक अकाउंट से राशि आहरित कर भ्रष्टाचार का बड़ा खेल हो रहा   है जिसमे लाखों का लेनदेन परस्पर हो जाता है उदाहरण के लिए पाना बरस कार्यालय को ही ले लिया जाए उक्त दो मंजिला कार्यालय भवन निर्माण में लागत राशि लगभग 67 लाख रुपये है तथा दो तीन वर्ष ही हुए उक्त भवन का निर्माण किए मगर देखा जा रहा है कि यह भवन अभी से दरकने लगी है तथा निर्माणकर्ता ठेकेदार भी पानाबरस कार्यालय के पूर्व लेखाधिकारी कथरानी के सुपुत्र एव उन के मित्र के माध्यम से निर्माण एवं सामग्री प्रदाय  किया जाना बताया गया नव निर्मित कार्यालय भवन  के संदर्भ में तात्कालिक अधिकारियों द्वारा उसके गुणवत्ता एवं फिटनेस सर्टिफिकेट क्यो नही लिया गया ? इससे ज्ञात होता है कि भवन निर्माण में ऊपर बैठे अधिकारियों सहित अन्य कर्मचारियों द्वारा भारी भ्रष्टाचार का खेल खेला गया है कहा यह जा रहा है जितनी 67 लाख की लागत से पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय भवन का नव निर्माण किया गया उतनी राशि मे तो सुसज्जित महल खड़ा हो जाता था परन्तु देखने मे यह आ रहा है  कि वही कार्यालय में रखे अलमारी कुर्सी टेबल क्रय किए गए जबकि उनकी स्थिति देखकर ज्ञात होता है कि  पुराने अलमारी को ही रंग रोगन,डेंटिंग,पेंटिंग लगाकर एक बड़ी राशि आहरित कर डकार ली गई दस्तावेज अवलोकन में मैदानी वन क्षेत्र में भी प्रति वर्ष किए जाने वाले लगुण विदोहन कार्य जिनमे दस से चालीस वर्षीय परिपक्व सागौन ,बांस, अन्य  ईमारती काष्ठों के पातन में  माह सितंबर वर्ष 2017 में भी एक ही व्यक्ति के नाम को कई लगुण कार्य में एक ही तिथि मे  कई जॉब वर्क कार्ड  में नामांकित कर हजारों की राशि आहरित की गई जो निश्चित ही बड़े भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है आश्चर्य  यह भी है कि समस्त भुगतान आधिकारिक तौर पर कार्यालयीन खाता संख्या से लाखों की राशि आहरित कर नगद भुगतान किया गया जबकि उन्हें ऑन लाइन उनके संबंधित बैंक खाता संख्या में भुगतान जारी किया जाना था फिर भी आवेदक को उक्त भुगतान से संबंधित दस्तावेज प्रदान नही किए गए जबकिं कोरल दण्ड नर्सरी के भुगतान संबंधित पत्रों के अवलोकन में भी बड़ी गड़बड़ी कर भ्रष्टाचार करने की आशंका है  जुलाई वर्ष 2016 में मस्टररोल सहित बिल बाउचर में लाखों के भुगतान किए गए परन्तु जितने भुगतान किए गए उनमें श्रमिकों की संख्या भी कम बताई गई तथा खाद क्रय से लेकर अन्य कार्य भी सन्देह के दायरे में है जो बड़े फर्जीवाड़ा की ओर इशारा करते है क्षेत्र के काष्ठागर जो छग वन विकास निगम  की आर्थिक रीढ़ मानी जाती है वहां पर भी दर्शाए गए विदोहन लगुण कार्य में सागौन सहित अन्य ईमारती काष्ठों की संख्या पृथक दर्शाई गई है तथा नीलामी काष्ठों की संख्या (अ) समान  है यही नही बताया तो यह भी जाता है कि वन क्षेत्रों से दस वर्षीय बीस वर्षीय  से लेकर चालीस वर्षीय परिपक्व सागौन एवं ईमारती काष्ठों का पातन पश्चात कुछ बेशकीमती काष्ठ तो मैदानी अमले के द्वारा बाला बाला सीधे वन परिक्षेत्र से व्यापारियों से सांठगांठ कर विक्रय कर देते है वही काष्ठागार में हुई  नीलामी पश्चात एक टी.पी.में ही कई ट्रक काष्ठ पार हो जाते है जिसका आर्थिक लाभ  अधिकारीयों सहित कर्मचारी उठाते है वही नीलामी पश्चात परिवहन किए जाने वाले  नीलामी काष्ठ के व्यापारी द्वारा तत्काल काष्ठ परिवहन नही किया जाता इसे निर्धारित अवधि में काष्ठागार से  उठाना अनिवार्य होता है यदि नियत तिथि में नीलामी काष्ठ व्यापारी द्वारा  परिवहन नही किया जाता तब उससे अतिरिक्त राशि ली जाती है तथा यही से एक लाट पर एक फ्री वाली स्थिति निर्मित होती है जिसकी एक बड़ी राशि सब अधिकारियों कर्मचारियों के जेब मे जाता है बताते चले कि काष्ठों की गुणवत्ता के आधार पर लाट तैयार किए जाते है जिसमे नीलामी के दौरान किसी अन्य गुणवत्ता वाले काष्ठों की नीलामी होती है तथा परिवहन करते समय गुणवत्ता युक्त काष्ठ भी परिवहन हो जाते है इसकी संपूर्ण जानकारी नीलामी कर्ता अधिकारी को होती है तथा संपूर्ण लेनदेन तत्काल कर लिया जाता है शेष चट्टे बट्टे अन्य छोटे कर्मचारियों के द्वारा गड़बड़ कर आर्थिक लाभ अर्जित किया जाता है इसमें सर्वाधिक अहम भूमिका कार्यालयीन लेखाधिकारी,एवं वरिष्ठ प्रबन्ध लेखाधिकारी को होती है जो लाट की संख्या,उसके घनमीटर तथा गुणवत्ता के संबन्ध में  होता है वही  व्यापारियों को सैटिंग से लेकर परमिट जारी करने के दायित्वों का निर्वहन करता है ज्ञात तो यह भी हुआ है कि कुछ उंगली में गिनेचुने व्यापारी एवं काष्ठ मिलर है जो बेशकीमती काष्ठों को पूर्व सैटिंग से क्रय कर लेते है तथा केवल नीलामी की औपचारिकता भर निभाई जाती है यही स्थिति एव नियम बांस बंबू नीलामी के भी है  जो राजनांदगांव परियोजना मंडल के अंतर्गत अधिक व्यापारी है यहां माउंट की भांति काष्ठागरों में बांस बंबू, के बड़े लाट देखे जा सकते है जो स्थानीय स्तर पर इसका क्रय कम बाहरी प्रदेशों में अधिक होता है जानकर एवं आम जन में यहां तक कानाफूसी है कि चंद वन विकास निगम मंडल के अधिकारियों कर्मचारियों  एवं विभाग की मिलीभगत से वन परिक्षेत्रों से सीधे माल यहां पहुंच जाते है जिनके कोई वैधानिक दस्तावेज भी नही होते इसकी आड़ में बेशकीमती  ईमारती  काष्ठ भी पार हो जाते है जो आरा मिल एवं इनके काष्ठागार में पृथक दिखाई दे जाते है  यदि इस संदर्भ में छापामार कार्यवाही हुई तो कई बड़े राजफाश हो सकते है परन्तु संबंधित विभाग इस तारतम्य में किसी प्रकार की कोई छापामार कार्यवाही नही करते जिसका भरपूर आर्थिक लाभ काष्ठ व्यापारी और अधिकारी,कर्मचारी उठा रहे है निगम कर्मियों द्वारा दस्तावेजो में कूटरचना,एवं गड़बड़ी किए जाने के मामले में सबसे बड़ी हैरान करनें वाली बात यह है कि किसी भी विभाग में वार्षिकी अंकेक्षण हेतु  प्रति वर्ष अंकेक्षण द्वारा (ऑडिट) रिपोर्ट तैयार कर दी जाती है परन्तु क्या ये  समस्त,गड़बड़, कर किए गए घोटाले और भ्रष्टाचार भी ऑडिटर की नज़रों से भी बड़े बड़े मामले और प्रकरण छूट जाते है या फिर इनकी भी आंखों में पैसों की पट्टी बांध दी जाती है ? इस प्रकार के गड़बड़ी घोटाला और भ्रष्टाचार की स्थिति केवल राजनांदगांव के पानाबरस परियोजना मंडल की ही नही अपितु प्रदेश भर के  वन विकास निगम मंडल कार्यालय में भी देखी जा सकती है  बहरहाल, शेष तीन वर्षों के दस्तावेजों का अवलोकन शेष है जिसमे अनेक बड़े प्रकरण प्रकाश में आने की संभावना है जिसे दस्तावेज सहित प्रकाशन कर राजफाश किया जाएगा ? जिसमे कई अधिकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार की ज़द में आएंगे .

रविवार, 25 जुलाई 2021

आकोली कला सरपंच ललित ढ़ीढ़ी पर फर्जी बिल से राशि आहरित कर गबन का आरोप

 आकोली कला सरपंच ललित ढ़ीढ़ी पर फर्जी बिल से राशि आहरित कर गबन का आरोप

सरपंच ललित ढ़ीढ़ी ग्राम आकोली कला

रायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़)विधान सभा अभनपुर एवं आरंग जनपद विकासखण्ड के अंतर्गत मात्र पांच किलोमीयर की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत आकोली कला (लि.)के सरपंच पर फर्जी तरीके से शासकीय राशि लगभग 2 लाख बीस हजार रुपये आहरण कर गबन करने का गंभीर आरोप  ग्राम आकोली कला के उपसरपंच एवं पंचों द्वारा लगाया गया है  ग्राम पंचायत के समस्त पंच एवं ग्रामीणों द्वारा लामबंद होकर इसकी निष्पक्ष  जांच की शिकायत जिला कलेक्टर,रायपुर सहित जिला सीईओ रायपुर एवं जनपद सीईओ आरंग को की है तथा उक्त फर्जी बिल के माध्यम से आहरित कर गबन की गई राशि  के मामले में  सरपंच के विरुद्ध  वैधानिक कार्यवाही करने की मांग की गई है

   

