मंगलवार, 6 जुलाई 2021

तोरला नर्सरी...मानव जीवन को ऑक्सीजन देने वाली नर्सरी बजट के आभव में स्वयं दम तोड़ रही

 तोरला नर्सरी 

मानव जीवन को ऑक्सीजन देने वाली तोरला नर्सरी को स्वपोषित नर्सरी बनाने की कवायद

अलताफ हुसैन 786924758

  रायपुर (छत्तीसगढ़ वनोदय ) प्राकृतिक के विदोहन तथा लगातार वृक्षों की कटाई से प्राकृतिक असंतुलन तो होता ही है साथ ही मानव जीवन पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है इसके संतुलन को बनाए रखने छग प्रदेश वन एवं जलवायु विभाग वृक्षारोपण के माध्यम से नित नए नए प्रयोग कर प्रदेश को हरा भरा बनाने अनेक योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कर  एक स्वच्छ एवं स्वास्थ्य पूर्ण वातावरण मानव जीवन के लिए निर्मित भी करता है परन्तु देखा यह जा रहा है कि प्रत्येक वर्ष हरियाली की सौगात देने के लिए सामाजिक संस्थओं और विभाग के माध्यम से करोड़ों के बजट के साथ वृक्षारोपण कार्यक्रम  किए जाते रहे है वह कहां तक सफल है या नही इसकी सुध लेने वाला कोई नही प्रदेश भर मे हरियाली के नाम पर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ बनी रहती है अर्थात वृक्षारोपण कार्यक्रम में लगाए जाने वाले पौधे या तो सुरक्षा देखरेख के आभव में नष्ट हो जाते है या फिर  विभागीय उदासीनता के चलते योजनाएं फिसड्डी साबित हो जाती है     

                 श्री जयजीत आचार्या 
      (एस. डी. ओ.वन अनुसन्धान एवं विस्तार केंद्र)

 प्रति वर्ष कागजों में ही वृक्षारोपण के नाम पर लाखों करोड़ों के बजट का खेल हो जाता है जबकि 

वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा था कि 25 जून से प्रारंभ होने वाले पौधे वितरण कार्यक्रम में  इस वर्ष 2021में वन विभाग ने 2 करोड़ 27 लाख 34 हजार पौधों के वितरण का लक्ष्य रखा है. इसके लिए वर्तमान में समस्त 275 विभागीय नर्सरियों में 284 प्रजातियों के 3 करोड़ 89 लाख पौधे उपलब्ध हैं.

