शनिवार, 24 दिसंबर 2022

बस्तर के बुर्जी और कुंदेड़ में पुलिस कैंप का विरोध कर रहे आदिवासियों पर पुलिस के हमले की किसान सभा ने की निंदा, कहा : दोषियों को गिरफ्तार करो, घायलों को मुफ्त चिकित्सा और मुआवजा दो*





*बस्तर के बुर्जी और कुंदेड़ में पुलिस कैंप का विरोध कर रहे आदिवासियों पर पुलिस के हमले की किसान सभा ने की निंदा, कहा : दोषियों को गिरफ्तार करो, घायलों को मुफ्त चिकित्सा और मुआवजा दो*






रायपुर। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने दक्षिण बस्तर के सुकमा जिले में बुर्जी और कुंदेड़ गांवों में पुलिस कैंप की स्थापना के विरोध में शांतिपूर्ण ढंग से धरना दे रहे आदिवासियों पर पुलिस के हमले की तीखी निंदा की है। ये पुलिस हमले 15 दिसम्बर और 22 दिसम्बर को किए गए हैं। पुलिस के इन हमलों में 13 आदिवासियों के गंभीर रूप से घायल होने की खबर मिली है। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने मांग की है कि उक्त हमलों के लिए दोषी पुलिस अधिकारियों और जवानों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए तथा घायल आदिवासियों को मुफ्त चिकित्सा सहायता व मुआवजा दिया जाए। इसके साथ ही किसान सभा ने बस्तर के सैन्यीकरण पर रोक लगाने की भी मांग की है।



आज यहां जारी एक विज्ञप्ति में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने बस्तर में जल–जंगल–जमीन और खनिज की लूट पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि इस लूट के खिलाफ आदिवासी प्रतिरोध को कुचलने के लिए ही जगह–जगह पुलिस कैंप बनाए जा रहे हैं और इसके लिए आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही है। आंदोलनकारी ग्रामीणों के अनुसार, कुंदेड़ का पुलिस कैंप दो आदिवासियों की 10 एकड़ जमीन पर जबरन कब्जा करके बनाया गया है।


उल्लेखनीय है कि पिछले दो सालों से सिलगेर, बुर्जी, कुंदेड़ सहित पुसानर, बेचापाल, बेचाघाट, नांबीधारा, गोमपाड़, सिंगाराम, गोंडेरास व अन्य स्थानों पर पुलिस कैंप की स्थापना के विरोध में आंदोलन चल रहे हैं। आदिवासियों के इन आंदोलनों को कुचलने के लिए उन पर भारी दमन किया जा रहा है। किसान सभा नेताओं ने कहा है कि अपनी मांगों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन करने का अधिकार संविधान भी देता है, लेकिन प्राकृतिक संपदा की लूट को आसान बनाने के लिए केंद्र और राज्य, दोनों ही सरकारें उन पर जुल्म ढा रही है, उन पर लाठियां–गोलियां बरसा रही है और  उन्हें गैर–कानूनी तरीके से गिरफ्तार कर रही है। ये पुलिस कैंप ग्राम सभाओं की सहमति के बिना और पेसा कानून का उल्लंघन कर स्थापित किए जा रहे हैं।


आंदोलनकारी आदिवासियों से मिली जानकारी के आधार पर किसान सभा नेताओं ने घायल आदिवासियों की तस्वीरें और नाम भी जारी किए हैं। घायलों के नाम हैं : बोगाम भीमे, मूवा एमूला (अलगुड़ा), मड़लाम जोगा (बोड़ाम), ओयाम लखमा, ओयाम मंगडू (प्रलागट्टा), कुंजाम देवा, मुचाकी मंगू, मुचाकी मंगली (बैनपल्ली), छुर्रा, माड़वी पोदीयल (तोलेवर्ती), कलमू गंगी, माड़वी ठंगा, पोडियाम मासे (मोरपल्ली गांव) आदि।


किसान सभा नेताओं ने प्रदेश और देश भर की प्रगतिशील–जनवादी ताकतों से बस्तर के आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों और मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की है।


*संजय पराते*

अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ किसान सभा

(मो) 94242–31650

मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

हम पैसा देकर मंच नही करते - दीपक हटवार

 हम पैसा देकर मंच नही करते - दीपक हटवार 

रायपुर हम पैसा देकर मंच नही कर सकते उक्त वक्तव्य सुप्रसिद्ध उद्धोषक दीपक हटवार जी ने मायाराम सुरजन हॉल में चल रहे श्री शिवाय म्यूज़िकल गीत संगीत कार्यक्रम में कही जिसकी व्यापक प्रतिक्रिया हॉल ही में होने लगी किसी ने उनके कथन के समर्थन में ताली बजाई तो किसी ने हतप्रभ होकर प्रतिक्रिया व्यक्त की ऐसा कह कर दीपक हटवार जी ने  एक नया विवाद खड़ा कर दिया 