उपसरपंच रिकेश्वर कोसले ग्राम आकोली कला 
    जिलाधीश महोदय एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी को दिए गए आवेदन की प्रति समाचार पत्र के प्रतिनिधि को  सौंपते हुए उप सरपंच रिकेश्वर कोसले ने बताया कि ग्राम आकोली कला (लिंगाडीह)के सरपंच ललित ढ़ीढ़ी द्वारा विकास के नाम पर ग्राम में अब तक किसी प्रकार का विकास कार्य नही करवाया  उल्टे अपने रिश्तेदार बहन प्रमिला रात्रे के नाम से फर्जी बिल बनवा कर 14 वें एवं 15वें वित्त की राशि जो लगभग  2 लाख रुपये से ऊपर है आहरित कर गबन कर लिया गया जबकि  विगत कई वर्षों से सरपंच ललित ढ़ीढ़ी की निष्क्रियता बनी हुई है तथा ग्राम में किसी प्रकार का विकास अथवा निर्माण कार्य संपादित नही हुआ है ग्राम के कुछ पंच एवं उपसरपंच ने शिकायत पत्र देते हुए बताया कि बजरी गिट्टी,ग्राम लिंगाडीह हेतु राशि अड़तालीस हजार रुपये उमेश कुमार चतुर्वेदानी,के नाम पर दिनांक 05/10/2020/ को आहरित किया जिसे फर्जी बताया वही 15 अगस्त 2020 राष्ट्रीय पर्व को मिष्ठान वितरण हेतु  बीस हजार रुपये की राशि आहरित की गई जो कि कोरोना काल एवं लॉक डाउन होने के कारण संभव नही है उक्त राशि को भी सरपंच ललित ढ़ीढ़ी  द्वारा फर्जी बिल के माध्यम से आहरित कर गबन कर लिया गया ग्राम आकोली कला के उपसरपंच रिकेश्वर कोसले ने शिकायत पत्र में एक अन्य क्रय संबधी बिल के राशि मे गड़बड़ी किए जाने का आरोप मढ़ते हुए बताया कि फर्नीचर क्रय हेतु लगभग 48 हजार रुपये आहरण किए गए जिसमे केवल बीस हजार रुपये ही व्यय किए गए शेष राशि सरपंच ललित ढ़ीढ़ी द्वारा गबन कर दिया गया उन्होंने आरोप लगाया है कि इस प्रकार से ललित ढ़ीढ़ी सरपंच आकोली कला आश्रित ग्राम लिंगाडीह द्वारा लगभग दो लाख से ऊपर की राशि अब तक आहरित कर शासकीय राशि का दुरुपयोग करते हुए गबन कर लिया गया जिसके जांच हेतु उन्होंने उपरोक्त जिलाधीश महोदय सहित मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को जांच हेतु शिकायत पत्र प्रस्तुत किया  है वहीं सरपंच ललित ढ़ीढ़ी से उक्त फर्जी मामले की जानकारी ली गई तो उन्होंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि समस्त भुगतान प्रस्तुत बिल  के आधार पर ही हुए है पश्चात उनके द्वारा राशि आहरित की गई वही लामबंद पंच उपसरपंच का यह  आरोप की सरपंच द्वारा किसी प्रकार की कोई बैठक सभा इत्यादि नही लिया जाता तथा प्रस्ताव भी प्रस्तुत नही किया जाता केवल  सरपंच अपने मन मर्जी से कार्य करते है आहरित की गई राशि भी अपने कथित बहन प्रमिला रात्रे,एवं दोस्तों के नाम से जो कोई लाइसेंसी ठेकेदार नही है उनके बिल की छाया प्रति संलग्न कर शिकायत की गई है उन्होंने यह भी बताया कि ग्राम छटेरा सरपंच के नाम से भी   फर्जी बिल बनवाकर एक बड़ी राशि आहरित किए जाने का आरोप लगाया है उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि इस प्रकार ग्राम पंचायतों को प्राप्त होने वाले  अन्य मद, विधायक संसद निधि सहित गौण खनिज की कितनी राशि सरपंच द्वारा गबन किया गया यह सब भी जांच का विषय है उन्होंने कहा कि आकोली कला  सरपंच के उक्त गबन वाली  कृत्य से भी कुछ जनपद अधिकारियों के  नाराज होने की बात भी सामने आई है   ग्राम आकोली कला के असंतुष्ट पंच, उप सरपंच रिकेश्वर कोसले ने जनपद पंचायत आरंग के कुछ अधिकारियों कर्मियों के कार्यशैली  पर भी सन्देह की उंगली उठाई है उन्होंने कहा कि अब तक उनके द्वारा अनेक शिकायत पत्र के माध्यम से कई गंभीर प्रकरण मे अनियमितता की जांच हेतु पत्र दिया परन्तु अधिकारी कर्मचारी पैसे लेकर जांच को ठंडे बस्ते में डाल देते है इसका उदाहरण स्वरूप उन्होंने सवाल उठाया कि बगैर 14 वें 15वें वित्त से कार्य हुए  बजरी गिट्टी अथवा अन्य निर्माण कार्य का परीक्षण किए जिसकी राशि ही छ माह पश्चात जारी की जाती है बगैर कार्य परीक्षण किए अधिकारियों कर्मचारियों द्वारा   किस आधार पर  राशि जारी कर दिया गया यह बहुत बड़ा सवाल है तथा उनके सन्देह पूर्ण कार्य शैली की जांच की शिकायत जिलाधीश महोदय से किया गया गया उप सरपंच रिकेश्वर कोसले एव असन्तुष्ट पंचों ने बताया कि जनपद पंचायत आरंग से  मात्र पांच किलोमीटर दूरी स्थित ग्राम आकोली कला  विकास के नाम पर शून्य एवं बहुत पिछड़ा हुआ है यहां ग्राम पंचायत भवन पूरी तरह जर्जर  हो चुका है जिसका नवीनीकरण आवश्यक हो गया है भवन की दयनीय स्थिति देखते हुए टीकारण अभियान ग्राम शाला में कराया गया था यहां की व्यवस्था पूर्व की ही भांति चल रही है न ही कोई जनहित मूलभूत कार्य हो रहे है और न ही रोजगरउन्मुखी कार्यों को तरजीह दी जा रही है अब तक  ग्राम में कोई विकास कार्य नही हुआ यहां तक ग्रामीणों के राशन कार्ड बनाने का विरोध भी सरपंच ललित ढ़ीढ़ी द्वारा किया जाता है ऐसे में ग्राम के विकास की बात सोचना भी बेमायनी है इसकी समस्त जिम्मेदारी ग्राम सरपंच ललित ढ़ीढ़ी की है 

बुधवार, 21 जुलाई 2021

ग्राम गोढ़ी का विकास पुरुष सरपंच गोपाल धींवर

 ग्राम गोढ़ी का विकास पुरुष  सरपंच गोपाल धींवर 

 


अलताफ हुसैन

रायपुर (छग वनोदय,फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) राजनीति लोकतंत्र का ऐसा क्षेत्र है जिसमे आम जनता के मूलभूत सुविधाओं के साथ उनकी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके इसके लिए जनता द्वारा जनमत से अपना प्रतिनिधि लोकतांत्रिक ढंग से  मतदान के माध्यम से कर अपना प्रतिनिधि का चयन करता है यह प्रक्रिया भारत जैसे लोकतांत्रिक देश मे प्रति पांच वर्षों में एक बार होता है यदि एक ही व्यक्ति को जन मत बार बार प्राप्त हो इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि उक्त जन प्रतिनिधि केवल क्षेत्र में ही नही बल्कि आम जनता के मर्म मस्तिष्क में भी राज कर रहा है ऐसे जन प्रतिनिधि विरले होते है जिनकी गिनती उंगलियों में गिनने के लायक होती है ऐसे ही हम बात करने जा रहे है  एक ऐसे जनप्रतिनिधि की जो वास्तव में केवल धन ऐश्वर्य पद प्रतिष्ठा प्राप्ति की लालसा में राजनीति नही करता अपितु आम जनता के दिलों में राज करने की अद्भुत क्षमता अपने मे समाए किस प्रकार आम जनता के मौलिक अधिकारों के प्राप्ति और समस्याओं का निराकरण किया जा सके यह मूलमंत्र को लेकर चलता है ऐसे अद्भुत एवं विरले व्यक्तित्व का नाम गोपाल धींवर है जो आरंग विधान सभा एवं जनपद के अंतर्गत ग्राम गोढ़ी के तीन बार के सरपंच रह चुके है उन का मत है कि जनता की सुविधा और समस्या का मूल निराकरण एवं आम जनता और जन प्रतिनिधि के मध्य परस्पर समन्वय ही सर्वश्रेष्ठ राजनीति का मूल मंत्र है बेबाक एवं निर्भीक राजनीति के प्रारंभिक अवस्था के बारे में सरपंच गोपाल धींवर ने  बताया कि अल्प आयु से ही लोगों के प्रति कुछ करने का मन था एक बार ग्राम गोढ़ी में कुछ ग्रामीणों के अतिक्रमण को लेकर प्रशासनिक अमले द्वारा उनके मकान को जमीदोज कर दिया गया  पीड़ित ग्रामीणों के रुदन एवं प्रलाप से उनका मन बुरी तरह से द्रवित हो गया और वे उनकी समस्या को लेकर स्थानीय जन प्रतिनिधियों एवं  शासन,प्रशासन, के समक्ष हाथ से लिखे लेटर को लेकर लड़ाई प्रारंभ हुई तब तात्कालिक विधायक  श्री सत्य नारायण शर्मा जी के सहयोग से अतिक्रमण की चपेट में आए गरीब ग्रामीणों को उनका आशियाना दिलाने में सफल रहा उसके पश्चात लोगों के छोटे बड़े आम समस्याओं के लिए वे लगातार कटिबद्ध रहे और उनकी समस्याओं का निदान कराते रहे  वर्ष 2005-06 के आसपास  ग्रामीणो द्वारा ही उन्हें सरपंच के रूप में चुनाव लड़ने उत्प्रेरित किया परन्तु उस वक्त मेरे द्वारा ही किसी अन्य व्यक्ति के नाम को आगे बढ़ाया गया जैसा कि अमूमन यह देखा जाता रहा है कि अन्य जन प्रतिनिधि की भांति तात्कालिक नव निर्वाचित उक्त सरपंच  द्वारा भी जन भावना एवं उनकी समस्याओं का निराकरण करने  में अक्षम, अयोग्य रहा तब आगामी वर्ष 20010 के करीब चुनाव में आम ग्रामीणों के द्वारा मुझे पुनः ग्राम पंचायत चुनाव लड़ने कहा गया तब मेरे द्वारा  जन भावना का सम्मान करते हुए मैने ग्राम पंचायत चुनाव लड़ा और विजयी रहा उसके पश्चात यथा संभव ग्राम की उन्नति, विकास, एवं अन्य सुविधाओं एवं समस्याओं के निराकरण हेतु उन के एवं पंचों के द्वारा अनवरत  प्रयास किया जा रहा है   ग्राम गोढ़ी सरपंच एव वर्तमान मे सरपंच संघ के संभागाध्यक्ष  गोपाल धींवर का कथन है कि ग्राम में स्वास्थ्य शिक्षा पर पूरा फोकस किया गया है तथा इसके लिए हॉस्पिटल निर्माण किया जाना अति आवश्यक है क्योंकि स्थानीय ग्राम वासी के अलावा आसपास ग्राम के लगभग दस हजार से ऊपर ग्रामीण निवासरत है हॉस्पिटल की सुविधा मिलने से बेहतर स्वास्थ्य सुविधा यहां प्राप्त हो सकती है वही शाला परिसर में जर्जर हो चुके पानी टँकी को ढहा कर नए पानी टँकी का निर्माण भी प्रमुखता में है क्योंकि इससे शाला के विद्यार्थियों,ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध हो सकेगा वही युवाओं को शारीरिक और बौद्धिक विकास हेतु मिनी स्टेडियम की मांग  नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ.शिव डहरिया    जिला सी.ई.ओ.  से मिलकर  किया जा चुका है मृदुभाषी, प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी सरपंच गोपाल धींवर ने आगे बताया कि छग शासन की महती योजना नरवा, गरुवा,घुरूवा बाड़ी, के कार्यों पर फोकस किया जा रहा है जिसमे बाड़ी कार्य जारी है जिसे ग्राम की महिला समूहों द्वारा संचालित किया जा रहा है  इससे उन्हें अतिरिक्त आय अर्जित कर रही है तथा स्वावलंबी और आत्म निर्भर बन रही है यही नही ग्राम की महिलाओं को अन्य उत्पाद के माध्यम से रोजगार मूलक कार्यों में संलग्न किया जाएगा जिससे उनकी आय में और इजाफा हो इसके लिए उन्होंने  बाड़ी के और विस्तार किए जाने पर भी  जोर दिया है वही गौठान को लेकर वन विभाग के द्वारा प्लांटेशन एवं नर्सरी होने के कारण परस्पर समन्वय नही बन पा रहा है इसके लिए प्रयास किए जा रहे है भूमि चयन होते ही  स्मार्ट एवं आदर्श गौठान का निर्माण किए जाएंगे ऐसा प्रयास उनकी टीम द्वारा किया जा रहा है वही सरपंच गोपाल धींवर ने बताया कि गौ धन (गोबर) क्रय कार्य भी जारी है तथा वर्मी कंपोस्ट खाद निर्माण पर विशेष ध्यान दिए जा रहे है श्री धींवर ने चिंता व्यक्त करते हुए ग्रामीणों के मौलिक अधिकार को पहली प्राथमिकता दिए जाने और उसे पूरा करने का प्रयास बताया उन्होंने बताया कि ग्राम गोढ़ी में महाविद्यालय,स्वास्थ्य हेतु अस्पताल खोलने की योजना  भी है  ताकि आसपास के दस बीस ग्राम क्षेत्र के हजारों मरीजो एवं  प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अन्यंत्र न भटकना पड़े तथा वे पूरी तरह से स्वास्थ्य एवं शिक्षा के अधिकार का लाभ उठा सके राजधानी से सटे ग्राम को भी यहां शहर की भांति शिक्षा स्वास्थ्य का लाभ एक ही स्थान ग्राम गोढ़ी में प्राप्त हो यही लक्ष्य को लेकर वे आगे चल रहे है सड़क बिजली पानी पर पूरा ध्यान है इसके लिए वर्षा पूर्व 47 लाख की मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना अंतर्गत ग्राम गोढ़ी मुख्य मार्ग से तोडग़ांव तक पहुंच मार्ग निर्माण कराया गया सुगम सड़क योजनांतर्गत,34 लाख रुपये की राशि से प्राथमिक शाला से मिडिल स्कूल तक मार्ग उन्नयन कार्य संपन्न हुआ उन्होंने आगे बताया कि 14 वें वित्त की राशि से सीसी रोड एवं ग्राम में भूमिगत नाली निर्माण जिसका कार्य अपने अंतिम चरण में है पूरा किया गया है शीघ्र ही शेष कार्य पूर्ण किए जाएंगे  ग्राम गोढ़ी सरपंच गोपाल धींवर ने आगे बताया कि कोरोना महामारी काल के दौरान ग्राम पंचायत गोढ़ी के समस्त पंच सरपंच ग्रामीणों के साथ खड़ा रहा उन्हें रोजगार ग्यारंटी मनरेगा के तहत  सभी ग्रामीणों को रोजगार मुहैया कराया गया साथ ही कोई ग्रामवासी भूखा न सोए इसके लिए राशन व्यवस्था दुरुस्त की गई समय समय पर  अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती रही है दूसरी लहर के पूर्व टीकाकरण अभियान भी चलाया गया जिसमें समस्त ग्रामवासियों ने हिस्सा लिया उनके द्वारा किए जा रहे जनहित कार्य समस्त ग्रामवासियों के सुखदुख में सदैव साथ खड़े रहने तथा उन्हें अपना परिवारिक सदस्य मानने वाले  ग्राम गोढ़ी के सरपंच गोपाल धींवर के संदर्भ में जब आम ग्रामीणों से उनके व्यक्तित्व के बारे में चर्चा की गई तो लोगों ने उन्हें सहृदय,मृदुभाषी, बताया तथा उनके मूलभूत अधिकारों,समस्याओं के निराकरण हेतु सदैव  जुझारू व्यक्ति बताया यहां तक एक वृद्ध ग्रामीण ने यहां तक कह दिया कि ग्राम गोढ़ी राजनीति का वह जन्म स्थली रही है जहां से बड़े राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिज्ञ दिए है और हमे यह प्रतीत होता है कि गोपाल धींवर केवल सरपंच पद तक सीमित रहने वाला राजनीतिज्ञ नही बल्कि भविष्य  राजनीति के क्षितिज में चमकने वाला वह सितारा है जो अपने साथ ग्रामीणों का और ग्राम का नाम रौशन करेगा क्योंकि वह केवल अपने ग्राम के सीमित क्षेत्र में ही राजनीति नही करता बल्कि आसपास के कई ग्रामवासियों के दिलों में  राज करता है  जो उसके राजनीतिक यात्रा का मार्ग प्रशस्त करता है 

