जब वनवीरों ने घायल भालू की जान बचाई
अलताफ हुसैन की कलम से
नया साल 24 जनवरी 2022 की वो रात थी संपूर्ण प्रदेश शीत लहर की चपेट में था खासकर महासमुंद वन मंडल के बागबाहरा वन परिक्षेत्र में सघन वन क्षेत्र होने के कारण खून जमा देने और हाड़ कंपा देने वाली ठंड कुछ ज्यादा ही थी संध्या होते ही लोग बाग गर्म कपड़े और आग के अलाव का सहारा ले रहे थे बागबाहरा से ही लगभग दस से पन्द्रह किलोमीटर दूर पहाड़ों पर स्थित माता रानी के चंडी मंदिर परिसर मे सीढ़ियों के आसपास जहां गिने चुने संख्या में ही कुछ लोगों का वास है वहां के लोग अपने घरों के दरवाजे खिड़की सब बंद करके कम्बलों और रजाई से शरीर को गर्मी देकर गहरी निंद्रा में डूबे थे कुम्हलाई भोर होने के पूर्व जब चारों ओर अंधेरा पसरा हुआ था भोर फटने के पहले इस सन्नाटे को चीरती हुई बीच बीच मे एक दर्दनाक चीत्कार जो शायद किसी भालू की थी शांत वातावरण को भंग कर देती धीरे धीरे पौ फटना शुरू हुआ मंदिर के पुजारी ने नियत समय पर शंखनाद किया मंदिर में लगी घण्टी की आवाज़ से मंदिर परिसर गुंजयमान होने लगा ऐसा लग रहा था मानो पुजारी जी शंखनाद और घण्टी बजाकर सूर्य देव की पहली किरण के आगमन के साथ ही उनके धरती पर स्वागत कर रहे हो कुछ क्षण पश्चात लाउडस्पीकर में संस्कृत के भगवत गीता श्लोक और भजन गूंजने लगा माता रानी की आराधना के साथ ही इस धरती के समस्त प्राणियों की सुख स्वस्थ्य और समृद्धि की प्रार्थना होने लगा उसी मध्य मंदिर प्रांगण में ही किसी भालू की दर्द से डूबी कराह की आवाज़ पुनः गूंजी अपनी जिज्ञासा शांत करने के उद्देश्य से पंडित जी जब बाहर आए तब देखा कि एक भालू जो पैर और पेट के कटिबंध हिस्से पर अपनी जबान से घाव के स्थान को बार बार चाट रहा है जिसे देख पंडित जी समझ गए कि भालू चोटिल और जख्मी है अतएव उन्होंने बगैर देरी किए महासमुंद वन मंडल के अंतर्गत बागबाहरा परिक्षेत्र में कई वर्षों से वन्य प्राणी भालुओं की मंदिर परिसर में देखरेख सुरक्षा का दायित्व में लगे वन कर्मी महेश चंद्राकर उर्फ मिंटू को मोबाइल से सूचना दी वन कर्मी महेश चंद्राकर बगैर देरी किए पहाड़ों वाली माता रानी के चंडी मंदिर परिसर पहुंचा जहां उसने वन्य प्राणियों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से लगाए गए तार फेंसिंग के तरफ जाकर एक निश्चित दूरी बनाकर जब एक लकड़ी से भालू के बालों को हटाकर देखा तब उसके कटिबद्ध हिस्से जहां पैर और पेट मिलता है वहां उसे जख्म नज़र आया तथा उसमें कोई नुकीली वस्तु धंसी हुई नजर आई वन कर्मी महेश चंद्राकर ने तत्काल इसकी सूचना बागबाहरा परिक्षेत्राधिकारी विकास चंद्राकर को दी परिक्षेत्राधिकारी विकास चंद्राकर ने जब भालू के घायल होने तथा उसके पेट में कोई नुकीली वस्तु धंसी होने की खबर सुनी तब उन्हें लगा कि संभवतः वन क्षेत्र मे