   श्री शिवाय ग्रुप द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में जब ..बिशन चाचा कुछ गाओ न... गीत के पश्चात दीपक हटवार जी को मंच आसंदी से दो शब्द कहने कहा गया तब उन्होंने  किसी  का नाम लिए बगैर ...मैं पैसा देकर मंच में नही आ सकता.. बल्कि दक्षिण लेकर काम करता हूँ क्योंकि यह कलाकार का हक़ है जैसे शब्दों का प्रयोग किया वही उन्होंने यह भी कहा कि मैं ने जीवन मे बड़े बड़े सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं के मंच संचालन किया मगर किसी भी मंच संचालन के लिए पैसा नही दिया  बल्कि दक्षिणा लेकर कार्यक्रम किया हूँ उन्होंने आगे कहा कि आज का दौर बड़ा अजीब दौर चल रहा है कार्यक्रम में क्वालिटी का ध्यान रखे अच्छे कलाकरों को ले तभी कार्यक्रम सफल होगा  जिस पर उपस्थित कुछ श्रोताओं ने ताली बजाकर उनके कथन का समर्थन और स्वागत किया तो कुछ ने प्रतिक्रिया स्वरूप बगैर सहयोग के कार्यक्रम असंभव की बात कही है अब यह पैसा देकर मंच संचालन जैसी विवादास्पद बयान को लेकर अलग नजरिए से देखा जा रहा है वही इस संदर्भ मे प्रसिद्ध मंच संचालक लक्ष्मी नारायण लाहोटी से चर्चा करने पर उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मंच संचालन करना एक सारथी का कार्य है जो कार्यक्रम को उसके गंतव्य तक पहुंचाता है कोई भी कार्यक्रम बगैर सहयोग लिए दिए चाहे वह कोई भी सामाजिक,धार्मिक स्तर का कार्यक्रम क्यों न हो परस्पर सहयोग,चंदे के नही किया जा सकता है वैसे भी आज के गीत संगीत कराओके कार्यक्रम पन्द्रह  से बीस हजार रुपये से कम में नही होता जो सब के सहयोग से संपन्न होता है इसमें परिवारिक सदस्य होने के नाते  सहयोग राशि देना कोई गलत नही है वही कुछ लोग अधिक राशि देकर मंच संचालन करने की बात पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह जिसकी जैसी इच्छा वह वैसा कर सकता है परंतु दीपक जी के इस बयान को लेकर हॉल में बैठे लोग कानाफूसी करते दिखे वही पैसा लेकर कलाकार लिए जाने की बात को लेकर भी काना फुसी हो रही थी कि कुछ कलाकार पैसा लेकर  मंच को अपनी बपौती मान लेते है और व्यवहारिक शिष्ट भाषा शैली भले सरल और सहजता पूर्ण हो परंतु उनका शब्दो से नियंत्रण लगभग समाप्त हो जाता है  तथा अनर्गल शब्द कहने से भी नही चूकते पूर्व मे सोशल मीडिया में समाचार प्रसारित किए गए चाय पानी बिस्कुट को लेकर पुनः मंच से वही बात कह दी जाती है बताते चले कि कार्यक्रम में उक्त कमी को  लेकर स्वयं म्यूज़िकल ग्रुप संचालको के द्वारा क्षमा मांग ली गई थी परंतु यहां  सम्मान के समय उपरोक्त बात का पुनः  चर्चा में लाने के पीछे क्या मंतव्य था ज्ञात नही वही कुछ दिन पूर्व भी एक एंकर द्वारा तो फ्री मंच संचालन सीखने कार्यशाला ही लगा दिया गया अब उक्त कार्यशाला में कितने मंच संचालक पैदा हुए ज्ञात नही  परंतु यह जरूर आभास हो रहा है कि बगैर दक्षिणा  लिए मंच संचालन जैसे वक्तव्य ने संपूर्ण कराओके कलाकारों के बीच एक चर्चा अवश्य छेड़ दी है

मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

सत्तर में फिट फिर भी हिट एंकरिंग के बेताज बादशाह सादिक खान

सत्तर में फिट फिर भी हिट

एंकरिंग के बेताज बादशाह सादिक खान


अलताफ हुसैन की कलम से 
रायपुर कुछ लोग नाम अर्जित करने के लिए बहुत कुछ करते है मगर कुछ लोग ऐसा काम कर जाते है कि उनका नाम खुद ब खुद हो जाता है काम के एवज में नाम कमाने वालो में रायपुर शहर के बुलंद आवाज़ के धनी,और हजारों स्टेज प्रोग्राम में अपनी आवाज़ से लोगों को सीटों पर चिपका कर सफल प्रोग्राम के जमानतदार माने जाने वाले मृदुभाषी,हरदिल अजीज़,बिजली की गरज के समान कड़क आवाज़ के धनी जिनके लब खुलते ही एक एक शब्द कानों में एक  मधुरस घोल देती हो अलहदा अंदाज़ में मंच संचालन से अपनी पृथक पहचान बनाने वाले एंकर सादिक खान आज किसी परिचय के मोहताज नही है श्री सादिक खान ने युवा काल से ही अपना जीवन स्टेज को समर्पित कर दिया था प्रारंभिक दौर में मटका पार्टी से जुड़ते हुए कॉमेडी करते करते कब रायपुर संगीत समिति आर्केस्टा में प्रस्तोता के साथ साथ  कई फिल्मी कलाकारों की आवाज़ में मिमिक्री से लोगों को गुदगुदाने का कार्य प्रारंभ किया यह वे स्वयं नही जानते  और उनकी विशेष छत्तीसगढ़ी,ओडिसा भाषीय शब्दावली में रंगोबती गीत सहित दो महिलाओं के परस्पर गुड़ाखु  पर केंद्रित वार्तालाप अभिनीत शैली  ने उन्हें काफी शोहरत दिलाई   मंच संचालन से प्रारंभ हुआ 

