वन्य प्राणियों का जंगल राज या अब पुष्पा राज.... शिकार हुए वन्य प्राणियों के अवयव की तस्करी बढ़ी
अलताफ़ हुसैन
रायपुर (फॉरेस्ट काईम न्यूज़) छ्ग प्रदेश के वन क्षेत्रों में आए दिन बेशकीमती काष्ठ तस्करी का विभाग द्वारा पकड़ना एवं किसी न किसी वन्य प्राणीयों के शिकार होने के समाचार,पत्र पत्रिकाओं के पन्ने एवं सोशल मीडिया के साइट कॉर्नर में सुर्खियां बटोर रहे है इसे देख कर ऐसा ज्ञात होता है कि वनों में वन्य प्राणियों का जंगल राज नही बल्कि चंदन तस्करी पर आधारित ब्लॉक बस्टर फिल्म के नायक पुष्पा राज के जैसा राज यहाँ भी चल रहा है जहाँ पर छग प्रदेश के बेशकीमती साल, सागौन, की जड़ें खोखली होते जा रही है लगातार तेजी से निर्मित होते क्रांकीट के जंगल ने मानों लहलहाती हरियाली लुप्त प्रायः स्थिति में होती जा रही है गगन चुंबी पेड़ पौधों की दैदीपयमान होती प्रकृति आभा को वन क्षेत्रों के चेहरों से मानों बड़ी निर्दयता पूर्वक कुठाराधात कर के वनों की हरीतिमा युक्त चेहरे को नोच-नोच कर उसको बे नकाब कर दिया है जिसकी वजह से वनों का अस्तित्व नग्न अवस्था मे पहुँच गया है वनांचल क्षेत्र का रकबा इतना अधिक सिकुड़ता जा रहा है कि वन्य प्राणी अन्यंत्र पलायन करने विवश हो गए है मानव समाज की लगातार उपस्थित से वन्य प्राणियों के रहवास क्षेत्रों में अतिक्रमण तथा गाडी मोटर वाहन की प्रेशर हॉर्न से चिंघाड़ती चीं चिल्लपो, शोर शराबे की कानफोडू आवाज उनके आमद ओ रफ्त के संसाधनों से वन्य प्राणियों का जीवन दुरूह एवं भयभीत कर चुका है
कंदमूल,दाना चारा पानी की चाह में वे शहर, नगर, गांव,की ओर अन्यंत्र रुख कर जाते है परिणामतः भिन्न भिन्न अस्त्र शास्त्र, बारूद,विधुत, यूरिया खाद इत्यादि व्यवस्थाओं से उनका शिकार हो जाता है परंतु विभाग को उनके शिकार होने के पश्चात जब जानकारी मिलती है तब तक शिकारी उनके अंग, भंग, अवयव को छिन्न भिन्न कर आर्थिक लाभ उठाने के अवसर तलाश करते नज़र आते है तथा विभाग अपनी मौलिक जिम्मेदारी से बे खबर कार्यालय एवं मुख्यालय में मस्त रहते है कथन आशय यह है कि वन्य प्राणियों,एवं वनों के संरक्षण, एवं संवर्धन के उद्देश्य में वर्ष में एक बार हम भले ही पर्यावरण दिवस एवं वन्य प्राणी सुरक्षा सप्ताह,या पखवाड़ा मना कर जन जागरूकता का ढिंढोरा पिटते हुए दंभ भरते है और यह कहते हुए नही थकते कि..ऑल इज वेल..ये कह कर संपूर्ण प्राकृतिक प्रेमियों को संतावना देकर हम अपनी पीठ भले ही थप थपावा लें परंतु क्या सही मायनों में वन विभाग के अधिकारी, कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से पालन कर रहे है ? यह पहलू हमें उस समय बहुत अधिक व्यथित करता है जब घटते वनों के बीच किसी वन्य प्राणियों के मारने शिकार होने अथवा दुर्घटना का समाचार पढ़ने को मिलता है