किसी झाड़ी की नुकीली टहनी या बांस इत्यादि चुभी हो सकती है इसलिए उन्होंने तत्काल वन कर्मी महेश चंद्राकर को उसे निकालने आदेशित किया वन कर्मी महेश चंद्राकर उर्फ मिंटू ने एक लंबे बांस मे रस्सी का फ़ांदा बना कर घायल भालू के चोटिल वाले हिस्से में थोड़ा सा निकले अंश पर फ़ांदा को फंसा कर उसे खिंचा जिससे भालू दर्द से बिलबिला उठा तथा एक दर्द भरी चीत्कार पूरे मंदिर परिसर क्षेत्र में गूंज उठी अपने शरीर मे हो रहे असहनीय पीड़ा से बिलबिलाया भालू तत्काल वहां से लंगड़ाते हुए वन क्षेत्र की ओर पलायन कर गया वन कर्मी महेश चंद्राकर उर्फ मिंटू समझ गया कि भालू के शरीर मे कोई लोहेदार वस्तु धंसी है उसने पुनः परिक्षेत्राधिकारी विकास चंद्राकर को वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए बताया कि भालू को किसी ने लौह युक्त हथियार से मारा है वही वस्तु उंसके कटिबन्ध हिस्से में धंसी हुई है
उसने उन्हें बताया कि उसके पेट में धंसी नुकीली लौह वस्तु के तीर होने की संभावना भी व्यक्त की इतना सुनते ही बागबाहरा परिक्षेत्राधिकारी विकास चंद्राकर सकते में आ गए एवं तत्काल इसकी सूचना वरिष्ठ वन मण्डलाधिकारी श्री पंकज राजपूत को भालू के घायल वाली स्थिति से अवगत कराया महासमुंद डीएफओ पंकज राजपूत ने जब भालू के घायल होने की बात सुनी तो वे भी सकते में आ गए और बगैर देरी किए आहत भालू को रेस्क्यू कर उंसके समुचित उपचार के आदेश दिए तब परिक्षेत्राधिकारी श्री विकास चंद्राकर तुरन्त एक्शन मोड़ में आते हुए अपने स्टॉप को लेकर त्वरित बागबाहरा के पर्वत क्षेत्र स्थित मातारानी के चंडी मंदिर पहुंच गए मंदिर परिसर पहुंचते ही उन्होंने सर्व प्रथम आने वाले समस्त भक्तों को दर्शनार्थ हेतु पृथक व्यवस्था सुनिश्चित की ताकि भक्तों,श्रद्धालुओं एवं घायल भालू की एक निश्चित दूरी बनी रहे क्योंकि उन्हें यह आशंका बढ़ गई थी कि घायल होने पर वन्यप्राणी भालू किसी पर भी हमलावर हो सकता है अतएव व्यवस्था दुरुस्त करने के पश्चात उन्होंने अपनी पूरी टीम के साथ मंदिर परिसर में अपना डेरा जमा दिया परन्तु कई घण्टों के इंतजार के बावजूद भालू नही आया 24 जनवरी 2022 के दिन भर घायल भालू के आगमन की बाट स्वयं परिक्षेत्राधिकारी एवं उनकी पूरी टीम जोहते रही मगर वह दिन भर नही आया तब दिन के उजाले में उन्होंने अपने टीम के वन कर्मियों से घायल भालू की तलाश करने पहाड़ों की ओर भेजा परन्तु साथ ही उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि अकेले कोई भी कर्मी न जाएं दो से तीन कर्मी साथ रहे और अपने साथ लाठी इत्यादि रखे रहे ताकि किसी अप्रिय स्थिति में आत्म सुरक्षा किया जा सके टीम के सभी सदस्यों ने पहाड़ी क्षेत्र में घायल भालू की काफी तलाश की मगर वह उन्हें कहीं भी नज़र नही आया तब वे भी बैरंग लौट आए दिन गुजरने के पश्चात धीरे धीरे काफी रात हो गई मगर घायल भालू मंदिर परिसर नही पहुंचा तब उन्होंने विभाग द्वारा लगाए गए मजबूत फेंसिंग की गई जाली के समीप शटर वाला पिंजरा लगवाया जिसमे मूंगफली के साथ फल इत्यादि का ढेर लगवा दिया उन्हे उम्मीद थी कि देर सबेर ही सही संभवतः भूख लगने पर भालू खाने पीने की लालसा में यहां अवश्य आएगा मगर उनकी उम्मीद तब धराशायी हो गई जब धीरे धीरे रात भी व्यतीत हो गई एक दिन एक रात गुजरने के बाद भी वह वहां नही पहुंचा इस दरमियान डीएफओ पंकज राजपूत बराबर स्थिति पर नज़र रखे हुए थे पल पल की खबर वे रेंजर विकास चंद्राकर से ले रहे थे जब उन्हे बताया गया कि घायल भालू अब तक मंदिर परिसर नही पहुंचा तब उनके माथे पर भी चिंता की लकीर और खींच गई उन्होंने समस्त कर्मियों को निर्देश दिया कि जब तक घायल भालू को पकड़ न लो तब तक वही डेरा जमाए रहो दूसरे दिन यानी दिनांक 25 जनवरी 2022 के दिन वे स्वयं मंदिर परिसर पहुंच कर स्थिति पर नज़र जमाए रहे लगभग तीन घण्टे तक घायल भालू के आगमन की वे प्रतीक्षा करते रहे मगर वह मंदिर परिसर तक नही पहुंचा तब परिक्षेत्राधिकारी श्री चंद्रकार ने उनकी परेशानी को समझते एवं सांत्वना देते हुए डीएफओ श्री पंकज राजपूत से कहा सर लगता है ...विभाग द्वारा गत वर्ष लगाए गए फलदार वृक्षारोपण जिनमे कई पौधे अब फल भी देना प्रारंभ कर दिए है,,,शायद उन्ही फल को खाकर वह यहां नही आ रहा है ...ऐसा कह कर वे डीएफओ साहब की चिंता कम करने का प्रयास किया ...परन्तु डीएफओ साहब की चिंता उंसके खानपान से अधिक उंसके जख्म को लेकर हो रही थी कहीं चोट में अत्यधिक संक्रमण की वजह से उसके जान का खतरा बढ़ सकता था ...इस बात को लेकर वे कुछ ज्यादा व्यथित एवं चिंता ग्रस्त थे एक प्रकार से रेंजर श्री विकास चंद्राकर की बात भी सत्य थी
क्योंकि बागबाहरा परिक्षेत्र ही प्रदेश भर में एक ऐसा एकलौता परिक्षेत्र है जहां वन विभाग की महती योजना जामवंत योजना पर अक्षरशः पालन किया गया है तथा भालुओं के संरक्षण संवर्धन और उसके खानपान की व्यवस्था दुरुस्त करते हुए लगभग दस हेक्टेयर पहाड़ी क्षेत्र के भूभाग पर फलदार वृक्षारोपण किया है जिनमे वन्यप्राणी भालुओं की पसंदीदा, एवं रुचिकर फल बेर आम जाम जामुन बेल,सहित अनेक फलदार पौधों का रोपण किया है जो वर्तमान में दस से बारह फीट ऊंचाई वाले पेड़ के रूप में बढ़त बना चुके है जिसमे अनेक फलदार वृक्षों में मौसमी फल आना भी प्रारंभ हो गया है जिसमें जाम,बेर प्रमुख है रेंजर श्री विकास चंद्रकार की बात भी सत्य थी वही घायल भालू को लेकर इस बात की भी आशंका हो रही थी कि मंदिर परिसर में नियमित आने वाले भालू परिवार से घायल भालू इनसे अलग था वह किसी अन्य वन क्षेत्र का होने के कारण यहां वह मादा भालू के आकर्षण की वजह से अथवा खाद्य पदार्थ की लालसा में यहां पहुंच गया था क्योंकि लगातार वनों के विदोहन से फलदार वृक्षों में कमी आई है जिसकी वजह से भूख लगने के कारण कई वन्य प्राणी जंगल छोड़ ग्राम,शहरों का रुख करते है जिनमे कई भालू जैसे प्राणी अपनी भूख मिटाने घरों में रखे खाद्य सामग्री सहित तेल इत्यादि सब चट कर जाते है मंदिर परिसर में भी भक्तों श्रद्धालुओं द्वारा दिए जाने वाले प्रसाद उनके आहार,विहार में शामिल हो गया और वे पहाड़ी वन क्षेत्र में ही दस किलोमीटर के अंतराल विचरण करते रहते है भक्तों श्रद्धालुओ के दिए जाने वाले प्रसाद और मानव की नजदीकी किसी घटना में परिवर्तित न हो जाए इसकी चिंता करते हुए महासमुंद वन मण्डल के बागबाहरा परिक्षेत्र में विभाग की जामवंत योजना के तहत दस हेक्टेयर भूभाग में फल दार वृक्षों का सफल रोपण किया गया जो प्रदेश भर में संभवतः गिने चुने स्थलों पर ही दिखाई देता है जिसमे बागबाहरा परिक्षेत्र का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है वहां रोपित फलदार पौधों में अब फल भी लगने प्रारंभ हो चुके है जिसका सेवन कर अपने ही क्षेत्र में वह सुरक्षित एवं स्वस्थ्य जीवन व्यतीत कर सके तथा वन्य प्राणी भालू और मानव की एक निश्चित दूरी बनी रहे
फिर भी भालुओं का पांच से सात सदस्यीय दल प्रतिदिन मंदिर परिसर पहुंचकर अपनी क्षुधा शांत करते है आशंका जताई गई कि घायल भालू अलग थलग रहने के कारण अपनी क्षुधा शांति हेतु किसी आसपास ग्राम में पहुंचा होगा जहां कमार जनजाति की बहुलता है तथा उनके यहां पारंपरिक तीर कमान प्रत्येक घरों में होता है वही खानपान वस्तु के लिए किसी घर मे घुसने के कारण भालू के ऊपर किसी ने तीर से हमलाकर उसे चोटिल कर दिया जिससे वह वन क्षेत्र में भाग गया होगा इस दरमियान आवागमन करते हुए तीर के किसी पेड़,पौधों के तने से टकराने की वजह से तीर में लगे लकड़ी का टुकड़ा टूट गया जिससे लोहे का तीर उंसके पेट मे ही धंसा रह गया अब चिंता इस बात को लेकर थी कि कहीं भालू के पेट मे धंसा तीर जहर बुझा हुआ तो नही ?
इसी बात की चिंता डीएफओ पंकज राजपूत को रह रह कर सता रही थी मगर दूसरा दिन भी धीरे धीरे गुजर गया सूर्य देवता भी क्षितिज के अस्तांचल की ओर पहुंच गए संध्या की सुरमई रंग अब धीरे धीरे गहरे काले रंग में परिवर्तित होने लगा मंदिर परिसर में दूधिया बिजली के प्रकाश ने संपूर्ण परिसर को अपने आगोश में ले लिया तथा थोड़ा आगे जाने पर काले गहरे रात के अंधेरे में कुछ भी दिखाई नही देता इधर बागबाहरा परिक्षेत्राधिकारी विकास चंद्राकर की उम्मीद भी शनैः शनैः क्षीण होते जा रही थी कि घायल भालू वापस आएगा भी या नही वे भी कुर्सी में बैठे दूर से टकटकी लगाए बैठे पिंजरे की ओर दृष्टि गड़ाए बैठे रहे इस आशा की किरण के साथ कि घायल भालू आए तो कम से कम उसकी जान बचाया जा सके क्योंकि घायल भालू के रेस्क्यू के चक्कर मे दो दिन से उनका खाना पीना तक