यह दौर आज सत्तर वर्षों में भी अनवरत जारी है कार्यक्रम की अर्जित आय से ही अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले एंकर सादिक खान से हमने जब उनसे भेंट की तो उन्होंने बड़े गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया और उसी मृदुभाषी व्यक्तित्व के साथ स्वागत करते हुए हमें अपने जीवन के उस सुनहरे पल को साझा किया जो हमे किसी समुद्र की उठती उतरती जल लहरों से कम नही लगा जीवन के सागर में ज्वारभाटा समतुल्य शैली से आए अनेक उतार चढ़ाव ने उनके मन को अवश्य व्यकुल किया जो रात के सन्नाटे में शून्य में निहारती आंखे  दुख,कष्ट के भाव लिए हाड़ मांस के निर्मित मानव शरीर रूपी अंतर्मन कक्ष मे भले परस्पर अंतर्द्वद्व करते रहे हो परन्तु यथार्थ और वास्तविक रंगमंच का यह सूत्रधारक जब भी रंगमंच पर दैदीप्यमान  होता तब  अपने विशेष  भाव भंगिमा और मायावी आवाज़ से उपस्थित श्रोताओं के मन मस्तिष्क  को अवश्य आकर्षित कर  गुदगुदा देता या फिर जीवन दर्शन कराती भिन्न भिन्न शायरों की शायरी और उस पर सम्मोहक आवाज़ की  जादूगरी का ऐसा शब्द बाण चलाता कि बैठा हुआ दर्शक हास् परिहास के स्वच्छंद वातावरण में वाह वह कहे बगैर  स्वतः को रोक नही सकता 

   यह कुदरत का ही देन कह ले कि लड़कपन में मटका पार्टी से  प्रारंभ किया गया प्रहसन,गीत संगीत के प्रति लगाव का यह सफर जीवन का लंबा सफर तय करने विवश कर देगा जिसमे नाम और शोहरत तो बहुत था  परंतु इस बात की कतई ग्यारंटी नही थी कि पारिवारिक जिम्मेदारी के उज्ज्वल भविष्य के साथ साथ भरण पोषण में एक स्थायी आर्थिक लाभ का संसाधन बन सके परंतु बड़ी जीवटता के साथ एंकर सादिक खान ने उन चुनौतियों का सामना किया और बगैर आय के अन्य संसाधन न होने के बावजूद उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में एक चट्टान की भांति जीवन संघर्षों का सामना किया और जीवन के पचास वर्षों तक केवल मंच संचालन के माध्यम से अपना भरापूरा परिवार का पालन पोषण किया अपने जीवन के एक एक अध्याय के स्मृति पन्नों को उलटते हुए सादिक खान ने बताया कि प्रारंभिक दौर में पवन छिब्बर के सान्निध्य में एंकरिंग और कॉमेडियन करता था  रायपुर संगीत समिति के बंद होने और पवन जी के जाने के पश्चात उन्होंने प्रायवेट आयोजन में एंकरिंग प्रारंभ की और बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध फिल्मी सितारों से लेकर गायको तक,भजन संध्या से लेकर क़व्वाली के प्रोग्राम तक मे उनके स्वयं की उपस्थिति में मंच संचालन कर जिनमे मुख्यत सोनू निगम,उदित नारायण,शब्बीर कुमार,मो.अजीज़,अनवर,विनोद राठौर, शक्ति कपूर,अनिल कपूर,  श्रीदेवी,कव्वालों में अजीज़ नाजां,मजीद शोला ,अलताफ राजा,अनूप जलोटा, सहित स्थानीय,भजन सम्राट,दुकालू यादव, किरण शर्मा जैसे नाम उनके स्टेज प्रोग्राम की फेहरिस्त में जुड़ते चले गए और सभी कार्यक्रम का उन्होंने सफलता पूर्वक अंजाम दिया और यह कारवां लगातार पचास वर्षों से आज भी अनवरत जारी है वर्तमान में भी वे प्रायवेट इवेंट में अपनी लगातार आवाज़ से मंच संचालन कर लोगों का मनोरंजन कर रहे है 

श्री सादिक खान का कथन है कि जब तक आवाज़ है तब तक वे मंच के प्रति समर्पित रहेंगे इस दरमियान आकाशवाणी,और दूरदर्शन में भी एंकरिंग करने का सुअवसर मिला छोटा गब्बर,एयर स्वर्णदीप जैसे कई  नाट्य मंचनों में अपने मंचीय आसंदी से बोले जाने वाले विशेष भाषीय शैली और जादूगरी आवाज़ से लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु बने रहे  आश्चर्य होता है कि पचास वर्षों तक समर्पित रह कर बगैर किसी अन्य व्यवसाय के कोई व्यक्ति अपना और परिवार का भरण पोषण जैसी महती जिम्मेदारी का निर्वहन कैसे किया होगा ? यह तो उनकी लगन, परिश्रम,और मंच के प्रति समर्पित भावना का ही परिणाम है कि अनेकों दुख दर्द को अपने सीने में दबाए यह मंच का सारथी जब मुस्कुराते हुए लोगों का मनोरंजन करते हुए मंच पर दैदीप्यमान होता है तब  भले ही उपस्थित श्रोता उसके जादूगरी शब्दों का जायका लेते हुए हंस हंस कर लोटपोट होते है, ताली बजाते है और खूब एन्जॉय करते है 