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

बिलासपुर प्रेस क्लब में कौन बनेगा अध्यक्ष?*

 बिलासपुर प्रेस क्लब में कौन बनेगा अध्यक्ष?*

*हम सब मिलकर पत्रकारिता की महत्ता को कायम रखेंगे- तरुण*



बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर जिले में विभिन्न पत्रकार संगठन है जो अपने संगठन के बैनर तले पत्रकारों की हित में कार्य कर रहे है । इसी कड़ी में बिलासपुर प्रेस क्लब के वर्तमान पदाधिकारियों ने भी अपने कार्यकाल में अध्यक्ष तिलकराज सलूजा के कुशल नेतृत्व में पत्रकारों के हित में कई सराहनीय कार्य किए है । अब यहां पर एक बार फिर पदाधिकारियों की चुनाव होने जा रहा है । जिसमें तीन वरिष्ठ पत्रकार बंधु अध्यक्ष के पद पर चुनाव मैदान में उतरे है , अब बिलासपुर प्रेस क्लब का अगला अध्यक्ष कौन बनेगा ,यह तो आने वाले 24 जुलाई को ही पता चलेगा ।



 बिलासपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष, सहसचिव और एक कार्यकारिणी सदस्य के पद पर चुनाव 24 जुलाई को होने जा रहा है । जिसमे विकास पैनल से अध्यक्ष पद पर विरेन्द्र गहवई, उपाध्यक्ष विनीत चौहान, सचिव मदन सिंह ठाकुर, कोषाध्यक्ष जितेंद्र सिंह ठाकुर, सहसचिव अशोक व्यास ,कार्यकारिणी सदस्य के लिए रितु साहू मैदान में है । इसी तरह विश्वास पैनल से वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र पाण्डेय, उपाध्यक्ष विनय मिश्रा, सचिव रवि शुक्ला, कोषाध्यक्ष मधु शर्मा, सहसचिव भूपेन्द्र नवरंग, कार्यकारिणी सदस्य काजल कश्यप के अलावा तीसरी पैनल आशिर्वाद पैनल है । जिसमें युवा पत्रकार मनीष शर्मा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष अमित मिश्रा, सचिव इरशाद अली, कोषाध्यक्ष देवदत्त तिवारी ,सहसचिव भूपेश ओझा, कार्यकरिणी सदस्य पद पर नीरज शर्मा बिलासपुर प्रेस क्लब के चुनावी समर में उतरे हुए है । उक्त तीनों पैनल के पत्रकार साथी शहर के जानेमाने पत्रकार है । जिन्होंने हमेशा प्रेस क्लब के साथ ही अन्य पत्रकार संगठन में सहभागिता निभाकर पत्रकारों की हित को लेकर हमेशा सड़क की लड़ाई लड़ी है । इस बार अध्यक्ष बनने और अपने पैनल के सभी प्रत्याशियों को चुनाव में विजयश्री दिलाने के लिए पत्रकारों से संपर्क बनाए हुए है और चुनाव जीतने के बाद पत्रकारों के हित में कई वादे किए जा रहे है मगर अध्यक्ष कौन बनेगा इसे लेकर पत्रकार साथी भी कुछ नहीं बोल रहे है । जिससे सभी प्रत्याशियों के मन में घबराहट बनी हुई है कि आखिर बिलासपुर प्रेस क्लब का अध्यक्ष कौन बनेगा?

 वहीं बिलासपुर प्रेस क्लब के पदाधिकारियों की चुनाव को लेकर तिफरा, बिलासपुर निवासी व प्रेस क्लब सदस्य एवं राज्य स्तरीय साप्ताहिक समाचार पत्र सर्वव्यापी के प्रधान संपादक तरुण कौशिक ने कहा कि बिलासपुर प्रेस क्लब का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, सहसचिव, कोषाध्यक्ष और कार्यकारिणी सदस्य कोई भी बने ,निर्वाचित पदाधिकारी पैनल से हटकर केवल पत्रकारों की हित में कार्य करें क्योंकि आज कई पत्रकार पूरी तरह से उपेक्षित है । हम सब पत्रकार साथियों को मिलकर जमीनी स्तर पर  पत्रकारिता करने वालों को साथ देने की आवश्यकता है और पत्रकारिता की आड़ में वसूलीबाज पत्रकारों के खिलाफ हमें खुद आगे आकर कार्रवाई कराने होगें ताकि पत्रकारिता का महत्व बनी रहे है । बहरहाल उक्त पैनल के प्रत्याशियों में से कौन - कौन विजयी घोषित होते है ,यह तो 24 जुलाई को मतगणना के पश्चात ही पता चलेगा ।

विलुप्त प्रजाति के 82 से ऊपर वन संपदा का अकूत खजाना है रायपुर से लगे ग्राम गोढ़ी नर्सरी में

 विलुप्त प्रजाति के 82 से ऊपर वन संपदा का अकूत खजाना है  रायपुर से लगे ग्राम गोढ़ी नर्सरी में

 लताफ हुसैन 

(वनों के संरक्षण,संवर्धन में वन विभाग द्वारा कराए गए कार्यों पर विकास परक रिपोर्ट के लिए संपर्क करें 7869247588 पर जुड़ें)

रायपुर (छग वनोदय पत्रिका)विशाल पृथ्वी का श्रृंगार  पेड़ पौधे वृक्ष की हरियाली है यदि इस धरा पर पेड़ पौधे न रहे तो पूरी धरती मरुस्थल एवं नीरस सी प्रतीत होगी क्योंकि इस धरती पर वृक्ष और पेड़ पौधे की हरियाली ही हमारे मन को आल्हादित कर आकर्षित करते है और ईश्वरीय संरचना के अद्भुत अविश्वसनीय कलाकृति के  ऐसे अलौकिक तार्किक उपहार के प्रति हमारा मस्तिष्क  श्रद्धानवत हो जाता है हालांकि ऐसे प्राकृतिक संरचना के मात्र  निर्माण कल्पना से ही मानव स्वयं को असहाय,एव निःशक्त मानता है फिर भी इस ईश्वरीय संरचना के पेड़ पौधों के  संरक्षण संवर्धन कर उसके अस्तित्व को अक्षुण्य बनाए रखने में  अपना महती योगदान अवश्य प्रदान कर सकता है इसके लिए भारत के लोकतांत्रिक देश में पृथक वन एवं जलवायु विभाग का गठन किया गया है जिनका कार्य ही प्राकृतिक को सहेज  संरक्षण संवर्धन कर ईश्वरीय देन अमूल्य,प्राकृतिक धरोहर को सुरक्षा प्रदान करना है ताकि मानव को प्राकृतिक से ऑक्सीजन सहित,पेड़ पौधे से मिलने वाली अमरत्व प्रदान करने वाली जड़ी,बूटी, एवं औषधि जैसे अदृश्य लाभ प्राप्त  हो सके साथ ही पर्यावरण,प्रदूषण मुक्त शुद्ध जलवायु वातावरण निर्मित किया जा सके है  इसके लिए  हमारे प्रदेश के वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग एवं उसके अनुषांगिक धड़ा इस संदर्भ में बड़ी मुस्तैदी के साथ कार्य कर रहे है मैदानी क्षेत्रों में प्लान्टेशन सहित अनेक नर्सरियों में पेड़ पौधों का बीजारोपण कर उन्हें आधुनिक तकनीक से पैदावार कर प्रदेश को हराभरा बनाने दृढ़ संकल्पित है प्रदेश भर में लगभग तीन सौ नर्सरीयों में बीज, रायजोम,रूट सूट के माध्यम से  ऐसे पेड़ पौधों का उत्पादन  पैदावार कर संरक्षित  किया जा रहा है जो या तो वनों से प्रायः लुप्त हो रहे है या फिर उनका अस्तित्व समाप्त हो चुका है ऐसे पेड़ पौधे जिनका धार्मिक मान्यता सहित औषधि युक्त भी माना जाता है उसे भी संरक्षित किया जा रहा है ऐसे आधुनिक नर्सरी में प्रदेश भर मे अपनी एक पृथक पहचान रखने वाले   नर्सरी में रायपुर से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम गोढ़ी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है जहां अति आधुनिक तकनीक से टेशू कल्चर लैब के माध्यम से पैदावार ली जा रही है तथा विलुप्त प्रजाति के पेड़ पौधों का संरक्षण संवर्धन किया जा रहा है अनुसंधान एव वन विस्तार वन मंडल रायपुर के अन्तर्गत संचालित गोढ़ी नर्सरी वन विभाग का ही धड़ा है जहां पर ऐसे पौधों को संरक्षित किया जा रहा है जो प्राकृतिक वनों से लगातार विदोहन के कारण उनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका था इस सन्दर्भ में अनुसंधान एवं विस्तार केंद्र वन मंडल रायपुर की डीएफओ सलमा फारुखी ने बताया कि  अनुसंधान एवं विस्तार  केंद्र रायपुर में हमारे दो फेस नर्सरी बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ कार्य कर रही है फेस वन ग्राम जोरा की केंद्रीय रोपणी जहां पर आधुनिक तरीके से पेड़ पौधों का संरक्षण कर संवर्धन किया जा रहा है विशेष कर विलुप्त प्रजातियों के पेड़ पौधों के अस्तित्व बचाने विशेष प्रयास किए जा रहे है वही फेस टू ग्राम गोढ़ी नर्सरी जहां की स्थिति और भी कहीं ज्यादा बेहतर है वहां वनों के भिन्न भिन्न प्रजाति के विलुप्त होते पेड़ पौधों को अति आधुनिक तकनीक से उपचार रखरखाव सहित उसके उपज पर विशेष प्रयोग कर उनके अस्तित्व को बचाया जा रहा है इसमें विभाग को बड़ी सफलता मिली है वही  विभाग द्वारा अन्य संचालित नर्सरियों की दशा दिशा सुधारने भी मुख्यालय में पत्र व्यवहार किया गया है डीएफओ सलमा फारुखी ने बताया कि यदि  स्वपोषित नर्सरी के रूप में अन्य नर्सरी का नियमित संचालन सुचारू ढंग से होता है तो भविष्य में  नर्सरी आर्थिक रूप से  स्वावलंबी ,एवं आत्मनिर्भर बन सकती है तथा अर्जित आय से नर्सरी में नए आधुनिक प्रयोग कर पेड़ पौधे और वनों का विस्तार में सहभागी बन सकती है 


              श्री जयजीत आचार्या

       (अनुसंधान वन विस्तार केंद्र रायपुर)