छूट गया था जबकि आज दिनांक 25 जनवरी 2022 की रात थी क्योंकि दूसरे दिन राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस भी था जिसकी व्यवस्था भी उन्ही के जिम्मे थी यही सब सोच विचार उनके मर्म मस्तिष्क में चल ही रहा था कि सहसा रात्रि के साढ़े सात बजे उन्हें अंधेरे में कुछ हलचल सी सुनाई दिया उन्होंने अपना सिर जरा ऊंचा करके गौर से देखा तो बोझिल हालात में उन्हें भालू आता दिखाई दिया तत्काल उन्होंने टीम के वन कर्मियों को सतर्क रहने कहा धीरे धीरे भालू पिंजरे के समीप पहुंचा जहां ढेर सारा फल्ली सहित फल इत्यादि रखा था उसमें घुसते ही शटर स्वमेव गिर गया इससे भालू व्यथित हो कर जोर की हुंकार भरी और वह पिंजरे में बेचैन इधर उधर घूमने लगा अब रात का समय लगभग नौ बज रहे थे इस हालत में उसे उपचार की अति आवश्यकता थी रेंजर विकास चंद्राकर ने तत्काल महासमुंद डीएफओ पंकज राजपूत से संपर्क कर उन्हें भालू के पिंजरे में फंसने और उसके उपचार का आग्रह किया डीएफओ पंकज राजपूत ने बिना समय गंवाए तुरंत जंगल सफारी के डॉक्टरों से संपर्क कर आज ही घायल भालू के उपचार की बात कही क्योंकि रात काफी हो चुकी थी और दूसरे दिन यानी 26 जनवरी गणतंत्र दिवस का दिन भी था शासकीय कर्मियों की ध्वजारोहण एवं शासकीय अवकाश की वजह से भालू के उपचार में देरी न हो जाए यही वजह थी कि जंगल सफारी के डॉक्टर भी घायल भालू के उपचार हेतु सहमत हो गए तब परिक्षेत्राधिकारी विकास चंद्राकर अपनी टीम के साथ रातों रात नवा रायपुर अटल नगर स्थित जंगल सफारी पहुंचे जहां डॉक्टरों ने घायल भालू का ऑपरेशन कर पेट मे धंसे तीर को निकाला तथा लगे तीर का परीक्षण भी किया गया कि कहीं तीर जहर बुझा हुआ तो नही मगर परीक्षण पश्चात डॉक्टर आश्वस्त हो गए कि तीर किसी भी प्रकार के ज़हर से बुझा नही है और न ही वह ज्यादा संक्रमित हुआ है उंसके समुचित उपचार हेतु उसे तीन दिनों तक डॉक्टरी देखरेख में रखने की बात की तब रेंजर विकास चंद्रकार अपनी टीम के साथ वापिस बागबाहरा आ गए ठीक तीन दिन पश्चात दिनांक 29 जनवरी 2022 को उन्हें रायपुर के जंगल सफारी से कॉल आया कि घायल भालू स्वस्थ्य है चाहे तो उसे ले जा सकते है फिर वे अपनी टीम के साथ जंगल सफारी पहुंचे तथा उसी पिंजरे में भालू को लेकर उसे वापस बागबाहरा के पर्वतीय वन क्षेत्र स्थल जहां करीब ही माता रानी का चंडी मंदिर परिसर भी लगा हुआ है वहां पहुंचे तथा स्वस्थ्य प्राप्त भालू को लेकर जब वे वहां पहुंचे तब भालुओं का पांच सदस्यीय परिवार जो सदैव मंदिर परिसर में प्रसाद के अलावा फल्ली,जाम और फल फूल के नित सेवन को आते है वहां वे सब अपने पसंद का फल,फल्ली खाने में व्यस्त थे बागबाहरा रेंजर विकास चंद्राकर ने पिंजरे मे कैद भालू को सावधानी पूर्वक उसे नीचे उतरवाया तथा एक कर्मी को शटर उठाने कहा जैसे ही शटर ऊपर उठा भालू धीरे से बाहर आया सभी भालू खाना छोड़कर तुरन्त छोड़े गए भालू को देखने लगे उसमे कुछ छोटे भालू अठखेलिया करते हुए उंसके पास पहुंच कर उसे सूंघने लगे तथा धीमी धीमी ध्वनि निकालने लगे उनके व्यवहार को देखकर मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था