परंतु जैसे ही शो समाप्त हुआ लोगो को गुदगुदाने वाला यह मंच सारथी का जीवन अंधियार पूर्ण बंद कक्ष में अपने स्वयं के अस्तित्व की तलाश में बैचैन हो उठता है ठीक उस कलाकार के समान जो सिनेमाई रुपहले पर्दे में अपनी कला और एक्टिंग से प्रत्यक्ष रूप से श्रोताओं को हँसाता और गुदगुदाता है परंतु जब वह तन्हा होता है तो उसे हंसाने या बहलाने वाला कोई नही होता भौतिक जिम्मेदारी का एक बहुत बड़ा मसला सुरसा की भांति मुंह फाडे खड़े रहती है  कि उन सामाजिक भौतिकवादी जिम्मेदारी का समाधान कैसे और कब होगा और ऐसा हो भी क्यों न साहब ..क्योंकि मंच का यह जादूगर भी तो एक मानव मात्र है क्योंकि इसके भी सीने में दिल धड़कता है,,पारिवारिक जिम्मेदारी का इसे भी अहसास है और उसका समाधान मंच संचालन के माध्यम से प्राप्त हुए अल्प राशि से कर पाना असंभव है मंच सारथी सादिक खान को यह बात दिल की गहराई में सलती है कि मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा? उन्हें भरपूर ज्ञात है कि बड़े बड़े सुरमा एंकर आए और चले गए परन्तु जो गए उन्होंने अपने परिवार के भविष्य को सुव्यवस्थित कर दिया है परंतु यहां तो ...जब तक हम है तब तक यह गम है..उसके बाद सब कुछ खत्म है..वैसे भी हम सब जानते है कि ये दुनिया ही एक रंगमंच है ..यहां जो भी आता है इस रंग मंच का कठपुतली बन जाता है सब अपनी अपनी कला सफर की भूमिका तय करते हुए पार्श्र्व में चले जाते है 

और पीछे छोड़ जाते है न भूलने वाली स्मृतियां और अपने कदमों के निशां जिनके पद चिन्हों पर चलने का अनुसरण पुनः भावी नई पीढ़ी निभाती रहेगी  आइए,एंकरिंग और मंच संचालन के इस बेताज बादशाह सादिक खान जिन्होंने अपना पूरा जीवन ही मंच को जिया उसकी आगोश में श्रोताओं के ताली की गड़गड़ाहट में  मिला ऐसा स्नेह  जैसे कोई मां की गोद मे अपने दुलरुवा बेटे को थपकी के साथ जैसे लोरी पूर्ण गीत के बीच अपनी ममता का अनमोल खजाना लुटा रही हो 

यही तो फलसफा है एक वास्तविक रंगमंच के सच्चे कालाकार का जो सिर्फ और सिर्फ जीते ही है रंगमंच के लिए ऐसे समर्पित कलाकार  के लिए आज किसी फ़िल्म के गाए गीत की ये दो लाइन पूरी तरह मूर्धन्य कलाकार पर सटीक और सार्थक लग रही है -कि 

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जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां

जब जी चाहे आवाज़ दो हम थे वहीं हम थे जहां .....

रविवार, 11 दिसंबर 2022

अब तक बच्चन....अमिताभ के फिल्मी गीत का जादू चला

 अब तक बच्चन....अमिताभ के फिल्मी गीत का जादू चला


अलताफ हुसैन की समीक्षात्मक रपट

रायपुर सदी के महानायक  अमिताभ बच्चन के फ़िल्म और उनके गीतों  का जादू विगत कई वर्षों से लगातार जारी है जिसकी बानगी.. अब तक बच्चन... नामक कार्यक्रम के माध्यम से  आज मायाराम सुरजन हॉल में देखने मिला  जहां उनके प्रशंसकों के द्वारा उनके  फिल्मों के गीतों की प्रस्तुति दी गई  अब तक बच्चन शीर्षक की परिकल्पना श्रीमती कृष्णा शेषगिरी राव ने की और इस परिकल्पना को साकार करने में किसी प्रकार की कोताही नही बरती गई और एक से बढ़कर एक सुपरहिट गीत की प्रस्तुति दी गई कभी कभी मेरे दिल मे ख्याल आता है कि प्रस्तुति इशरत अली ने बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में प्रस्तुत किया वही शेषगिरी राव ने प्यारा सा गीत ...रिमझिम गिरे सावन ...जिसका पार्श्र्व गायन किशोर कुमार ने किया बहुत ही सुंदर ढंग से मंच से जिया जिसे श्रोता शांत चित्त सुनते रहे और तालियों से उनका स्वागत किया पल्लवी राव और जी भूषण राव ने युगल गीत ..बच के रहना रे बाबा,,,के बाद ये कहां आ गए हम ...फ़िल्म सिलसिला का सुप्रसिद्ध गीत को दोनों पति पत्नी ने अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया जी.भूषण राव ... आज रपट जाएं तो हमे न बचाइयों...अपने प्यार के सपने सच हुए ....मंजिले अपनी जगह... रास्ते अपनी जगह...तू मुझे कुबूल मैं तुझे कुबूल...

शीशीया राव और जी भूषण राव के युगल गीत ....इम्तेहान हो गई इंतज़ार की...गीत पर बैठे सभी श्रोता गायकों के साथ ताली बजा कर गाने का लुत्फ उठाया..ज़िंदगी इम्तेहान लेती है....परदेसिया ये सच है पिया...पर श्रोता झूमने और नाचने लगे...अच्छा कहो चाहे बुरा कहो...मैं पल दो पल का शायर हूँ...जैसे लगातार बच्चन साहब के गीत गूँजते रहे औऱ श्रोता भी प्रत्येक गीत का आनंद उठाते रहे वही कार्यक्रम में साउंड सिस्टम की तकनीक खराबी से श्रोताओं का जायका कुछ समय तक बिगड़ा जरूर परन्तु धीरे धीरे उसमे भी सुधार लाया गया वही अब तक बच्चन शीर्षक के सभी गीत केवल शेषगिरी राव,और उनके भ्राता श्री जी. भूषण राव ने अपने  अर्धांगिनीयों  के साथ संपूर्ण कार्यक्रम को अपने कंधों में सम्हाल रखा था अपवाद स्वरूप एक दो गायको को छोड़ दिया जाए तो कार्यक्रम निजी गायकी के प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है लगातार एक ही चेहरा देखने से भी बहुत से श्रोता शीघ्र पलायन कर गए ऐसे बहुत से श्रोता होते है  जिन्हें कार्यक्रम में नयापन होने की अपेक्षा और दरकार होती है जिसका अभाव दिखा फिर भी शेषगिरी राव एंड फैमिली का उक्त अब तक बच्चन कार्यक्रम... बच्चन साहब के फिल्मी जीवन के सिल्वर पर्दे पर अभिनीत सुपरहिट गीतों से श्रोताओं को लंबे समय तक बांधे रखा विशेष कर सिलसिला फ़िल्म में बच्चन की आवाज़ में बोले गए कविता शब्द की अदायगी बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत की गई कार्यक्रम के परिकल्पना कार शेषगिरी राव एवं जी भूषण राव और उनकी टीम ने  की गायकी में दम था तभी तो श्रोता मायाराम सुरजन हॉल में.. अब तक बच्चन ...की संगीतिज्ञ पाठशाला में उनके जीवन दर्शन से जुड़ी एक एक अध्याय का वर्णन  के साथ  गीतों का लुत्फ  देर रात तक उठाते रहे

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

रायपुर वन मंडल के चतुर्थ श्रेणी कर्मी महीनों नदारत फिर भी उठा रहे लाखों का वेतन

 रायपुर वन मंडल के चतुर्थ श्रेणी कर्मी महीनों नदारत फिर भी उठा रहे लाखों का वेतन 




अलताफ हुसैन

रायपुर एक तरफ वन विभाग के मैदानी अमले के अधिकारी,कर्मचारी निर्माण कार्यों से लेकर श्रमिक भुगतान,वृक्षारोपण में गड्ढे खनन से लेकर बिल बाउचर सहित अनेक गड़बड़,घोटाले और  भ्रष्टाचार को अंजाम देने में मस्त है तो वही कार्यालयीन कर्मचारी भी स्वास्थ्य की आड़ में अनुपस्थित रहकर फर्जी बिल के माध्यम से लाखों का चूना लगाने किसी प्रकार से गुरेज नही कर रहे और यथा संभव विभाग को नाना प्रकार से चुना लगाने नित नए नए हथकंडे का इस्तेमाल कर फर्जी बिल के माध्यम से अर्थ लाभ उठाने कोई अवसर नही खो रहे है हाल ही जंगल सफारी में दैनिक वेतन भोगी श्रमिक मनीष यदु का मामला अभी पूरी तरह शांत हुआ भी नही था वैसा ही मिलता जुलता एक अन्य प्रकरण रायपुर वन मण्डल कार्यालय का भी सामने आया है जहां चतुर्थ श्रेणी के तीन कर्मी लगातार लाखों की राशियों के भुगतान का लाभ उठा रहे है जिसका भान किसी को है कि नही यह तो ज्ञात नही परन्तु चर्चा जोरों पर है कि तीनों चतुर्थ श्रेणी भृत्य (अर्दली) पर रायपुर वन मण्डल कार्यालय के बड़े बाबू पद पर आसीन महिला क्लर्क की विशेष कृपा दृष्टि बनी हुई है जिससे विभाग को लाखों का आर्थिक नुकसान हो रहा है 

        विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रायपुर वन मंडल कार्यालय में भृत्य (अर्दली)चतुर्थ श्रेणी के पद पर कार्यरत राजकुमार ध्रुव,शंकर ठाकुर, और विजय यादव तीनों  पूरे रायपुर वन मंडल कार्यालय में चर्चा का विषय बने हुए है कि तीनों कर्मचारी विगत कई वर्षों से कार्यालय में महीनों उपस्थित रहते है न उनकी शक्ल कोई कार्यालयीन कर्मचारी देखता है फिर भी वे छः से सात माह का एक मुश्त वेतन का लाभ कार्यालय से उठा रहे है उनके सन्दर्भ में आगे चर्चा यह है कि  वेतन  प्राप्त करने के पश्चात वे मात्र पखवाड़े भर कार्यालय में नज़र आते है तथा उसके पश्चात उनकी शक्ल कभी कार्यालय  परिसर में नज़र नही आती  अर्थात  कई माह ये कार्य स्थल में दृष्टिगोचर भी नही होते तथा छः से सात माह में पुनः एक बार उपस्थित होकर लाखों का  वेतन का लाभ एक बार उठाते है फिर पुनः अंतर्धान हो जाते है  बताया जाता है कि रायपुर वन मंडल कार्यालय में  बड़े बाबू के पद पर पदस्थ महिला क्लर्क,और पदस्थापना प्रभारी  की उन तीनों पर विशेष कृपा दृष्टि बनी हुई अब वेतन जारी करने के एवज में उनके द्वारा बड़े बाबू को क्या कमीशन परितोष के रूप में प्राप्त होता है यह तो ज्ञात नही परंतु उनके द्वारा बगैर कार्यालय में उपस्थिति दर्ज किए लाखों का वेतन किस आधार पर जारी किया जाता है यह संदेह के दायरे में अवश्य आ गया है यही नही ज्ञात हुआ है कि उपरोक्त तीनों भृत्य(अर्दली) स्वास्थ्य संबंधी फर्जी बिल के माध्यम से भी लाखों की राशि आहरित करवा लेते है अब यह लाभ तीनो कर्मियों द्वारा किस आधार पर उठाया जा रहा है यह जांच का विषय है परंतु सवाल इस बात को लेकर उठाया जा रहा है कि बगैर उपस्थिति के तीनों को किस नियम,आधार पर अब  कार्य के एवज में,स्वास्थ्य गत कारणों से,या अनुपस्थित रहने के एवज में वेतन प्रदाय किया जा रहा है ? वही दूसरा सवाल  यह भी है कि यदि उनके द्वारा किसी भी प्रकार स्वास्थ्य गत  बिल इत्यादि प्रस्तुत करने पर उनसे उनकी उपस्थिति सहित उसके वस्तुस्थिति की जांच क्यों नही की जाती क्यों आंख बंद कर वेतन सहित अन्य प्रस्तुत बिल का भुगतान जारी कर दिया जाता है ? महीनों उपस्थिति पंजी में बगैर हस्ताक्षर किए कार्यालय से नदारत रहने के बावजूद उन्हें किस नियम के तहत वेतन जारी किया जाता है यह सब जांच का विषय है वही बड़े बाबू के पद पर आसीन महिला क्लर्क और पदस्थापना प्रभारी की कार्यशैली को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे है कि कार्यालय से महीनों नदारत चतुर्थ श्रेणी वन कर्मियों को किस नियम के आधार पर वेतन जारी करती है उक्त लाखों के वेतन जारी करने में कहीं उसका भी कमीशन तो नही बंधा हुआ है ? जिसके चलते वरिष्ठ अधिकारियों के बगैर संज्ञान के चलते लाखों के  वेतन भुगतान में बड़ा खेल खेला जा रहा है 

  वैसे भी बताते चले कि भृत्य और अर्दली भुगतान का  यह खेल केवल यहां  तक सीमित नही अर्दली के नाम पर प्रत्येक परिक्षेत्राधिकारी को एक अर्दली मिलता है परंतु कोई भी रेंजर अपने किसी अर्दली को साथ लेकर नही चलता परन्तु अर्दली भुगतान का लाभ प्रत्येक रेंज अधिकारी वर्षों से उठा रहे है जिस पर भी विभाग,चिंतन मनन कर सकता है

भानुप्रतापपुर से भाजपा प्रत्याशी की हार की जिम्मेदारी कौन लेगा ? वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी की बेबाक समीक्षा

 भानुप्रतापपुर से भाजपा प्रत्याशी की 

हार की जिम्मेदारी कौन लेगा ? 

वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी की बेबाक समीक्षा


छत्तीसगढ़ के भानुप्रतापपुर सीट पर हुए उपचुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया है. सवाल यह है कि भाजपा प्रत्याशी की करारी शिकस्त के बाद हार की जवाबदारी किस नेता के माथे पर चस्पा की जाएगी ? हाल-फिलहाल छत्तीसगढ़ भाजपा में यह तय नहीं हो पा रहा है कि आखिरकार पार्टी का प्रमुख कौन है और सबसे ज्यादा किसकी चलती है ? पार्टी का एक धड़ा पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को अपना नेता मानता है तो एक दूसरा धड़ा अरुण साव की तरफ चला गया है. प्रदेश में बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, नारायण चंदेल जैसे कुछ कद्दावर नेता भी है. लाख टके का सवाल यहीं है कि इन नेताओं में कौन है जो आगे बढ़कर कहेगा कि हमने एक ऐसे प्रत्याशी को टिकट दे दिया था जो एक नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के आरोप से घिरा हुआ था.हम हार की नैतिक जवाबदारी लेते हैं.


छत्तीसगढ़ में वर्ष 2018 के बाद से अब तक दंतेवाड़ा, चित्रकोट, मरवाही, खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर सीट पर उपचुनाव हो चुके है. हर चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है. पूरे 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहे भाजपा के सभी बड़े नेता हर बार जीत का दावा प्रस्तुत करते रहे है,लेकिन हर बार उनका दावा चूं-चूं का मुरब्बा साबित होता रहा है. 