वही अनुसंधान वन विस्तार केंद्र के उप वन मंडलाधिकारी जयजीत आचार्या साहब जो वन विभाग में 35 वर्षों से प्रदेश के भिन्न भिन्न वन मंडलों के अंतर्गत अपनी सेवाएं देते आए है तथा उन्हें वानिकी,एवं प्लांटेशनो सहित विभागीय कार्यों का एक लंबा अनुभव रहा है कर्तव्यनिष्ठ,ईमानदार, समर्पित सेवा भाव,एवं कार्यों के प्रति अनुशासन का मूलमंत्र अंगीकार किए श्री जे.जे.आचार्या साहब  ने कार्यों के प्रति कभी समझौता नही किया जिसकी वजह से वे अनेक लोगों के आंखों की किरकिरी बने रहे तथा अनेक वैधानिक प्रक्रियाओं से भी उन्हे  दो चार होना पड़ा फिर भी इन सब को बलाए ताक रख अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहे तथा लंबे समय तक अनुसंधान एवं  विस्तार केंद्र वनमंडल रायपुर  में पदस्थ रहते हुए विभागीय कर्मियों के मध्य अपना अनुभव साझा कर रहे है  उन्होंने बताया कि छग  प्रदेश में  प्राकृतिक वनों में मानव द्वारा घुसपैठ कर अवैध कटाई और विदोहन के कारण ऐसी प्रजाति के पेड़ पौधे विलुप्त होने के कागार पर पहुंच चुके है जिससे वनों की आभा दमकती थी इन्ही विलुप्त प्रजाति के क्लोन, पत्तो,  तनों से टेशू कल्चर एवं आधुनिक पद्धति से उसका संरक्षण संवर्धन किया जा रहा है जिनमे साल वृक्ष के अलावा विभिन्न 24 प्रकार के बांस का उत्पादन एवं फसल ली जा रही है जिनमे देहरादून पालम पुर,हिमाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यों से क्रय कर लाए गए बांस  ग्राम गोढ़ी में मौजूद है जिनमे बाल्टी बांस,नार्थ स्टिक बन्गोसा,बामिन,लोटा या कलश बांस,इत्यादि प्रमुख है जो त्रिपुरा मेघालय राज्यों से क्रय कर मंगवाए गए इनकी पैदावार आधुनिक पद्धति से टेशू कल्चर लैब के माध्यम से की जा रही है उप वन मण्डलाधिकारी जे जे आचार्या साहब ने बताया कि ग्राम गोढ़ी जो मुरुमी स्थल होने से वहां नर्सरी संचालन एक दुरूह एवं चुनौतीपूर्ण कार्य था फिर भी उपजाऊ मिट्टी के साथ रसायनिक एवं बर्मी कंपोस्ट खाद से क्षेत्र में हरियाली प्रसार किया गया यहां तक नर्सरी के आसपास नमी बनी रहे इसके लिए एक बड़ा तालाब खनन करवाया गया जो नर्सरी के लिए प्राणवायु साबित हो रही है उन्होंने आगे बताया कि प्राकृतिक वनों से लगातार विदोहन की वजह से चार, गोलू,गोंद, शीशम,मैदा,अश्वगंधा,शमी फूल, त्रिखुर,कपूर,वज्र,चन्द्रमुल,गुल बकावली, जिसे अमरकंटक से लाया गया था हथजोड़ा,जंगली लहसुन, हींग,लौंग,इलायची,  जैसे औषधि पेड़ पौधे विलुप्त हो रहे है इसके लिए विभाग द्वारा इनका पैदावार कर विस्तार किया जा रहा है वही दहिमन, पेड़ जो प्राचीन काल मे घाव के उपचार में अति उपयोगी माना जाता था उसका भी संरक्षण कर संवर्धित किया जा रहा  है


             नर्सरी प्रभारी सी. एस. धुरंधर

धार्मिक मान्यता वाले पेड़ों में कृष्ण वट वृक्ष की अति महत्वता बताई गई है वेदों पुराणों में उल्लेख मिलता है कि  श्री कृष्ण भगवान अपने बाल सखा,भक्तों को इसी कृष्ण  वट वृक्ष के पत्तो में दही, घी खिलाया करते थे आश्चर्य का विषय यह है कि कृष्ण वट वृक्ष के पत्ते दोना का आकार लिए होते है वही अन्य धार्मिक मान्यता प्राप्त वृक्षों में शिवलिंगी,रुद्राक्ष,भद्राक्ष, सहित भिन्न भिन्न प्रजाति के अनेक पेड़ वृक्ष मौजूद है वही कल्पवृक्ष भी है जिसकी मान्यता यह बताई गई कि यह बारहमास हरा होता है इसके तना एवं शाखाएं स्निग्ध होती है तथा वर्षा जल को अपने अंग सहित शाखाओं एवं जड़ परिसर क्षेत्र में सवशोषित कर रखता है इसके नीचे बैठने से व्यक्ति निरोग एवं प्यास विहीन रहता है यही कारण है कि अनेक इष्ट देवी देवता ऋषि मुनियों ने  इसके नीचे बैठ कर कठिन तप किया श्री जे.जे. आचार्या ने बताया कि आम लोगों को पर्यावरण के प्रति सजग बनाए जाने हेतु नर्सरी में प्रशिक्षण  शाला भी समय समय पर लगाए गए जिनमे चार वर्ष पूर्व शाला के बच्चों को किस तरह पेड़ पौधों का रोपण किया जाता है उन्हें प्रशिक्षण दिया गया यही नही मृदा एवं खाद  मिश्रण युक्त उपजाऊ मिट्टी के  पॉलीथिन बैग में  रखकर बीजारोपण एवं उस से अंकुरित पेड़ का विक्रय भी किया गया तथा विभाग की ओर से उन्हें दस हजार रुपये नगद राशि देकर प्रोत्साहित किया गया साथ ही उनके द्वारा क्रय किए गए पेड़ की राशि भी शाला प्रबन्धन को सौप दी गई ताकि शाला के नन्हे बच्चों को पेड पौधों के पैदावार,कर प्राप्त आय  पर्यावरण क्षेत्र के विकास में सहयोग प्राप्त हो सके परंतु, इसके निराशाजनक परिणाम सामने आए उन्होंने आगे बताया कि पलाश के दुर्लभ प्रजाति के भी  सफेद, पीला रंग के पलाश भी ग्राम गोढ़ी नर्सरी में है जो जबलपुर से मंगाया गया था अभी उसे भी संरक्षित कर संवर्धन किया गया है जो अपने आप मे एक उदाहरण है गोढ़ी नर्सरी प्रभारी सी.एस. धुरंधर ने बताया कि लैब में भिन्न प्रजाति के बैम्बूस,, बलकोआ,एस्पर, न्यूटांगस,जैसे पौधों को रिसर्च किया गया है जिसके सारगर्भित परिणाम सामने आए है टेशू कल्चर  जैसे आधुनिक पद्धति  के संदर्भ में नर्सरी प्रभारी सी.एस. धुरंधर ने बताया कि किसी भी पेड़ के कलम को लेकर अनेक बार रसायनिक मिश्रित शुद्ध जल से  उसे धोना पड़ता है  ताकि कलम को बैक्टीरिया फंगस, रहित बनाया जा सके पश्चात उसे लेमिनार (थियेटर) ले जाते है वहां केमिकल से पुनः सफाई कर कांच के मर्तबान जिसमे जेल होता है उसमें कलम रोप दिया जाता है साथ ही उसमे हार्मोन डाल कर उसकी वंश वृद्धि की जाती है उक्त एक कलम से ढाई सौ से पांच हजार पौधे तैयार किए जा सकते है नर्सरी प्रभारी सी.एस. धुरंधर ने आगे बताया कि  नव रोपित कलम शाखा से हमने विलुप्त प्रजाति के पेड़ पौधों को संरक्षित किया है तथा उसकी वंश वृद्धि की है इसके लिए हमेशा कल्चर रूम,मिस्ड चेंबर,एवं हार्ड चेंबर का तापमान पच्चीस से तीस डिग्री के तापमान (ट्रेम्प्रेचर) में ही रखा जाता है पश्चात इसे मिस्ड चेंबर में ले जाया जाता है जहां सामान्य तापमान में इन्हें स्प्रिंकलर पद्धति से सिंचाई की जाती है अधिक तापमान होने स्वचालित एक्जास्ट पद्धति से गर्म हवा बाहर निकल जाती है वही चेंबर में स्प्रिंकलर पद्धति से स्वचालित सिंचाई प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है पश्चात इन्हें मिस्ड चेंबर में रख सामान्य तापमान में 30-से 35 डिग्री में रखा जाता है ताकि उक्त वातावरण को नन्हे पौधे स्वशोषित कर सर्वाइव करे उन्होंने बताया इस टेशू कल्चर प्रक्रिया में बांस ग्यारह माह तथा केला के पौधे तैयार होने में छ माह लग जाते है नर्सरी प्रभारी धुरंधर आगे बताया कि गोढ़ी नर्सरी में वर्तमान में लगभग पुरानी एवं नई हरियर योजना अतर्गत एक लाख पचास हजार पौधे भिन्न भिन्न प्रजाति के  वन संपदा  उपलब्ध है जो ग्राम गोढ़ी के नर्सरी में एक ही स्थान पर उपलब्ध है 


                श्री गणेशराम वर्मा

           सहायक गोढ़ी नर्सरी प्रभारी

 जिनमे मुख्यतः बिरहा, मुंडी,कुल्लू,गोंद,काला शीशम, बीजा,लौंग,तेजपत्ता,ज़िंगोबाइलोबा, मोहगनी,कुसुम,तेंदू,भेलवा, अध कपारी, सहित 80 प्रकार के वन  औषधि,संपदा संग्रहित है जो स्वमेव एक उदाहरण है इसका निरीक्षण करने भी अनेक विद्यार्थी,और पर्यावरण प्रेमी नर्सरी आते है नर्सरी प्रभारी सी एस. धुरंदर ने बताया कि क्षेत्र  के परिक्षेत्राधिकारी पुनीत राम लसेल है जिनका मार्ग दर्शन समय समय पर मिलता है तथा उनके ही मार्ग दर्शन में यहां कार्य संपादित होता है रेंजर लसेल साहब एक कर्तव्य निष्ठ एवं सुलझे हुए अधिकारी है  उनके लंबे अनुभव का लाभ नर्सरी को प्राप्त हो रहा है वही सहायक नर्सरी प्रभारी गणेशराम वर्मा ने बताया कि प्रतिदिन रोपण कार्य हेतु चार से पांच मजदूर लगाए जाते है कार्य अधिक होने पर इनकी संख्या में भी वृद्धि की जाती है सहायक प्रभारी गणेशराम वर्मा ने बताया कि रोपण कार्य हेतु उपजाऊ खाद एवं मिट्टी मिश्रण युक्त पॉलीथिन में  भरा जाता है पश्चात उसमे पौधे रोपे जाते है यही नही मदर बेड में भी नई तकनीक से रोपण कार्य कर उन्हें पॉलीथिन बैग में भरा जाता है तथा रोपे गए पौधों में नियमित सिंचाई की जाती है तथा मांग अनुसार पौधे सशुल्क प्रदान किया जाता है सहायक प्रभारी ने बताया कि अर्जित आय से ही नर्सरी की व्यवस्था एवं संचालन कार्य निष्पादित होता है सिंचाई व्यवस्था के नाम पर चार बोर है तथा संकलित तालाब के पानी का उपयोग भी समय समय पर किया जाता है निश्चित ही ग्राम गोढ़ी स्थित नर्सरी अपने वृहद भूभाग में हरियाली के प्रसार में विलुप्त प्रजाति के 82 से ऊपर  वन संपदा का अकूत खजाना समेटे हुए है जो काबिले तारीफ है 

ईद उल अज़हा के अवसर पर सीरत मैदान बैजनाथ पारा में बकरों का बाजार सजा

 ईद उल अज़हा के अवसर पर सीरत मैदान बैजनाथ पारा में बकरों का बाजार सजा


रायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) मुस्लिम समुदाय का अगले सप्ताह मनाए जाने वाला त्योहार ईद उल अज़हा  में बकरों की कुर्बानी देने की धार्मिक परंपरा है तथा प्रत्येक मुस्लिम को कुर्बानी करना अनिवार्य होता है गिरती आर्थिक स्थिति एवं कोरोना काल के चलते अनेक त्योहार केवल मात्र औपचारिक बन कर रह गए है फिर भी परंपरा का निर्वहन प्रत्येक वर्ग समुदाय करता अवश्य है इसी कड़ी में मुस्लिम समुदाय द्वारा प्रत्येक वर्ष मनाए जाने वाला त्योहार ईद उल अज़हा यानी बकरीद इसी माह की 21 जुलाई  को है जिसमे प्रत्येक वह मुसलमान जो सम्पन्न है वो नबियों की परंपरा का निर्वहन करता है और रब की राह में जानवर (बकरे) की कुर्बानी दे कर अपना अकीदत तक़वा प्रस्तुत करता है  इस वर्ष भी राजधानी रायपुर के बैजनाथ पारा स्थित सीरत मैदान में छग सहित मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से व्यपारी पहुंच रहे है तथा कुर्बानी हेतु बकरे का बाजार सज रहा है दो दिन पूर्व ही पधारे  चिरमिरी मनेन्द्रगढ़  से आए व्यापारी मोहम्मद सरवर ने बताया कि उनके पास इस समय पन्द्रह हजार से साठ हजार रुपये तक बकरे है वही छिंदवाड़ा से आए अन्य व्यापारियों के पास भी इसी दर पर बकरे उपलब्ध बताया

 वही कुछ व्यापारियों का कथन की छग प्रदेश के राजनांदगांव, कवर्धा सहित अन्य क्षेत्र के व्यापारी भी पहुंच रहे है तथा सप्ताह भर चलने वाले उक्त बाजार में पूरे बकरे खपने की उम्मीद जताई है वही कुछ व्यापारी नागपुर और महाराष्ट्र के अन्य जिलों में भी स्थानीय छग प्रदेश के बकरे विक्रय हेतु भेजे जाते है जहां पर इनकी अच्छी कीमत मिलती है फिलहाल रायपुर में आसन्न ईद उल अज़हा को देखते हुए  बकरों का बाजार सीरत मैदान में सज चुका है तथा कम एवं माकूल दाम में बकरों की खरीद फरोख्त तेजी से जारी देखी जा रही है  वही बकरा बाजार में लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग और फेस कव्हर किए लोगों को ही प्रवेश दिया जा रहा है तथा लोगों को कोरोना गाइडलाइन का पालन हेतु निर्देश दिए जा रहे है

शनिवार, 10 जुलाई 2021

आरंग मार्ग में दस दिनों से आर टी ओ रायपुर द्वारा सघन जांच -पांच किलोमीटर तक सड़क में जाम की स्थिति

 आरंग मार्ग में दस दिनों से आर टी ओ रायपुर द्वारा सघन जांच -पांच किलोमीटर तक सड़क में जाम की स्थिति


रायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) नेशनल हाई वे आरंग मार्ग में बंद हो चुके पुराने टोल टैक्स  प्लाजा के समीप रायपुर आर टी ओ के द्वारा सघन जांच विगत दस दिनों से अनवरत जारी है जहां पर वेस्ट बंगाल उ.प्र. मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों की गुजरने वाले मालवाहक ट्रकों की जांच की जा रही है इससे लगभग पांच किलोमीटर लंबे मार्ग में ट्रकों की लंबी कतारें लगी हुई है जिसकी वजह से नेशनल हाई वे में आवागमन अवरुद्ध तो ही रहा है साथ ही ट्रकों के चालक परिचालक सहित गाड़ी मालिक खासे परेशान हो रहे है नाम न छापने की शर्त पर बाहरी प्रदेश के ट्रक चालको ने नाराजगी व्यक्त करते हुए बताया कि एक तो पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों से हम परेशान है वही  आर टी. ओ.  के उक्त जांच अभियान से आर्थिक,शारीरिक,और मानसिक रूप से अलग जूझना पड़ रहा है लंबे  खड़े ट्रक के कतार में घण्टों उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है जिसकी वजह से उन्हें गन्तव्य तक जाने में और देरी हो रही है उन्होंने बताया कि आर टी ओ रायपुर द्वारा कागजात दिखाने बोला जाता है समस्त कागजात पूर्ण होने के बावजूद अन्य नियम के तहत उन्हें परेशान कर अतिरिक्त राशि ली जा रही है जबकि मौका स्थल पर देखने मे यह पाया गया कि आवागमन करते सड़क मार्ग की ट्रकों से आर.टी.ओ.से संबंधित कागजात सिपाही द्वारा प्रस्तुत करने कहा जाता है आर टी ओ के समक्ष कागजात प्रस्तुत करने पर  यदि कागजात दस्तावेज पूर्ण हो तो उन्हें छोड़ दिया गया वही कुछ ट्रक चालक उपस्थित कर्मचारियों से कोने में अलग से गाड़ी छोड़ने विनती अनुनय करते दिखे इस संदर्भ में  आर टी ओ.जांच प्रभारी महेंद्र कुलदीप से जब सघन जांच के संबन्ध में जानकारी मांगी गई तो उन्होंने रूटीन सरकारी  जांच का हवाला दिया वही रायपुर एवं उड़ीसा की ओर आवागमन करते अनेक राहगीरों का कथन है कि जांच के नाम पर आवागमन अवरुद्ध किया जा रहा है बीच सड़क में ट्रकों के खड़े होने से उन्हें खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है स्थानीय कुछ ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि आर टी ओ कागजात दिखाने के नाम पर केवल बाहरी प्रदेशों के ट्रकों को  रोक कर  उनसे वसूली कर रही है जबकि स्थानीय अवैध रेत माफियाओं के द्वारा की जा रही परिवहन के मामले में उनसे परमिट सहित अन्य दस्तावेजों के संदर्भ में कोई जांच अथवा जानकारी नही ली जा रही है जिससे आर टी ओ की जांच कार्यशैली को लेकर सवाल उठ रहे है . 

मंगलवार, 6 जुलाई 2021

मानव जीवन को ऑक्सीजन देने वाली नर्सरी बजट के अभाव में स्वयं दम तोड़ रही

                तोरला नर्सरी 

मानव जीवन को ऑक्सीजन देने वाली नर्सरी बजट के अभाव में स्वयं  दम तोड़ रही


अलताफ हुसैन 7869247588

रायपुर (छत्तीसगढ़ वनोदय ) प्राकृतिक के विदोहन तथा लगातार वृक्षों की कटाई से प्राकृतिक असंतुलन तो होता ही है साथ ही मानव जीवन पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है इसके संतुलन को बनाए रखने छग प्रदेश वन एवं जलवायु विभाग वृक्षारोपण के माध्यम से नित नए नए प्रयोग कर प्रदेश को हरा भरा बनाने अनेक योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कर  एक स्वच्छ एवं स्वास्थ्य पूर्ण वातावरण मानव जीवन के लिए निर्मित भी करता है परन्तु देखा यह जा रहा है कि प्रत्येक वर्ष हरियाली की सौगात देने के लिए सामाजिक संस्थओं और विभाग के माध्यम से करोड़ों के बजट के साथ वृक्षारोपण कार्यक्रम  किए जाते रहे है वह कहां तक सफल है या नही इसकी सुध लेने वाला कोई नही प्रदेश भर मे हरियाली के नाम पर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ बनी रहती है अर्थात वृक्षारोपण कार्यक्रम में लगाए जाने वाले पौधे या तो सुरक्षा देखरेख के आभव में नष्ट हो जाते है या फिर  विभागीय उदासीनता के चलते योजनाएं फिसड्डी साबित हो जाती है विगत माह छग शासन के वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा था कि 25 जून से प्रारंभ होने वाले पौधे वितरण कार्यक्रम में  इस वर्ष 2021में वन विभाग ने 2 करोड़ 27 लाख 34 हजार पौधों के वितरण का लक्ष्य रखा है. इसके लिए वर्तमान में समस्त 275 विभागीय नर्सरियों में 284 प्रजातियों के 3 करोड़ 89 लाख पौधे उपलब्ध हैं.

जब वास्तविकता की धरा पर इसका निरीक्षण किया जाता है तो स्थिति बड़ी दयनीय  परिलक्षित रहती है  इसका उदाहरण इस वर्ष 2021 में वर्षा ऋतु में किए जाने वाले वृक्षारोपण कार्यक्रम को ही ले लिया जाए शासन एवं विभागीय घोषणा की माने तो वर्ष 2021 में दो करोड़ 27 लाख से ऊपर  लगभग वृक्षारोपण किए जाने का लक्ष्य प्रस्तावित है संभवत इसके लिए कैम्पा मद से करोड़ो रूपये बजट भी जारी किए गए होंगे लोगों को एक फोन कॉल में पेड़ उपलब्ध कराए जाने लक्ष्य के पीछे सबसे पहले आवश्यकता पेड़ पौधों की होती है जिसका आभाव देखा जा रहा है नर्सरीयो में पेड़ पौधों के  उत्पादन के लिए बजट तक नही पहुंच पा रहा है नर्सरी अब उजाड़ और वीरान सी होती जा रही है इसका उदाहरण  नवा रायपुर अटल नगर से लगे ग्राम तोरला अभनपुर ब्लॉक में भी देखने को मिला जिसका संचालन वन विभाग से संबंधित वन अनुसन्धान एवं विस्तार केंद्र के माध्यम से सुचारू ढंग से किया जा रहा है जहां से ग्राम पंचायतों में कराए जाने वाले वृक्षारोपण कार्य मे उक्त स्थल से पौधा वितरण करना बताया गया इसके लिए  जिला पंचायत से लिखित आवेदन लेकर  मांग के अनुसार  ग्राम क्षेत्रों के आसपास पड़त भाटा भूमि का चयन कर पश्चात वृक्षारोपण कार्य होता है तथा इसके एवज में जनपद इसका भुगतान करती है जो कि नर्सरी के व्यवस्थापन एव उत्पादन के लिए पर्याप्त राशि नही होती इस संदर्भ में वर्तमान नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि इसी वर्ष फरवरी माह से उसके द्वारा नर्सरी प्रभारी का दायित्व प्राप्त हुआ है तथा इसके पूर्व तोरला नर्सरी के प्रभारी के रूप में स्व भगवान दास मानिकपुरी लंबे समय तक  इसका कार्य देख रहे थे 2012-13 -से संचालित तोरला नर्सरी में मनरेगा के तहत कार्य संपादित होता है जहां पर 193  रु की दर से श्रमिकों का भुगतान किया जाता है नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि वर्तमान में रेंजर पुनीत राम लसेल है जिनके मार्ग दर्शन में समस्त कार्य संपादित होता है उनके ही द्वारा नर्सरी के पेड़ पौधों से लेकर उसके संरक्षण संवर्धन का कार्य होता है नर्सरी में रोपण कार्य मे लगने वाली वस्तुओं को या तो संग्रहित बीज से उपज ली जाती है या फिर बाजार से क्रय किया जाता है रेंजर पुनीत राम लसेल के संदर्भ में बताया कि वे एक मृदुभाषी, अधिकारी है अपने कार्यों के प्रति वे किसी प्रकार का समझौता नही करते  जिला पंचायत एवं संस्थागत प्राप्त  राशि से ही नर्सरी  की व्यवस्था को अब तक उनके द्वारा सुचारू ढंग से जारी रखा गया है 

(श्री जयजीत अचार्यों एस डी ओ वन अनुुुसंधान

विस्तार केंद्र रायपुर)


वही एस डी ओ जे. जे. आचार्य साहब एक सुलझे हुए परिपक्व,कर्तव्य निष्ठ,ईमानदार एवं तेज तर्रार अधिकारी है उनका वन क्षेत्र और रोपण कार्य से चोली दामन का साथ रहा है लंबे अनुभव का लाभ वे अपने मातहतों को कुशल नेतृत्व के साथ देते रहे है यदि यह कहा जाए कि यदि आज तोरला नर्सरी का अस्तित्व बचाने में यदि आचार्या साहब का एक बहुत बड़ा योगदान है तो यह अतिशियोक्ति नही होगी रेंजर एसोशिएशन का नीव रखने से लेकर महासमुंद,बारनवापारा,गरियाबंद, धमतरी सहित अनेक वन मंडलों में अपनी सेवाएं देने वाले जयजीत आचार्या साहब  दोना पत्तल प्रसंस्करण केंद्र से लेकर वन समिति,वन सुरक्षा समिति के माध्यम से अनेक रोजगार मुल्क कार्य योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कर पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य किया था   वनों में फायर वॉच पुल,पुलिया,रपटा,मार्ग,तालाब जैसे अनेक कार्यों का मैदानी स्तर पर निष्पादन कर वनवासी,वनादिवासियों,ग्रामीणों को रोजगार मुलक नए नए कार्यों को प्रोत्साहित कर उनके जीवन के आर्थिक और सामाजिक स्तर को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त कर इतिहासिक अध्याय में मिल का पत्थर स्थापित किया यही वजह है कि लंबा अनुभव आज उनके प्रशासनिक आधार स्तंभ है और वे पूरी ऊर्जा के साथ अपने कार्य शैली में कसावट लाकर कार्यों को और अधिक प्रकाशवान कर  निखार रहे है अपने जीवन के लंबे समय तक उन्होंने वन एवं वन्य प्राणियों के विस्तार उसके संरक्षण,संवर्धन में  व्यतीत कर दिया तथा वृक्षो,पेड़,पौधों का सान्निध्य उनमे सदैव ऊर्जा का संचार करता रहा है यही कारण है कि तोरला नर्सरी के विस्तार एवं स्वपोषित संस्था के रूप में स्थापित करने योजना बनाई है जो अब तक पेंडिंग है यदि स्वपोषित नर्सरी के रूप में  इसे हरी झंडी मिलती है तो कम से कम इसके रख रखाव,व्यवस्थान, उत्पादन,पैदावार, और रोपण कार्य से विभाग को अतिरिक्त आय का साधन निर्मित हो सकता है वही डी. एफ.ओ.सलमा फारुखी मैडम का पारिवारिक पृष्ठभूमि भी वनों से जुड़ा हुआ है उनके परिवार से भी अनेक लोग वनों के विस्तार,उसके संरक्षण संवर्धन में व्यतीत कर चुके है तथा वे भी तोरला नर्सरी के अस्तित्व को बचाए रखने में पूरी शिद्दत से कागजी कार्यवाही पूरी कर चुकी है मगर  कार्य मे अड़चन तब उत्पन्न हो जाता है जब विभाग किसी भी क्षेत्र के विस्तार और विकास के लिए बजट नही देता इस परिस्थिति में ऐसी योजनाएं पूरी तरह असफल हो जाती है तथा बंद हो जाती है कहीं यही हाल तोरला नर्सरी  का भी न हो  क्योंकि बजट के अभाव में लोगों को ऑक्सीजन देने वाले नन्हे छोटे, मध्यम,एवं युवा पौधे कहीं बजट के आभव में स्वयं दम न तोड़ दे 