वास्तविकता की धरा पर इसका निरीक्षण किया जाता है तो स्थिति बड़ी दयनीय  परिलक्षित रहती है  इसका उदाहरण इस वर्ष 2021 में वर्षा ऋतु में किए जाने वाले वृक्षारोपण कार्यक्रम को ही ले लिया जाए शासन एवं विभागीय घोषणा की माने तो वर्ष 2021 में दो करोड़ सत्ताईस लाख से ऊपर वृक्षारोपण किए जाने का लक्ष्य प्रस्तावित है संभवत इसके लिए कैम्प मद से करोड़ो रूपये बजट भी जारी किए गए होंगे लोगों को एक फोन कॉल में पेड़ उपलब्ध कराए जाने लक्ष्य के पीछे सबसे पहले आवश्यकता पेड़ पौधों की होती है जिसका आभाव देखा जा रहा है नर्सरीयो में पेड़ पौधों के  उत्पादन के लिए बजट तक नही पहुंच पा रहा है नर्सरी अब उजाड़ और वीरान सी होती जा रही है इसका उदाहरण  नवा रायपुर अटल नगर से लगे ग्राम तोरला अभनपुर ब्लॉक में भी देखने को मिला जिसका संचालन वन विभाग से संबंधित वन अनुसन्धान एवं विस्तार केंद्र के माध्यम से सुचारू ढंग से किया जा रहा है जहां से ग्राम पंचायतों में कराए जाने वाले वृक्षारोपण कार्य मे उक्त स्थल से पौधा वितरण करना बताया गया इसके लिए  जिला पंचायत से लिखित आवेदन लेकर  मांग के अनुसार  ग्राम क्षेत्रों के आसपास पड़त भाटा भूमि का चयन कर पश्चात वृक्षारोपण कार्य होता है तथा इसके एवज में जनपद इसका भुगतान करती है जो कि नर्सरी के व्यवस्थापन एव उत्पादन के लिए पर्याप्त राशि नही होती इस संदर्भ में वर्तमान नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि इसी वर्ष फरवरी माह से उसके द्वारा नर्सरी प्रभारी का दायित्व प्राप्त हुआ है तथा इसके पूर्व तोरला नर्सरी के प्रभारी के रूप में स्व भगवान दास मानिकपुरी लंबे समय तक  इसका कार्य देख रहे थे 2012-13 -से संचालित तोरला नर्सरी में मनरेगा के तहत कार्य संपादित होता है जहां पर 193  रु की दर से श्रमिकों का भुगतान किया जाता है नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि वर्तमान में रेंजर पुनीत राम लसेल है जिनके मार्ग दर्शन में समस्त कार्य संपादित होता है उनके ही द्वारा नर्सरी के पेड़ पौधों से लेकर उसके संरक्षण संवर्धन का कार्य होता है नर्सरी में रोपण कार्य मे लगने वाली वस्तुओं को या तो संग्रहित बीज से उपज ली जाती है या फिर बाजार से क्रय किया जाता है रेंजर पुनीत राम लसेल के संदर्भ में बताया कि वे एक मृदुभाषी, अधिकारी है अपने कार्यों के प्रति वे किसी प्रकार का समझौता नही करते  जिला पंचायत एवं संस्थागत प्राप्त  राशि से ही नर्सरी  की व्यवस्था को अब तक उनके द्वारा सुचारू ढंग से जारी रखा गया है 

वही एस डी ओ जे. जे. आचार्य साहब एक सुलझे हुए परिपक्व,कर्तव्य निष्ठ,ईमानदार एवं तेज तर्रार अधिकारी है उनका वन क्षेत्र और रोपण कार्य से चोली दामन का साथ रहा है लंबे अनुभव का लाभ वे अपने मातहतों को कुशल नेतृत्व के साथ देते रहे है यदि यह कहा जाए कि यदि आज तोरला नर्सरी का अस्तित्व बचाने में यदि आचार्या साहब का एक बहुत बड़ा योगदान है तो यह अतिशियोक्ति नही होगी रेंजर एसोशिएशन का नीव रखने से लेकर महासमुंद,बारनवापारा,गरियाबंद, धमतरी सहित अनेक वन मंडलों में अपनी सेवाएं देने वाले जयजीत आचार्या साहब  दोना पत्तल प्रसंस्करण केंद्र से लेकर वन समिति,वन सुरक्षा समिति के माध्यम से अनेक रोजगार मुल्क कार्य योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कर पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य किया था   वनों में फायर वॉच पुल,पुलिया,रपटा,मार्ग,तालाब जैसे अनेक कार्यों का मैदानी स्तर पर निष्पादन कर वनवासी,वनादिवासियों,ग्रामीणों को रोजगार मुलक नए नए कार्यों को प्रोत्साहित कर उनके जीवन के आर्थिक और सामाजिक स्तर को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त कर इतिहासिक अध्याय में मिल का पत्थर स्थापित किया यही वजह है कि लंबा अनुभव आज उनके प्रशासनिक आधार स्तंभ है और वे पूरी ऊर्जा के साथ अपने कार्य शैली में कसावट लाकर कार्यों को और अधिक प्रकाशवान कर  निखार रहे है अपने जीवन के लंबे समय तक उन्होंने वन एवं वन्य प्राणियों के विस्तार उसके संरक्षण,संवर्धन में  व्यतीत कर दिया तथा वृक्षो,पेड़,पौधों का सान्निध्य उनमे सदैव ऊर्जा का संचार करता रहा है यही कारण है कि तोरला नर्सरी के विस्तार एवं स्वपोषित संस्था के रूप में स्थापित करने योजना बनाई है जो अब तक पेंडिंग है यदि स्वपोषित नर्सरी के रूप में  इसे हरी झंडी मिलती है तो कम से कम इसके रख रखाव,व्यवस्थान, उत्पादन, और रोपण कार्य से विभाग को अतिरिक्त आय का साधन निर्मित हो सकता है 
(श्री लेखराम साहू तोरला नर्सरी प्रभारी)