फिलहाल गांव-गांव और शहरी हिस्सों में भूपेश बघेल और उनकी सरकार की स्थिति बेहद मजबूत दिखाई देती है. कई बार इधर-उधर का प्रेशर कुकर ग्रुप जिसमें चंद पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और चुके हुए कारतूस अफसर शामिल है..वे सीडी-फीडी, आईटी और ईडी के छापों की खबरों को आधार बनाकर यह माइंड सेट करने का प्रयास अवश्य करते हैं कि भूपेश सरकार कमजोर हो गई है. यह टर्म सरकार का अंतिम टर्म होगा... आदि-आदि...


लेकिन सरकार को हताश और परास्त देखने की पुरजोर कोशिश में लगे ऐसे सभी तत्व ( जैसे किसी शख्स की फेसबुक पोस्ट को देखकर बड़ी आसानी से जाना जा सकता है कि वह अंधभक्त है या नहीं...वैसे ही  भूपेश बघेल के खिलाफ पेड एम्पलाइज बनकर माहौल बनाने खेल में लगे लोगों के सरनेम से यह जाना जा सकता है कि उनका विरोध क्यों और किसलिए होता है.) यह भूल जाते हैं कि सांस्कृतिक जड़ें इतनी जल्दी उखड़ती नहीं है. छत्तीसगढ़ में निवास करने वाले मूल छत्तीसगढ़ियों को पहली बार यह लग रहा है कि उनकी अपनी बोली-बानी,अस्मिता को महत्व देने और समझने वाली कोई सरकार बनी है. गांव और शहर में रहने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं और भाजपाई मानसिकता को सहयोग करने वाले लोगों को छोड़ दिया जाय तो ज्यादातर छत्तीसगढ़िया इस बात से खुश है कि उनके बीच का एक ठेठ देसी आदमी उनका अपना मुख्यमंत्री है. वे सभी लोग जिन्होंने गांव की धूल और माटी से नाता तोड़ लिया है उन्हें थोड़ी गांवों की यात्रा भी करनी चाहिए. गांव के युवा और बुर्जुग ' कका ज़िंदा है ' जैसे गाने में अगर थिरक रहे है तो कोई बात अवश्य होगी. कोई जादू अवश्य होगा.


असल बात यह है कि जिन छत्तीसगढ़ियों के स्वाभिमान को बरसों तक कुचला गया...ऐसे सभी छत्तीसगढ़िया  अब किसी भी कीमत पर असल छत्तीसगढ़िया को हारते हुए देखना नहीं चाहते हैं.फिलहाल छत्तीसगढ़ में भाजपा के पास ऐसा कोई मुद्दा भी नहीं है जिसे वह चुनाव में एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकें. यह सही है कि जनता में कांग्रेस के कुछ विधायकों के प्रति नाराजगी है, लेकिन उनकी नाराजगी कका को लेकर नहीं है. जिन ग्रामीणों की जेब में सरकार की विभिन्न योजनाओं का पैसा जा रहा है उनके बीच यह बात भी पैठ कर गई है कि उनके अपने कका को केंद्र की भाजपा सरकार जबरिया परेशान कर रही है. भाजपा के लोग उन्हें फंसाने का षड़यंत्र रच रहे हैं. 


अगर कांग्रेस ने 20 से 25 सीटों पर पूरी निर्ममता के साथ प्रत्याशियों का बदलाव किया तो 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार के रिपीट हो जाने के पूरे-पूरे आसार है.


राजकुमार सोनी

98268 95207

बुधवार, 7 दिसंबर 2022

जंगल सफारी कुछ लोगों के लिए बना चारागाह श्रमिक ही कर रहे अधिकारियों का भय दोहन

 जंगल सफारी कुछ लोगों के लिए बना चारागाह श्रमिक ही कर रहे अधिकारियों का भय दोहन 


रायपुर जंगल सफारी भी हमेशा किसी न किसी विवाद की वजह से सुर्खियों में बना रहता है विशेष कर वहां कार्यरत दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को लेकर अफसरों और  श्रमिकों के मध्य विवाद की स्थिति सदैव निर्मित रहती है परंतु अब जो मामला प्रकाश में आया है वह किसी अधिकारी के द्वारा किसी श्रमिक को परेशान करने की नही बल्कि वहां कार्यरत एक ऐसे श्रमिक के द्वारा अधिकारियों को हलाकान करने की बात सामने आ रही है जो वहां माह में दस बारह दिन उपस्थित होकर और बाकी दिन कार्य न करने की एवज में पूरे माह का वेतन का लाभ कई माह से उठा रहा है यही नही सूचना के अधिकार  किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से लगवाकर दस बीस लाख की मांग अलग से किया जाना भी बताया गया है जिसके चलते स्थानीय जंगल सफारी कर्मी,अधिकारी खासे परेशान हो रहे है 