इस संदर्भ में तोरला नर्सरी के अस्तित्व को बचाए रखने में क्षेत्रीय विधायक धनेंद्र साहू ने भी काफी प्रयास किया उनसे जब तोरला स्थित नर्सरी के संदर्भ में चर्चा की तब उन्होंने बताया कि इसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए मैने स्वयं पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी साहब वन बल प्रमुख को पत्र लिखकर अवगत कराया है तथा बजट देने की मांग की है परन्तु अब तक उसके सारगर्भित परिणाम नही आए है  जबकि तोरला नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि आर्थिक रूप से स्वपोषित नर्सरी बन जाने पर रोपणी क्षेत्र को पांच हेक्टेयर के स्थान पर दस हेक्टेयर भूमि पर पौधे उत्पादन कार्य किया जा सकता है जबकिं वन अनुसन्धान विस्तार केंद्र रायपुर के अंतर्गत ही ग्राम जोरा,गोढ़ी, में भी स्वपोषित नर्सरी है जिसका सफल संचालन अब तक जारी है वहां सशुल्क सामाजिक संस्थाएं एवं आम व्यक्ति पौधे क्रय करते है जिससे नर्सरी के रख रखाव एवं उसके व्यवस्थापन के अलावा विभाग को भी अतिरिक्त  आय प्राप्त हो रहा है परन्तु तोरला नर्सरी के साथ यह बड़ी विडंबना है कि इसे स्वपोषित नर्सरी स्थापित करने के लिए प्रक्रिया बड़ी धीमी गति से चल रही है तोरला नर्सरी में वर्तमान में लगभग 1लाख 15 हजार तक छोटे बड़े मिश्रित प्रजाति के औषधियुक्त, फलदार,फूलदार,एवं सायादार आकर्षक पौधे उपलब्ध है जिनमे आंवला,पारस, पीपल,हर्रा,बेहड़ा, महुआ,चार,अंजन, आम,जाम,जामुन,नींबू,कटहल,बोहार,बेर,अशोक,कपोक,खम्हार, सागौन,गुलमोहर,किसिया    ,शामिया,मिनी गुलमोहर, शीशम,नीम, करंज,कहुआ,अर्जुनी,इत्यादि पौधे उपलब्ध है इसके रोपण विधि के संदर्भ में बताया गया कि इसके लिए पहले बीज,अथवा (कलम)बांस का करील,सागौन रूटसूट, रायजोम, को संग्रह किया जाता है बीज न मिलने पर उसे बाजार से क्रय किया जाता है पश्चात मदर बेड में जो बर्मी कम्पोस्ट गोबर खाद रेत,काली मिट्टी युक्त होता है वहां पर बीज का छिड़काव कर पुनः डेढ़ दो इंच मिट्टी खाद छिड़काव कर नियमित सिंचाई की जाती है  बीज के अंकुरित होने पर उसे सावधानी पूर्वक जड़ से निकाला जाता है उसे प्रोटीन मिक्चर युक्त प्लास्टिक बैग में पुनः रोप दिया जाता है जिससे उसकी नियमित देखरेख सिंचाई ,व्यवस्था के साथ पौधे सर्वाइव करते है प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि नर्सरी में आधुनिक तकनीक से भी पौधों का उत्पादन किया जाता है इसके लिए बाकायदा दो चेंबर भी बनाए गए है मिस चेंबर,एवं हार्डिंग चेंबर जहां पर बहुत ही नाजुक पौधों को रखा जाता है चेंबर में एक निश्चित तापमान बना रहे इसके लिए एक्जास्ट फैन भी लगे है जो अधिक तापमान होने पर स्वचालित होकर निर्धारित तापमान बनाए रखता है तथा पौधे सुरक्षित और स्वास्थ्य पूर्ण रहते है परन्तु बजट के आभव में दोनों चेंबर पूर्णतः जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच गया वही पौधों के उपचार और ग्रोथ हेतु नर्सरी में चार बड़े 25 फिट लंबे वर्मी कम्पोस्ट टैंक निर्मित है  जिसमे वर्मी कम्पोस्ट खाद उत्पाद किया जाता है तथा समयनुसार पौधों को खाद एवं कीटनाशक छिड़काव किया जाता है

नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि पौधे बिल्कुल नवजात शिशु की भांति होते है जितनी मेहनत एक शिशु के परवरिश करने में एक माता,पिता को लगती है ठीक वैसे ही नर्सरी में उनके अंकुरण से लेकर पौधों की देखरेख सुरक्षा,उपचार इत्यादि में लगता है इसके लिए उन्हें नियमित सिंचाई करना पड़ता है सिंचाई व्यवस्था के बारे में नर्सरी प्रभारी ने बताया कि चार पंप है जिसमे दो ही पंप चालू स्थिति में है फिर ग्राम पंचायतों,सामाजिक संस्थाओं के मांग अनुसार अधिकारियों के दिशा निर्देश एवं मार्ग दर्शन से पौधे वितरण किया जाता है

जो केवल वर्षा ऋतु तक ही मांग रहती है पश्चात स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती है शेष ऋतु में   तोरला नर्सरी का संचालन बजट के आभव में बहुत कठिन हो जाता है  नर्सरी में तैयार किए जाने वाले पौधे मानव जीवन को ऑक्सीजन देने पूरी तरह कटिबद्ध है मगर उसके उत्पादन,जन्मस्थल, नर्सरी की दशा दिशा बदलने में विभाग कोई रुचि  नही दिखा रहा जबकि वन विभाग  भले ही वृक्षारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये व्यय कर सकती है परन्तु नर्सरी के नाजुक  मासूम नव पुल्कित अंकुरण के अस्तित्व बचाए रखने में फूटी कौड़ी खर्च नही करना चाहती जहां के पौधे प्रदेश के अन्य स्थलों में रोपे  जाने के पश्चात भविष्य में एक विशाल वृक्ष का आकर लेंगे तथा मानव जीवन को ऑक्सीजन सहित वातावरण पर्यावरण को संतुलित करने का महती भूमिका निभाएंगे ऐसे पौधों की जन्म स्थली नर्सरी की उपेक्षा कर  विभाग क्या साबित करना चाहती है केवल,विभागीय स्तर पर एवं संस्थागत,माध्यम से प्रति वर्ष वृक्षारोपण करके लाखों करोड़ों फूंक कर अपनी पीठ थपथपवाना चाहती है या पौधों के अस्तित्व को बचाए रखने वाली  ऐसे अन्य संबंधित विभागों के अनेक मृतप्राय होती  नर्सरी स्थलों के संरक्षण संवर्धन,और सुरक्षा  के लिए भी कोई कारगर कदम उठाएगी ? विभाग के लिए यह विचारणीय पहलू है .

तोरला नर्सरी...मानव जीवन को ऑक्सीजन देने वाली नर्सरी बजट के आभव में स्वयं दम तोड़ रही

 तोरला नर्सरी 

मानव जीवन को ऑक्सीजन देने वाली तोरला नर्सरी को स्वपोषित नर्सरी बनाने की कवायद

अलताफ हुसैन 786924758

  रायपुर (छत्तीसगढ़ वनोदय ) प्राकृतिक के विदोहन तथा लगातार वृक्षों की कटाई से प्राकृतिक असंतुलन तो होता ही है साथ ही मानव जीवन पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है इसके संतुलन को बनाए रखने छग प्रदेश वन एवं जलवायु विभाग वृक्षारोपण के माध्यम से नित नए नए प्रयोग कर प्रदेश को हरा भरा बनाने अनेक योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कर  एक स्वच्छ एवं स्वास्थ्य पूर्ण वातावरण मानव जीवन के लिए निर्मित भी करता है परन्तु देखा यह जा रहा है कि प्रत्येक वर्ष हरियाली की सौगात देने के लिए सामाजिक संस्थओं और विभाग के माध्यम से करोड़ों के बजट के साथ वृक्षारोपण कार्यक्रम  किए जाते रहे है वह कहां तक सफल है या नही इसकी सुध लेने वाला कोई नही प्रदेश भर मे हरियाली के नाम पर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ बनी रहती है अर्थात वृक्षारोपण कार्यक्रम में लगाए जाने वाले पौधे या तो सुरक्षा देखरेख के आभव में नष्ट हो जाते है या फिर  विभागीय उदासीनता के चलते योजनाएं फिसड्डी साबित हो जाती है     

                 श्री जयजीत आचार्या 
      (एस. डी. ओ.वन अनुसन्धान एवं विस्तार केंद्र)

 प्रति वर्ष कागजों में ही वृक्षारोपण के नाम पर लाखों करोड़ों के बजट का खेल हो जाता है जबकि 

वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा था कि 25 जून से प्रारंभ होने वाले पौधे वितरण कार्यक्रम में  इस वर्ष 2021में वन विभाग ने 2 करोड़ 27 लाख 34 हजार पौधों के वितरण का लक्ष्य रखा है. इसके लिए वर्तमान में समस्त 275 विभागीय नर्सरियों में 284 प्रजातियों के 3 करोड़ 89 लाख पौधे उपलब्ध हैं.

वास्तविकता की धरा पर इसका निरीक्षण किया जाता है तो स्थिति बड़ी दयनीय  परिलक्षित रहती है  इसका उदाहरण इस वर्ष 2021 में वर्षा ऋतु में किए जाने वाले वृक्षारोपण कार्यक्रम को ही ले लिया जाए शासन एवं विभागीय घोषणा की माने तो वर्ष 2021 में दो करोड़ सत्ताईस लाख से ऊपर वृक्षारोपण किए जाने का लक्ष्य प्रस्तावित है संभवत इसके लिए कैम्प मद से करोड़ो रूपये बजट भी जारी किए गए होंगे लोगों को एक फोन कॉल में पेड़ उपलब्ध कराए जाने लक्ष्य के पीछे सबसे पहले आवश्यकता पेड़ पौधों की होती है जिसका आभाव देखा जा रहा है नर्सरीयो में पेड़ पौधों के  उत्पादन के लिए बजट तक नही पहुंच पा रहा है नर्सरी अब उजाड़ और वीरान सी होती जा रही है इसका उदाहरण  नवा रायपुर अटल नगर से लगे ग्राम तोरला अभनपुर ब्लॉक में भी देखने को मिला जिसका संचालन वन विभाग से संबंधित वन अनुसन्धान एवं विस्तार केंद्र के माध्यम से सुचारू ढंग से किया जा रहा है जहां से ग्राम पंचायतों में कराए जाने वाले वृक्षारोपण कार्य मे उक्त स्थल से पौधा वितरण करना बताया गया इसके लिए  जिला पंचायत से लिखित आवेदन लेकर  मांग के अनुसार  ग्राम क्षेत्रों के आसपास पड़त भाटा भूमि का चयन कर पश्चात वृक्षारोपण कार्य होता है तथा इसके एवज में जनपद इसका भुगतान करती है जो कि नर्सरी के व्यवस्थापन एव उत्पादन के लिए पर्याप्त राशि नही होती इस संदर्भ में वर्तमान नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि इसी वर्ष फरवरी माह से उसके द्वारा नर्सरी प्रभारी का दायित्व प्राप्त हुआ है तथा इसके पूर्व तोरला नर्सरी के प्रभारी के रूप में स्व भगवान दास मानिकपुरी लंबे समय तक  इसका कार्य देख रहे थे 2012-13 -से संचालित तोरला नर्सरी में मनरेगा के तहत कार्य संपादित होता है जहां पर 193  रु की दर से श्रमिकों का भुगतान किया जाता है नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि वर्तमान में रेंजर पुनीत राम लसेल है जिनके मार्ग दर्शन में समस्त कार्य संपादित होता है उनके ही द्वारा नर्सरी के पेड़ पौधों से लेकर उसके संरक्षण संवर्धन का कार्य होता है नर्सरी में रोपण कार्य मे लगने वाली वस्तुओं को या तो संग्रहित बीज से उपज ली जाती है या फिर बाजार से क्रय किया जाता है रेंजर पुनीत राम लसेल के संदर्भ में बताया कि वे एक मृदुभाषी, अधिकारी है अपने कार्यों के प्रति वे किसी प्रकार का समझौता नही करते  जिला पंचायत एवं संस्थागत प्राप्त  राशि से ही नर्सरी  की व्यवस्था को अब तक उनके द्वारा सुचारू ढंग से जारी रखा गया है 