 डी. एफ.ओ.सलमा फारुखी मैडम का पारिवारिक पृष्ठभूमि भी वनों से जुड़ा हुआ है उनके परिवार से भी अनेक लोग वनों के विस्तार,उसके संरक्षण संवर्धन में व्यतीत कर चुके है तथा वे भी तोरला नर्सरी के अस्तित्व को बचाए रखने में पूरी शिद्दत से कागजी कार्यवाही पूरी कर चुकी है मगर  कार्य मे अड़चन तब उत्पन्न हो जाता है जब विभाग किसी भी क्षेत्र के विस्तार और विकास के लिए बजट नही देता इस परिस्थिति में ऐसी योजनाएं पूरी तरह असफल हो जाती है तथा बंद हो जाती है कहीं यही हाल तोरला नर्सरी  का भी न हो  क्योंकि बजट के अभाव में लोगों को ऑक्सीजन देने वाले नन्हे छोटे, मध्यम,एवं युवा पौधे कहीं बजट के आभव में स्वयं दम न तोड़ दे इस संदर्भ में तोरला नर्सरी के अस्तित्व को बचाए रखने में क्षेत्रीय विधायक धनेंद्र साहू ने भी काफी प्रयास किया उनसे जब तोरला स्थित नर्सरी के संदर्भ में चर्चा की तब उन्होंने बताया कि इसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए मैने स्वयं पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी साहब वन बल प्रमुख को पत्र लिखकर अवगत कराया है तथा बजट देने की मांग की है परन्तु अब तक उसके सारगर्भित परिणाम नही आए है  जबकि तोरला नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि आर्थिक रूप से स्वपोषित नर्सरी बन जाने पर रोपणी क्षेत्र को पांच हेक्टेयर के स्थान पर दस हेक्टेयर भूमि पर पौधे उत्पादन कार्य किया जा सकता है जबकिं वन अनुसन्धान विस्तार केंद्र रायपुर के अंतर्गत ही ग्राम जोरा,गोढ़ी, में भी स्वपोषित नर्सरी है जिसका सफल संचालन अब तक जारी है वहां सशुल्क सामाजिक संस्थाएं एवं आम व्यक्ति पौधे क्रय करते है जिससे नर्सरी के रख रखाव एवं उसके व्यवस्थापन के अलावा विभाग को भी अतिरिक्त  आय प्राप्त हो रहा है परन्तु तोरला नर्सरी के साथ यह बड़ी विडंबना है कि इसे स्वपोषित नर्सरी स्थापित करने के लिए प्रक्रिया बड़ी धीमी गति से चल रही है
तोरला नर्सरी में वर्तमान में लगभग 1लाख 15 हजार तक छोटे बड़े मिश्रित प्रजाति के औषधियुक्त, फलदार,फूलदार,एवं सायादार आकर्षक पौधे उपलब्ध है जिनमे आंवला,पारस, पीपल,हर्रा,बेहड़ा, महुआ,चार,अंजन, आम,जाम,जामुन,नींबू,कटहल,बोहार,बेर,अशोक,कपोक,खम्हार, सागौन,गुलमोहर,किसिया    ,शामिया,मिनी गुलमोहर, शीशम,नीम, करंज,कहुआ,अर्जुनी,इत्यादि पौधे उपलब्ध है इसके रोपण विधि के संदर्भ में बताया गया कि इसके लिए पहले बीज,अथवा (कलम)बांस का करील,सागौन रूटसूट, रायजोम, को संग्रह किया जाता है बीज न मिलने पर उसे बाजार से क्रय किया जाता है पश्चात मदर बेड में जो बर्मी कम्पोस्ट गोबर खाद रेत,काली मिट्टी युक्त होता है वहां पर बीज का छिड़काव कर पुनः डेढ़ दो इंच मिट्टी खाद छिड़काव कर नियमित सिंचाई की जाती है  बीज के अंकुरित होने पर उसे सावधानी पूर्वक जड़ से निकाला जाता है उसे प्रोटीन मिक्चर युक्त प्लास्टिक बैग में पुनः रोप दिया जाता है जिससे उसकी नियमित देखरेख सिंचाई ,व्यवस्था के साथ पौधे सर्वाइव करते है प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि नर्सरी में आधुनिक तकनीक से भी पौधों का उत्पादन किया जाता है इसके लिए बाकायदा दो चेंबर भी बनाए गए है मिस चेंबर,एवं हार्डिंग चेंबर जहां पर बहुत ही नाजुक पौधों को रखा जाता है चेंबर में एक निश्चित तापमान बना रहे इसके लिए एक्जास्ट फैन भी लगे है जो अधिक तापमान होने पर स्वचालित होकर निर्धारित तापमान बनाए रखता है तथा पौधे सुरक्षित और स्वास्थ्य पूर्ण रहते है परन्तु बजट के आभव में दोनों चेंबर पूर्णतः जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच गया वही पौधों के उपचार और ग्रोथ हेतु नर्सरी में चार बड़े 25 फिट लंबे वर्मी कम्पोस्ट टैंक निर्मित है  जिसमे वर्मी कम्पोस्ट खाद उत्पाद किया जाता है तथा समयनुसार पौधों को खाद एवं कीटनाशक छिड़काव किया जाता है
  नर्सरी प्रभारी लेखराम साहू ने बताया कि पौधे बिल्कुल नवजात शिशु की भांति होते है जितनी मेहनत एक शिशु के परवरिश करने में एक माता,पिता को लगती है ठीक वैसे ही नर्सरी में उनके अंकुरण से लेकर पौधों की देखरेख सुरक्षा,उपचार इत्यादि में लगता है इसके लिए उन्हें नियमित सिंचाई करना पड़ता है सिंचाई व्यवस्था के बारे में नर्सरी प्रभारी ने बताया कि चार पंप है जिसमे दो ही पंप चालू स्थिति में है फिर ग्राम पंचायतों,सामाजिक संस्थाओं के मांग अनुसार अधिकारियों के दिशा निर्देश एवं मार्ग दर्शन से पौधे वितरण किया जाता है