जैसे वे उसे बहुत दिनों से मिले न हो तथा उसकी वापसी पर अपनी खुशी व्यक्त कर रहे हो और घायल भालू भी अपने प्रजाति परिवार को देख कर अपने मुंह को उनके शरीर पर रगड़ने लगा जैसे वह अपनों के बीच पहुंच कर अपनी खुशी के साथ प्रेम व्यक्त कर रहा हो थोड़ी देर तक दूर खड़े रेंजर विकास चंद्राकर उनके स्नेह भाव और मिलन को देखते रहे है और उनके मन मस्तिष्क पर आज के सामाजिक मानव व्यवस्था और व्यवहार को लेकर अनेक सवाल कौंधने लगे कि एक वन्य प्राणी जिनका आपस मे कोई रिश्ता नाता नही है फिर भी वे आपस मे प्रेम प्रदर्शित कर रहे है,,,प्रसन्न हो रहे है,,,मिलजुल कर फल खा रहे है,,, आपस मे लड़ नही रहे है ,,,और एक मानव है जो निज स्वार्थ के लिए परस्पर एक दूसरे का गला काटने प्रतिस्पर्धा करता है,,,धोखा छल कपट करता है,,,,और धन दौलत के लिए अपने नैतिक मूल्यों का पतन करता है,,,परन्तु जब इस दुनिया से वह जाता है तब उसके हाथ खाली के खाली रहते है,,,सिवाय,मानव अपने कर्मों के कुछ भी नही ले जाता ,,,,, फिर भी इंसान अपने क्षणिक सुख के लिए क्या से क्या नही करता,,,यह सब सोचकर रेंजर विकास चंद्राकर ने एक बार फिर उन भालुओं की टोली की ओर नज़र डाली जो अभी भी अपने खानपान में व्यस्त थे ,,,, कि चंद मिनट पश्चात अचानक एक भालू ने एक विशेष प्रकार की ध्वनि निकाला,,, सब के सब भालू एक एक कर पर्वतीय वन क्षेत्र की ओर बढ़ने लगे चंद कदम चलने के पश्चात एक बार घायल भालू रुक सभी खड़े वन कर्मियों की ओर पलट कर दयनीय नजरों से देखा जैसे वह उनका आभार व्यक्त कर धन्यवाद दे रहा हो,,,फिर वह अपनी गर्दन को सीधे कर धीरे धीरे पर्वतीय वन क्षेत्र की ओर बढ़ने लगा,,,, भालुओं की टोली को रेंजर विकास चंद्राकर दूर तलक जाते हुए तब तक देखते रहे जब तक वे सब के सब नजरों से दूर ओझल नही हो गए तब तक रेंजर विकास चंद्राकर का दिमाग भी स्वयं के मन को यह कह कर समझा कर संतुष्ट कर चुका था कि,,, ,,,,कमबख्त,,,,जानवर तो बहुत बार देखे,,,मगर जानवरों में पूरी तरह का मानवता आज पहली बार देख रहा हूं,,,और यह शब्द के आते ही एक मर्तबा उनके चेहरे में हल्की सी एक संतोषजनक विजयी मुस्कान आई ,,, और उनके कदम एक वन वीर की भांति विजयी हुए किसी योद्धा की तरह धीरे धीरे अपनी गाड़ी की ओर बढ़ने लगे .... और उन्हें गर्व के साथ संतोष क्यों न हो क्योंकि आज उनके मार्गदर्शन में एक घायल वन्य प्राणी भालू जो अपने परिवार से सकुशल स्वस्थ्य रूप से जो मिल चुका था,,,,।
 
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