वही एस डी ओ जे. जे. आचार्य साहब एक सुलझे हुए परिपक्व,कर्तव्य निष्ठ,ईमानदार एवं तेज तर्रार अधिकारी है उनका वन क्षेत्र और रोपण कार्य से चोली दामन का साथ रहा है लंबे अनुभव का लाभ वे अपने मातहतों को कुशल नेतृत्व के साथ देते रहे है यदि यह कहा जाए कि यदि आज तोरला नर्सरी का अस्तित्व बचाने में यदि आचार्या साहब का एक बहुत बड़ा योगदान है तो यह अतिशियोक्ति नही होगी रेंजर एसोशिएशन का नीव रखने से लेकर महासमुंद,बारनवापारा,गरियाबंद, धमतरी सहित अनेक वन मंडलों में अपनी सेवाएं देने वाले जयजीत आचार्या साहब  दोना पत्तल प्रसंस्करण केंद्र से लेकर वन समिति,वन सुरक्षा समिति के माध्यम से अनेक रोजगार मुल्क कार्य योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कर पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य किया था   वनों में फायर वॉच पुल,पुलिया,रपटा,मार्ग,तालाब जैसे अनेक कार्यों का मैदानी स्तर पर निष्पादन कर वनवासी,वनादिवासियों,ग्रामीणों को रोजगार मुलक नए नए कार्यों को प्रोत्साहित कर उनके जीवन के आर्थिक और सामाजिक स्तर को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त कर इतिहासिक अध्याय में मिल का पत्थर स्थापित किया यही वजह है कि लंबा अनुभव आज उनके प्रशासनिक आधार स्तंभ है और वे पूरी ऊर्जा के साथ अपने कार्य शैली में कसावट लाकर कार्यों को और अधिक प्रकाशवान कर  निखार रहे है अपने जीवन के लंबे समय तक उन्होंने वन एवं वन्य प्राणियों के विस्तार उसके संरक्षण,संवर्धन में  व्यतीत कर दिया तथा वृक्षो,पेड़,पौधों का सान्निध्य उनमे सदैव ऊर्जा का संचार करता रहा है यही कारण है कि तोरला नर्सरी के विस्तार एवं स्वपोषित संस्था के रूप में स्थापित करने योजना बनाई है जो अब तक पेंडिंग है यदि स्वपोषित नर्सरी के रूप में  इसे हरी झंडी मिलती है तो कम से कम इसके रख रखाव,व्यवस्थान, उत्पादन, और रोपण कार्य से विभाग को अतिरिक्त आय का साधन निर्मित हो सकता है 
(श्री लेखराम साहू तोरला नर्सरी प्रभारी)

 डी. एफ.ओ.सलमा फारुखी मैडम का पारिवारिक पृष्ठभूमि भी वनों से जुड़ा हुआ है उनके परिवार से भी अनेक लोग वनों के विस्तार,उसके संरक्षण संवर्धन में व्यतीत कर चुके है तथा वे भी तोरला नर्सरी के अस्तित्व को बचाए रखने में पूरी शिद्दत से कागजी कार्यवाही पूरी कर चुकी है मगर  कार्य मे अड़चन तब उत्पन्न हो जाता है जब विभाग किसी भी क्षेत्र के विस्तार और विकास के लिए बजट नही देता इस परिस्थिति में ऐसी योजनाएं पूरी तरह असफल हो जाती है तथा बंद हो जाती है कहीं यही हाल तोरला नर्सरी  का भी न हो  क्योंकि बजट के अभाव में लोगों को ऑक्सीजन देने वाले नन्हे छोटे, मध्यम,एवं युवा पौधे कहीं बजट के आभव में स्वयं दम न तोड़ दे इस संदर्भ में तोरला नर्सरी के अस्तित्व को बचाए रखने में क्षेत्रीय विधायक धनेंद्र साहू ने भी काफी प्रयास किया उनसे जब तोरला स्थित नर्सरी के संदर्भ में चर्चा की तब उन्होंने बताया कि इसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए मैने स्वयं पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी साहब वन बल प्रमुख को पत्र लिखकर अवगत कराया है तथा बजट देने की मांग की है परन्तु अब तक उसके सारगर्भित परिणाम नही आए है  जबकि तोरला नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि आर्थिक रूप से स्वपोषित नर्सरी बन जाने पर रोपणी क्षेत्र को पांच हेक्टेयर के स्थान पर दस हेक्टेयर भूमि पर पौधे उत्पादन कार्य किया जा सकता है जबकिं वन अनुसन्धान विस्तार केंद्र रायपुर के अंतर्गत ही ग्राम जोरा,गोढ़ी, में भी स्वपोषित नर्सरी है जिसका सफल संचालन अब तक जारी है वहां सशुल्क सामाजिक संस्थाएं एवं आम व्यक्ति पौधे क्रय करते है जिससे नर्सरी के रख रखाव एवं उसके व्यवस्थापन के अलावा विभाग को भी अतिरिक्त  आय प्राप्त हो रहा है परन्तु तोरला नर्सरी के साथ यह बड़ी विडंबना है कि इसे स्वपोषित नर्सरी स्थापित करने के लिए प्रक्रिया बड़ी धीमी गति से चल रही है
तोरला नर्सरी में वर्तमान में लगभग 1लाख 15 हजार तक छोटे बड़े मिश्रित प्रजाति के औषधियुक्त, फलदार,फूलदार,एवं सायादार आकर्षक पौधे उपलब्ध है जिनमे आंवला,पारस, पीपल,हर्रा,बेहड़ा, महुआ,चार,अंजन, आम,जाम,जामुन,नींबू,कटहल,बोहार,बेर,अशोक,कपोक,खम्हार, सागौन,गुलमोहर,किसिया    ,शामिया,मिनी गुलमोहर, शीशम,नीम, करंज,कहुआ,अर्जुनी,इत्यादि पौधे उपलब्ध है इसके रोपण विधि के संदर्भ में बताया गया कि इसके लिए पहले बीज,अथवा (कलम)बांस का करील,सागौन रूटसूट, रायजोम, को संग्रह किया जाता है बीज न मिलने पर उसे बाजार से क्रय किया जाता है पश्चात मदर बेड में जो बर्मी कम्पोस्ट गोबर खाद रेत,काली मिट्टी युक्त होता है वहां पर बीज का छिड़काव कर पुनः डेढ़ दो इंच मिट्टी खाद छिड़काव कर नियमित सिंचाई की जाती है  बीज के अंकुरित होने पर उसे सावधानी पूर्वक जड़ से निकाला जाता है उसे प्रोटीन मिक्चर युक्त प्लास्टिक बैग में पुनः रोप दिया जाता है जिससे उसकी नियमित देखरेख सिंचाई ,व्यवस्था के साथ पौधे सर्वाइव करते है प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि नर्सरी में आधुनिक तकनीक से भी पौधों का उत्पादन किया जाता है इसके लिए बाकायदा दो चेंबर भी बनाए गए है मिस चेंबर,एवं हार्डिंग चेंबर जहां पर बहुत ही नाजुक पौधों को रखा जाता है चेंबर में एक निश्चित तापमान बना रहे इसके लिए एक्जास्ट फैन भी लगे है जो अधिक तापमान होने पर स्वचालित होकर निर्धारित तापमान बनाए रखता है तथा पौधे सुरक्षित और स्वास्थ्य पूर्ण रहते है परन्तु बजट के आभव में दोनों चेंबर पूर्णतः जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच गया वही पौधों के उपचार और ग्रोथ हेतु नर्सरी में चार बड़े 25 फिट लंबे वर्मी कम्पोस्ट टैंक निर्मित है  जिसमे वर्मी कम्पोस्ट खाद उत्पाद किया जाता है तथा समयनुसार पौधों को खाद एवं कीटनाशक छिड़काव किया जाता है
  नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि पौधे बिल्कुल नवजात शिशु की भांति होते है जितनी मेहनत एक शिशु के परवरिश करने में एक माता,पिता को लगती है ठीक वैसे ही नर्सरी में उनके अंकुरण से लेकर पौधों की देखरेख सुरक्षा,उपचार इत्यादि में लगता है इसके लिए उन्हें नियमित सिंचाई करना पड़ता है सिंचाई व्यवस्था के बारे में नर्सरी प्रभारी ने बताया कि चार पंप है जिसमे दो ही पंप चालू स्थिति में है फिर ग्राम पंचायतों,सामाजिक संस्थाओं के मांग अनुसार अधिकारियों के दिशा निर्देश एवं मार्ग दर्शन से पौधे वितरण किया जाता है

जो केवल वर्षा ऋतु तक ही मांग रहती है पश्चात स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती है शेष ऋतु में   तोरला नर्सरी का संचालन बजट के आभव में बहुत कठिन हो जाता है  नर्सरी में तैयार किए जाने वाले पौधे मानव जीवन को ऑक्सीजन देने पूरी तरह कटिबद्ध है मगर उसके उत्पादन,जन्मस्थल, नर्सरी की दशा दिशा बदलने में विभाग कोई रुचि  नही दिखा रहा जबकि वन विभाग  भले ही वृक्षारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये व्यय कर सकती है परन्तु नर्सरी के नाजुक  मासूम नव पुल्कित अंकुरण के अस्तित्व बचाए रखने में फूटी कौड़ी खर्च नही करना चाहती जहां के पौधे प्रदेश के अन्य स्थलों में रोपे  जाने के पश्चात भविष्य में एक विशाल वृक्ष का आकर लेंगे तथा मानव जीवन को ऑक्सीजन सहित वातावरण पर्यावरण को संतुलित करने का महती भूमिका निभाएंगे ऐसे पौधों की जन्म स्थली नर्सरी की उपेक्षा कर  विभाग क्या साबित करना चाहती है केवल,विभागीय स्तर पर एवं संस्थागत,माध्यम से प्रति वर्ष वृक्षारोपण करके लाखों करोड़ों फूंक कर अपनी पीठ थपथपवाना चाहती है या पौधों के अस्तित्व को बचाए रखने वाली  ऐसे अन्य संबंधित विभागों के अनेक मृतप्राय होती  नर्सरी स्थलों के संरक्षण संवर्धन,और सुरक्षा  के लिए भी कोई कारगर कदम उठाएगी ? यह विचारणीय पहलू है .

सोमवार, 5 जुलाई 2021

तोरला नर्सरी ...मानव जीवन को ऑक्सीजन देने वाली नर्सरी बजट के अभाव में दम तोड़ रही

                       तोरला नर्सरी 

मानव जीवन को ऑक्सीजन......

अलताफ हुसैन 786924758

  रायपुर (छत्तीसगढ़ वनोदय ) प्राकृतिक के विदोहन तथा लगातार वृक्षों की कटाई से प्राकृतिक असंतुलन तो होता ही है साथ ही मानव जीवन पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है इसके संतुलन को बनाए रखने छग प्रदेश वन एवं जलवायु विभाग वृक्षारोपण के माध्यम से नित नए नए प्रयोग कर प्रदेश को हरा भरा बनाने अनेक योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कर  एक स्वच्छ एवं स्वास्थ्य पूर्ण वातावरण मानव जीवन के लिए निर्मित भी करता है परन्तु देखा यह जा रहा है कि प्रत्येक वर्ष हरियाली की सौगात देने के लिए सामाजिक संस्थओं और विभाग के माध्यम से करोड़ों के बजट के साथ वृक्षारोपण कार्यक्रम  किए जाते रहे है वह कहां तक सफल है या नही इसकी सुध लेने वाला कोई नही प्रदेश भर मे हरियाली के नाम पर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ बनी रहती है अर्थात वृक्षारोपण कार्यक्रम में लगाए जाने वाले पौधे या तो सुरक्षा देखरेख के आभव में नष्ट हो जाते है या फिर  विभागीय उदासीनता के चलते योजनाएं फिसड्डी साबित हो जाती है  


           श्री धनेंद्र साहू विधायक अभनपुर 
             श्री मो.अकबर वन मंत्री छग शासन


                 श्री जयजीत आचार्या 
      (एस. डी. ओ.वन अनुसन्धान एवं विस्तार केंद्र)

 प्रति वर्ष कागजों में ही वृक्षारोपण के नाम पर लाखों करोड़ों के बजट का खेल हो जाता है जबकि 

वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा था कि 25 जून से प्रारंभ होने वाले पौधे वितरण कार्यक्रम में  इस वर्ष 2021में वन विभाग ने 2 करोड़ 27 लाख 34 हजार पौधों के वितरण का लक्ष्य रखा है. इसके लिए वर्तमान में समस्त 275 विभागीय नर्सरियों में 284 प्रजातियों के 3 करोड़ 89 लाख पौधे उपलब्ध हैं.