जो केवल वर्षा ऋतु तक ही मांग रहती है पश्चात स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती है शेष ऋतु में   तोरला नर्सरी का संचालन बजट के आभव में बहुत कठिन हो जाता है  नर्सरी में तैयार किए जाने वाले पौधे मानव जीवन को ऑक्सीजन देने पूरी तरह कटिबद्ध है मगर उसके उत्पादन,जन्मस्थल, नर्सरी की दशा दिशा बदलने में विभाग कोई रुचि  नही दिखा रहा जबकि वन विभाग  भले ही वृक्षारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये व्यय कर सकती है परन्तु नर्सरी के नाजुक  मासूम नव पुल्कित अंकुरण के अस्तित्व बचाए रखने में फूटी कौड़ी खर्च नही करना चाहती जहां के पौधे प्रदेश के अन्य स्थलों में रोपे  जाने के पश्चात भविष्य में एक विशाल वृक्ष का आकर लेंगे तथा मानव जीवन को ऑक्सीजन सहित वातावरण पर्यावरण को संतुलित करने का महती भूमिका निभाएंगे ऐसे पौधों की जन्म स्थली नर्सरी की उपेक्षा कर  विभाग क्या साबित करना चाहती है केवल,विभागीय स्तर पर एवं संस्थागत,माध्यम से प्रति वर्ष वृक्षारोपण करके लाखों करोड़ों फूंक कर अपनी पीठ थपथपवाना चाहती है या पौधों के अस्तित्व को बचाए रखने वाली  ऐसे अन्य संबंधित विभागों के अनेक मृतप्राय होती  नर्सरी स्थलों के संरक्षण संवर्धन,और सुरक्षा  के लिए भी कोई कारगर कदम उठाएगी ? यह विचारणीय पहलू है .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें