सत्तर में फिट फिर भी हिट
एंकरिंग के बेताज बादशाह सादिक खान
अलताफ हुसैन की कलम से
रायपुर कुछ लोग नाम अर्जित करने के लिए बहुत कुछ करते है मगर कुछ लोग ऐसा काम कर जाते है कि उनका नाम खुद ब खुद हो जाता है काम के एवज में नाम कमाने वालो में रायपुर शहर के बुलंद आवाज़ के धनी,और हजारों स्टेज प्रोग्राम में अपनी आवाज़ से लोगों को सीटों पर चिपका कर सफल प्रोग्राम के जमानतदार माने जाने वाले मृदुभाषी,हरदिल अजीज़,बिजली की गरज के समान कड़क आवाज़ के धनी जिनके लब खुलते ही एक एक शब्द कानों में एक मधुरस घोल देती हो अलहदा अंदाज़ में मंच संचालन से अपनी पृथक पहचान बनाने वाले एंकर सादिक खान आज किसी परिचय के मोहताज नही है श्री सादिक खान ने युवा काल से ही अपना जीवन स्टेज को समर्पित कर दिया था प्रारंभिक दौर में मटका पार्टी से जुड़ते हुए कॉमेडी करते करते कब रायपुर संगीत समिति आर्केस्टा में प्रस्तोता के साथ साथ कई फिल्मी कलाकारों की आवाज़ में मिमिक्री से लोगों को गुदगुदाने का कार्य प्रारंभ किया यह वे स्वयं नही जानते और उनकी विशेष छत्तीसगढ़ी,ओडिसा भाषीय शब्दावली में रंगोबती गीत सहित दो महिलाओं के परस्पर गुड़ाखु पर केंद्रित वार्तालाप अभिनीत शैली ने उन्हें काफी शोहरत दिलाई मंच संचालन से प्रारंभ हुआ यह दौर आज सत्तर वर्षों में भी अनवरत जारी है कार्यक्रम की अर्जित आय से ही अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले एंकर सादिक खान से हमने जब उनसे भेंट की तो उन्होंने बड़े गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया और उसी मृदुभाषी व्यक्तित्व के साथ स्वागत करते हुए हमें अपने जीवन के उस सुनहरे पल को साझा किया जो हमे किसी समुद्र की उठती उतरती जल लहरों से कम नही लगा जीवन के सागर में ज्वारभाटा समतुल्य शैली से आए अनेक उतार चढ़ाव ने उनके मन को अवश्य व्यकुल किया जो रात के सन्नाटे में शून्य में निहारती आंखे दुख,कष्ट के भाव लिए हाड़ मांस के निर्मित मानव शरीर रूपी अंतर्मन कक्ष मे भले परस्पर अंतर्द्वद्व करते रहे हो परन्तु यथार्थ और वास्तविक रंगमंच का यह सूत्रधारक जब भी रंगमंच पर दैदीप्यमान होता तब अपने विशेष भाव भंगिमा और मायावी आवाज़ से उपस्थित श्रोताओं के मन मस्तिष्क को अवश्य आकर्षित कर गुदगुदा देता या फिर जीवन दर्शन कराती भिन्न भिन्न शायरों की शायरी और उस पर सम्मोहक आवाज़ की जादूगरी का ऐसा शब्द बाण चलाता कि बैठा हुआ दर्शक हास् परिहास के स्वच्छंद वातावरण में वाह वह कहे बगैर स्वतः को रोक नही सकता
यह कुदरत का ही देन कह ले कि लड़कपन में मटका पार्टी से प्रारंभ किया गया प्रहसन,गीत संगीत के प्रति लगाव का यह सफर जीवन का लंबा सफर तय करने विवश कर देगा जिसमे नाम और शोहरत तो बहुत था परंतु इस बात की कतई ग्यारंटी नही थी कि पारिवारिक जिम्मेदारी के उज्ज्वल भविष्य के साथ साथ भरण पोषण में एक स्थायी आर्थिक लाभ का संसाधन बन सके परंतु बड़ी जीवटता के साथ एंकर सादिक खान ने उन चुनौतियों का सामना किया और बगैर आय के अन्य संसाधन न होने के बावजूद उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में एक चट्टान की भांति जीवन संघर्षों का सामना किया और जीवन के पचास वर्षों तक केवल मंच संचालन के माध्यम से अपना भरापूरा परिवार का पालन पोषण किया अपने जीवन के एक एक अध्याय के स्मृति पन्नों को उलटते हुए सादिक खान ने बताया कि प्रारंभिक दौर में पवन छिब्बर के सान्निध्य में एंकरिंग और कॉमेडियन करता था रायपुर संगीत समिति के बंद होने और पवन जी के जाने के पश्चात उन्होंने प्रायवेट आयोजन में एंकरिंग प्रारंभ की और बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध फिल्मी सितारों से लेकर गायको तक,भजन संध्या से लेकर क़व्वाली के प्रोग्राम तक मे उनके स्वयं की उपस्थिति में मंच संचालन कर जिनमे मुख्यत सोनू निगम,उदित नारायण,शब्बीर कुमार,मो.अजीज़,अनवर,विनोद राठौर, शक्ति कपूर,अनिल कपूर, श्रीदेवी,कव्वालों में अजीज़ नाजां,मजीद शोला ,अलताफ राजा,अनूप जलोटा, सहित स्थानीय,भजन सम्राट,दुकालू यादव, किरण शर्मा जैसे नाम उनके स्टेज प्रोग्राम की फेहरिस्त में जुड़ते चले गए और सभी कार्यक्रम का उन्होंने सफलता पूर्वक अंजाम दिया और यह कारवां लगातार पचास वर्षों से आज भी अनवरत जारी है वर्तमान में भी वे प्रायवेट इवेंट में अपनी लगातार आवाज़ से मंच संचालन कर लोगों का मनोरंजन कर रहे है
श्री सादिक खान का कथन है कि जब तक आवाज़ है तब तक वे मंच के प्रति समर्पित रहेंगे इस दरमियान आकाशवाणी,और दूरदर्शन में भी एंकरिंग करने का सुअवसर मिला छोटा गब्बर,एयर स्वर्णदीप जैसे कई नाट्य मंचनों में अपने मंचीय आसंदी से बोले जाने वाले विशेष भाषीय शैली और जादूगरी आवाज़ से लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु बने रहे आश्चर्य होता है कि पचास वर्षों तक समर्पित रह कर बगैर किसी अन्य व्यवसाय के कोई व्यक्ति अपना और परिवार का भरण पोषण जैसी महती जिम्मेदारी का निर्वहन कैसे किया होगा ? यह तो उनकी लगन, परिश्रम,और मंच के प्रति समर्पित भावना का ही परिणाम है कि अनेकों दुख दर्द को अपने सीने में दबाए यह मंच का सारथी जब मुस्कुराते हुए लोगों का मनोरंजन करते हुए मंच पर दैदीप्यमान होता है तब भले ही उपस्थित श्रोता उसके जादूगरी शब्दों का जायका लेते हुए हंस हंस कर लोटपोट होते है, ताली बजाते है और खूब एन्जॉय करते है
परंतु जैसे ही शो समाप्त हुआ लोगो को गुदगुदाने वाला यह मंच सारथी का जीवन अंधियार पूर्ण बंद कक्ष में अपने स्वयं के अस्तित्व की तलाश में बैचैन हो उठता है ठीक उस कलाकार के समान जो सिनेमाई रुपहले पर्दे में अपनी कला और एक्टिंग से प्रत्यक्ष रूप से श्रोताओं को हँसाता और गुदगुदाता है परंतु जब वह तन्हा होता है तो उसे हंसाने या बहलाने वाला कोई नही होता भौतिक जिम्मेदारी का एक बहुत बड़ा मसला सुरसा की भांति मुंह फाडे खड़े रहती है कि उन सामाजिक भौतिकवादी जिम्मेदारी का समाधान कैसे और कब होगा और ऐसा हो भी क्यों न साहब ..क्योंकि मंच का यह जादूगर भी तो एक मानव मात्र है क्योंकि इसके भी सीने में दिल धड़कता है,,पारिवारिक जिम्मेदारी का इसे भी अहसास है और उसका समाधान मंच संचालन के माध्यम से प्राप्त हुए अल्प राशि से कर पाना असंभव है मंच सारथी सादिक खान को यह बात दिल की गहराई में सलती है कि मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा? उन्हें भरपूर ज्ञात है कि बड़े बड़े सुरमा एंकर आए और चले गए परन्तु जो गए उन्होंने अपने परिवार के भविष्य को सुव्यवस्थित कर दिया है परंतु यहां तो ...जब तक हम है तब तक यह गम है..उसके बाद सब कुछ खत्म है..वैसे भी हम सब जानते है कि ये दुनिया ही एक रंगमंच है ..यहां जो भी आता है इस रंग मंच का कठपुतली बन जाता है सब अपनी अपनी कला सफर की भूमिका तय करते हुए पार्श्र्व में चले जाते है
और पीछे छोड़ जाते है न भूलने वाली स्मृतियां और अपने कदमों के निशां जिनके पद चिन्हों पर चलने का अनुसरण पुनः भावी नई पीढ़ी निभाती रहेगी आइए,एंकरिंग और मंच संचालन के इस बेताज बादशाह सादिक खान जिन्होंने अपना पूरा जीवन ही मंच को जिया उसकी आगोश में श्रोताओं के ताली की गड़गड़ाहट में मिला ऐसा स्नेह जैसे कोई मां की गोद मे अपने दुलरुवा बेटे को थपकी के साथ जैसे लोरी पूर्ण गीत के बीच अपनी ममता का अनमोल खजाना लुटा रही हो
यही तो फलसफा है एक वास्तविक रंगमंच के सच्चे कालाकार का जो सिर्फ और सिर्फ जीते ही है रंगमंच के लिए ऐसे समर्पित कलाकार के लिए आज किसी फ़िल्म के गाए गीत की ये दो लाइन पूरी तरह मूर्धन्य कलाकार पर सटीक और सार्थक लग रही है -कि
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जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां
जब जी चाहे आवाज़ दो हम थे वहीं हम थे जहां .....







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