वास्तविकता की धरा पर इसका निरीक्षण किया जाता है तो स्थिति बड़ी दयनीय  परिलक्षित रहती है  इसका उदाहरण इस वर्ष 2021 में वर्षा ऋतु में किए जाने वाले वृक्षारोपण कार्यक्रम को ही ले लिया जाए शासन एवं विभागीय घोषणा की माने तो वर्ष 2021 में दो करोड़ सत्ताईस लाख से ऊपर वृक्षारोपण किए जाने का लक्ष्य प्रस्तावित है संभवत इसके लिए कैम्प मद से करोड़ो रूपये बजट भी जारी किए गए होंगे लोगों को एक फोन कॉल में पेड़ उपलब्ध कराए जाने लक्ष्य के पीछे सबसे पहले आवश्यकता पेड़ पौधों की होती है जिसका आभाव देखा जा रहा है नर्सरीयो में पेड़ पौधों के  उत्पादन के लिए बजट तक नही पहुंच पा रहा है नर्सरी अब उजाड़ और वीरान सी होती जा रही है इसका उदाहरण  नवा रायपुर अटल नगर से लगे ग्राम तोरला अभनपुर ब्लॉक में भी देखने को मिला जिसका संचालन वन विभाग से संबंधित वन अनुसन्धान एवं विस्तार केंद्र के माध्यम से सुचारू ढंग से किया जा रहा है जहां से ग्राम पंचायतों में कराए जाने वाले वृक्षारोपण कार्य मे उक्त स्थल से पौधा वितरण करना बताया गया इसके लिए  जिला पंचायत से लिखित आवेदन लेकर  मांग के अनुसार  ग्राम क्षेत्रों के आसपास पड़त भाटा भूमि का चयन कर पश्चात वृक्षारोपण कार्य होता है तथा इसके एवज में जनपद इसका भुगतान करती है जो कि नर्सरी के व्यवस्थापन एव उत्पादन के लिए पर्याप्त राशि नही होती

इस संदर्भ में वर्तमान नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि इसी वर्ष फरवरी माह से उसके द्वारा नर्सरी प्रभारी का दायित्व प्राप्त हुआ है तथा इसके पूर्व तोरला नर्सरी के प्रभारी के रूप में स्व भगवान दास मानिकपुरी लंबे समय तक  इसका कार्य देख रहे थे 2012-13 -से संचालित तोरला नर्सरी में मनरेगा के तहत कार्य संपादित होता है जहां पर 193  रु की दर से श्रमिकों का भुगतान किया जाता है नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि वर्तमान में रेंजर पुनीत राम लसेल है जिनके मार्ग दर्शन में समस्त कार्य संपादित होता है उनके ही द्वारा नर्सरी के पेड़ पौधों से लेकर उसके संरक्षण संवर्धन का कार्य होता है नर्सरी में रोपण कार्य मे लगने वाली वस्तुओं को या तो संग्रहित बीज से उपज ली जाती है या फिर बाजार से क्रय किया जाता है रेंजर पुनीत राम लसेल के संदर्भ में बताया कि वे एक मृदुभाषी, अधिकारी है अपने कार्यों के प्रति वे किसी प्रकार का समझौता नही करते  जिला पंचायत एवं संस्थागत प्राप्त  राशि से ही नर्सरी  की व्यवस्था को अब तक उनके द्वारा सुचारू ढंग से जारी रखा गया है 

वही एस डी ओ जे. जे. आचार्य साहब एक सुलझे हुए परिपक्व,कर्तव्य निष्ठ,ईमानदार एवं तेज तर्रार अधिकारी है उनका वन क्षेत्र और रोपण कार्य से चोली दामन का साथ रहा है लंबे अनुभव का लाभ वे अपने मातहतों को कुशल नेतृत्व के साथ देते रहे है यदि यह कहा जाए कि यदि आज तोरला नर्सरी का अस्तित्व बचाने में यदि आचार्या साहब का एक बहुत बड़ा योगदान है तो यह अतिशियोक्ति नही होगी रेंजर एसोशिएशन का नीव रखने से लेकर महासमुंद,बारनवापारा,गरियाबंद, धमतरी सहित अनेक वन मंडलों में अपनी सेवाएं देने वाले जयजीत आचार्या साहब  दोना पत्तल प्रसंस्करण केंद्र से लेकर वन समिति,वन सुरक्षा समिति के माध्यम से अनेक रोजगार मुल्क कार्य योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कर पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य किया था   वनों में फायर वॉच पुल,पुलिया,रपटा,मार्ग,तालाब जैसे अनेक कार्यों का मैदानी स्तर पर निष्पादन कर वनवासी,वनादिवासियों,ग्रामीणों को रोजगार मुलक नए नए कार्यों को प्रोत्साहित कर उनके जीवन के आर्थिक और सामाजिक स्तर को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त कर इतिहासिक अध्याय में मिल का पत्थर स्थापित किया यही वजह है कि लंबा अनुभव आज उनके प्रशासनिक आधार स्तंभ है और वे पूरी ऊर्जा के साथ अपने कार्य शैली में कसावट लाकर कार्यों को और अधिक प्रकाशवान कर  निखार रहे है अपने जीवन के लंबे समय तक उन्होंने वन एवं वन्य प्राणियों के विस्तार उसके संरक्षण,संवर्धन में  व्यतीत कर दिया तथा वृक्षो,पेड़,पौधों का सान्निध्य उनमे सदैव ऊर्जा का संचार करता रहा है यही कारण है कि तोरला नर्सरी के विस्तार एवं स्वपोषित संस्था के रूप में स्थापित करने योजना बनाई है जो अब तक पेंडिंग है यदि स्वपोषित नर्सरी के रूप में  इसे हरी झंडी मिलती है तो कम से कम इसके रख रखाव,व्यवस्थान, उत्पादन, और रोपण कार्य से विभाग को अतिरिक्त आय का साधन निर्मित हो सकता है 
(श्री लेखराम साहू तोरला नर्सरी प्रभारी)

 डी. एफ.ओ.सलमा फारुखी मैडम का पारिवारिक पृष्ठभूमि भी वनों से जुड़ा हुआ है उनके परिवार से भी अनेक लोग वनों के विस्तार,उसके संरक्षण संवर्धन में व्यतीत कर चुके है तथा वे भी तोरला नर्सरी के अस्तित्व को बचाए रखने में पूरी शिद्दत से कागजी कार्यवाही पूरी कर चुकी है मगर  कार्य मे अड़चन तब उत्पन्न हो जाता है जब विभाग किसी भी क्षेत्र के विस्तार और विकास के लिए बजट नही देता इस परिस्थिति में ऐसी योजनाएं पूरी तरह असफल हो जाती है तथा बंद हो जाती है कहीं यही हाल तोरला नर्सरी  का भी न हो  क्योंकि बजट के अभाव में लोगों को ऑक्सीजन देने वाले नन्हे छोटे, मध्यम,एवं युवा पौधे कहीं बजट के आभव में स्वयं दम न तोड़ दे इस संदर्भ में तोरला नर्सरी के अस्तित्व को बचाए रखने में क्षेत्रीय विधायक धनेंद्र साहू ने भी काफी प्रयास किया उनसे जब तोरला स्थित नर्सरी के संदर्भ में चर्चा की तब उन्होंने बताया कि इसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए मैने स्वयं पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी साहब वन बल प्रमुख को पत्र लिखकर अवगत कराया है तथा बजट देने की मांग की है परन्तु अब तक उसके सारगर्भित परिणाम नही आए है  जबकि तोरला नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि आर्थिक रूप से स्वपोषित नर्सरी बन जाने पर रोपणी क्षेत्र को पांच हेक्टेयर के स्थान पर दस हेक्टेयर भूमि पर पौधे उत्पादन कार्य किया जा सकता है जबकिं वन अनुसन्धान विस्तार केंद्र रायपुर के अंतर्गत ही ग्राम जोरा,गोढ़ी, में भी स्वपोषित नर्सरी है जिसका सफल संचालन अब तक जारी है वहां सशुल्क सामाजिक संस्थाएं एवं आम व्यक्ति पौधे क्रय करते है जिससे नर्सरी के रख रखाव एवं उसके व्यवस्थापन के अलावा विभाग को भी अतिरिक्त  आय प्राप्त हो रहा है परन्तु तोरला नर्सरी के साथ यह बड़ी विडंबना है कि इसे स्वपोषित नर्सरी स्थापित करने के लिए प्रक्रिया बड़ी धीमी गति से चल रही है
 तोरला नर्सरी में वर्तमान में लगभग 1लाख 15 हजार तक छोटे बड़े मिश्रित प्रजाति के औषधियुक्त, फलदार,फूलदार,एवं सायादार आकर्षक पौधे उपलब्ध है जिनमे आंवला,पारस, पीपल,हर्रा,बेहड़ा, महुआ,चार,अंजन, आम,जाम,जामुन,नींबू,कटहल,बोहार,बेर,अशोक,कपोक,खम्हार, सागौन,गुलमोहर,किसिया    ,शामिया,मिनी गुलमोहर, शीशम,नीम, करंज,कहुआ,अर्जुनी,इत्यादि पौधे उपलब्ध है इसके रोपण विधि के संदर्भ में बताया गया कि इसके लिए पहले बीज,अथवा (कलम)बांस का करील,सागौन रूटसूट, रायजोम, को संग्रह किया जाता है बीज न मिलने पर उसे बाजार से क्रय किया जाता है पश्चात मदर बेड में जो बर्मी कम्पोस्ट गोबर खाद रेत,काली मिट्टी युक्त होता है वहां पर बीज का छिड़काव कर पुनः डेढ़ दो इंच मिट्टी खाद छिड़काव कर नियमित सिंचाई की जाती है  बीज के अंकुरित होने पर उसे सावधानी पूर्वक जड़ से निकाला जाता है उसे प्रोटीन मिक्चर युक्त प्लास्टिक बैग में पुनः रोप दिया जाता है जिससे उसकी नियमित देखरेख सिंचाई ,व्यवस्था के साथ पौधे सर्वाइव करते है प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि नर्सरी में आधुनिक तकनीक से भी पौधों का उत्पादन किया जाता है इसके लिए बाकायदा दो चेंबर भी बनाए गए है मिस चेंबर,एवं हार्डिंग चेंबर जहां पर बहुत ही नाजुक पौधों को रखा जाता है चेंबर में एक निश्चित तापमान बना रहे इसके लिए एक्जास्ट फैन भी लगे है जो अधिक तापमान होने पर स्वचालित होकर निर्धारित तापमान बनाए रखता है तथा पौधे सुरक्षित और स्वास्थ्य पूर्ण रहते है परन्तु बजट के आभव में दोनों चेंबर पूर्णतः जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच गया वही पौधों के उपचार और ग्रोथ हेतु नर्सरी में चार बड़े 25 फिट लंबे वर्मी कम्पोस्ट टैंक निर्मित है  जिसमे वर्मी कम्पोस्ट खाद उत्पाद किया जाता है तथा समयनुसार पौधों को खाद एवं कीटनाशक छिड़काव किया जाता है
  नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि पौधे बिल्कुल नवजात शिशु की भांति होते है जितनी मेहनत एक शिशु के परवरिश करने में एक माता,पिता को लगती है ठीक वैसे ही नर्सरी में उनके अंकुरण से लेकर पौधों की देखरेख सुरक्षा,उपचार इत्यादि में लगता है इसके लिए उन्हें नियमित सिंचाई करना पड़ता है सिंचाई व्यवस्था के बारे में नर्सरी प्रभारी ने बताया कि चार पंप है जिसमे दो ही पंप चालू स्थिति में है फिर ग्राम पंचायतों,सामाजिक संस्थाओं के मांग अनुसार अधिकारियों के दिशा निर्देश एवं मार्ग दर्शन से पौधे वितरण किया जाता है

जो केवल वर्षा ऋतु तक ही मांग रहती है पश्चात स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती है शेष ऋतु में   तोरला नर्सरी का संचालन बजट के आभव में बहुत कठिन हो जाता है  नर्सरी में तैयार किए जाने वाले पौधे मानव जीवन को ऑक्सीजन देने पूरी तरह कटिबद्ध है मगर उसके उत्पादन,जन्मस्थल, नर्सरी की दशा दिशा बदलने में विभाग कोई रुचि  नही दिखा रहा जबकि वन विभाग  भले ही वृक्षारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये व्यय कर सकती है परन्तु नर्सरी के नाजुक  मासूम नव पुल्कित अंकुरण के अस्तित्व बचाए रखने में फूटी कौड़ी खर्च नही करना चाहती

 जहां के पौधे प्रदेश के अन्य स्थलों में रोपे  जाने के पश्चात भविष्य में एक विशाल वृक्ष का आकर लेंगे तथा मानव जीवन को ऑक्सीजन सहित वातावरण पर्यावरण को संतुलित करने का महती भूमिका निभाएंगे ऐसे पौधों की जन्म स्थली नर्सरी की उपेक्षा कर  विभाग क्या साबित करना चाहती है केवल,विभागीय स्तर पर एवं संस्थागत,माध्यम से प्रति वर्ष वृक्षारोपण करके लाखों करोड़ों फूंक कर अपनी पीठ थपथपवाना चाहती है या पौधों के अस्तित्व को बचाए रखने वाली  ऐसे अन्य संबंधित विभागों के अनेक मृतप्राय होती  नर्सरी स्थलों के संरक्षण संवर्धन,और सुरक्षा  के लिए भी कोई कारगर कदम उठाएगी ? यह विचारणीय पहलू है .