   नाम न छापने की शर्त पर कुछ श्रमिकों ने बताया कि मनीष यदु नामक श्रमिक जो मूलतः ग्राम जौंदा निवासी है के द्वारा विगत कई वर्षों से जंगल सफारी में दैनिक वेतन भोगी के रूप में कार्यरत है परंतु वह तीन स्थानों का अपनी आई डी. (आधार कार्ड,वोटर कार्ड )बना कर जंगल सफारी में कार्य कर रहा है उसके सन्दर्भ में ज्ञात हुआ है कि लंबे समय से जंगल सफारी में कार्य करने की वजह से पिछले कर्मियों के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार का लेखा जोखा निकालने,हेतु स्थानीय किसी प्रवीण कुमार नामक व्यक्ति के द्वारा सूचना का अधिकार के माध्यम से जंगल सफारी के अधिकारियों से मोटी रकम दस से बीस लाख की मांग की जाती है जिससे वहां के अधिकारी खासे परेशान हो चुके है  जबकि इस संदर्भ में   जंगल सफारी रेंजर अश्वनी चौबे से संपर्क कर वस्तुस्थिति ज्ञात करने का प्रयास किया गया परंतु उनसे संपर्क नही हो पाया इस संदर्भ में बहुत से जंगल सफारी कर्मियों ने बताया कि रेंजर चौबे एक मृदु भाषी, सरल और सहज अधिकारी है तथा अपने सौपे गए दायित्वों का ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करते है वही  मनीष यदु नामक श्रमिक द्वारा तीन आई डी के माध्यम से कैसे कार्य किए जाने के सन्दर्भ में पूछे जाने पर बहुत से कर्मियों  का कथन है कि जंगल सफारी ग्राम खंडवा,उपरवारा,पचेड़ा,और भेलवाडीह कि लगी भूमि में व्यवस्थित किया गया है जिसकी वजह से स्थानीय युवकों को रोजगार के उद्देश्य से स्थानीय श्रमिकों को अधिक तरजीह दिया जाता है जबकि मनीष यदु नामक कथित श्रमिक मूलतः जौंदा निवासी है तथा उसे जंगल सफारी में कार्य हेतु चारो ग्रामों में से किसी एक का निवासी होना अनिवार्य है यही कारण है कि यहाँ जंगल सफारी में कार्य हेतु आसपास ग्राम का निवासी होने तथा प्रमुखता के साथ जंगल सफारी में कार्य हेतु तीन ग्राम  स्थल का आई डी बनवा लिया है अब यह तीन स्थानों पर से कैसे आधार,वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाया है यह जांच का विषय है जबकि कुछ कर्मियों का कथन है कि अलग अलग आई डी का उपयोग ग्राम पंचायतों में होने वाले विकास और निर्माण कार्यों में श्रमिक के रूप में किया जाने की बात कही जा रही है तथा वहां से भी आर्थिक लाभ उठाया जाना बताया जा रहा है जबकि इस प्रकार के आई डी से जंगल सफारी में भ्रष्टाचार को अंजाम दिए जाने से भी इंकार नही किया जा सकता क्योंकि यह बात पूर्व में भी प्रकाश में आ चुकी है कि एक ही परिवार के कई सदस्य बगैर किसी कार्य को अंजाम दिए जंगल सफारी में पारिश्रमिक  लाभ उठाते रहे है इसे भी उसी रूप में जोड़ा जा रहा है मनीष यदु के बारे में यह भी ज्ञात हुआ है कि जंगल सफारी अधिकारियों का भय दोहन कर उसने अपने छोटे भाई तामेश यदु को भी वहां कार्य पर लगवा दिया है  बताया गया है कि मनीष यदु मुख्यमंत्री कार्यालय में किसी परिचित के माध्यम से अधिकारियों पर दबाव बनाता है जबकि स्थानीय छोटी मोटी राजनीति करने वाले नेता भी उसका पूरा समर्थन करते है  विधायक द्वारा उसके उक्त कृत्य से दो चार बार लताड़ा भी जा चुका है ऐसा बताया गया फिर भी भय दोहन कर्ता मनीष यदु नाना प्रकार से कभी पत्रकार,तो कभी किसी छूट भैया नेता अथवा मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्यरत किसी परिचित के माध्यम से लगातार सूचना का अधिकार एवं अन्य माध्यमों से अधिकारियों का भय दोहन कर बिचौलिया बन कर मामले को सेटलमेंट करता है वर्त्तमान में भी सफारी रेंजर हरि सिंह ठाकुर के नाम से सूचना का अधिकार लगा हुआ है इसका मध्यस्थता भी कथित मनीष यदु के द्वारा कराया जाएगा ऐसा लोगों का कहना है जबकि समस्त सूचना का अधिकार पत्र स्वयं उसके द्वारा पर्दे के पीछे रहकर अन्य लोगों के नाम से लगाया जाता है सवाल उठता है जब इस प्रकार से कोई व्यक्ति लगातार भय दोहन कर आर्थिक लाभ उठा रहा है तब उस पर अधिकारियों द्वारा कार्यवाही क्यों नही की जाती इससे स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं अधिकारी भी भ्रष्टाचार और घोटाले में लिप्त है तभी तो मनीष यदु की समस्त अनैतिक मांगों को पूरी कर रहे है और उसे आश्रय दिए हुए है हालांकि सफारी प्रबंधन चाहे तो ऐसे श्रमिक के विरुद्ध जो केवल दस दिन में कार्य मे उपस्थित होकर वहां की गतिविधियों को बाहर किसी परिचित के माध्यम से सूचना का अधिकार लगा कर मानसिक,और आर्थिक दोहन करने वाले कथित श्रमिक पर विधिवत कार्यवाही कर  कार्यालयीन निर्माण कार्यों की गोपनीयता भंग करने के एवज में उसे कार्य से पृथक कर सकता है