हाल फिल्हाल की घटना पर एक नज़र डालें तो पखवाडे भर में पिथौरा वन परिक्षेत्र वन ग्राम गिरना मे एक हिरण के शिकार की मौत हुई थी वही बार नयापारा अभ्यारणय क्षेत्र में मृत अवस्था में हिरण प्राप्त हुआ था रायपुर सहित अन्य क्षेत्र में जंगली वराह का शिकार या फिर हाल ही में बागबाहरा के वन ग्राम परिक्षेत्र के कक्ष क्रमांक 179 मे आँवरा डबरी के समीप विधुत तरंगित तार से भालू का शिकार किया जा चुका है यही नही बागबाहरा परिक्षेत्र में छ माह पूर्व बायसन, सहित नर चीता के अलावा दो तीन वर्ष पूर्व प्राकृतिक वन कोठारी के समीप वन क्षेत्र में दंतेल हाथी के करंट से मृत्यु सहित हाल मे बलौदाबाजार वन मंडल अंतर्गत अर्जुनी के समीप मादा गर्भवती गौर, (बायसन) के निर्दयता पूर्वक अंग भंग करना, खरोरा के करीब ग्राम मे जंगली वराह का शिकार सहित अंबिकापुर वन परिक्षेत्र में सड़ी गली अवस्था मे दंतेल हाथी,जैसे अनेक प्रकरण होते रहे है यही नही मानव निर्मित जंगल सफारी जैसे सुरक्षित क्षेत्र में भी शेर के शावक खूबसूरत वन्य प्राणी जेब्रा जैसे अनेकानेक वन्य प्राणियों की मौत हो चुकी है इनमे से कुछ वन्य प्राणी वाहन चलित हादसे के शिकार हो जाते है या फिर कुछ तो मानव समाज के रसस्वादन के लिए शिकार हो जाते है जिनमे से बहुत कुछ शिकारी तो पकड़े भी गए परंतु कितने अपराधियों को शिकार करने की सज़ा मिलती है ? कुछ लचीले रटे रटाये कानूनी धाराओं में उन्हे दो चार दिन में ही जमानत मिल जाती है जबकि बताया यह जाता रहा है कि मानव समाज द्वारा किसी वन्य प्राणियों का शिकार अथवा ह्त्या करना किसी मानव हत्त्या से कम नही है इसके बावजूद लचीले कानूनी न्याय प्रक्रिया के चलते शिकारी बाइज्जत बरी हो जाते है जिसका परिणाम यह होता है कि वे फिर बेखौप होकर शिकार की पूनरावृत्ति करने लगते है यह समस्त व्यवस्था को देख कर क्या ऐसा भान नही होता कि शेड्यूल 1के वन्य प्राणियों की लगातार हो रहे शिकार के पीछे सुनियोजित तरीके से कार्य किया जा रहा है
क्योंकि अब तक जितने भी वन्य प्राणियों का शिकार हुआ है उसमें अधिकतम वन्य प्राणियों के नाखून, दांत, जबड़ा, खाल बाल,इत्यादि को निकाल लिया जाता है कहने को तो वन विभाग अपराधी की गिरफ़्तारी से लेकर सभी कानूनी प्रक्रिया पूरी करती है साथ ही जब्त किये जाने वाले माँस, एवं उसके अन्य अवयव रखे जाते है परंतु वर्षों से अपराधियों से शिकार किए गए वन्य प्राणियों से जब्त किए गए वे बेशकीमती अंग अवयव कहां जाते है जिनमें सिंग से लेकर नाखून, दांत,खाल,तक जब्त किए जाते रहे है ? यह अब आम जन के समक्ष एक बहुत बड़ा कौतूहल भरा सवाल खड़ा करता है ?
क्योंकि बहुत से जागरूक नागरिक बार बार कथित जब्ती के दांत, बाल, खाल, सींग, नाखून, जैसे प्राणियों के अवयव पर सवाल पूछते हुए यह कहते हुए नही थकते कि वर्षों से जब्त वन्य प्राणियों के अवयव का अब तक तो विशाल भंडारण लग गया होगा ? न तो कभी इसकी नीलामी होती है एवं न ही इसको कभी डिस्पोज प्रक्रिया के समाचार पत्र में प्रकाशित किया जाता रहा है ? जबकि इस सवाल पर कुछ विभागीय अधिकारियों से चर्चा करने पर यह बताया गया कि जब तक कानूनी, एवं न्यायलायीन प्रक्रिया न हो तब तक शिकार अवशेष को सुरक्षित रखा जाता है पश्चात उसके जबड़े, दांत,सींग, हड्डी, बाल, खाल, इत्यादि को यह निर्णय कि अवशेषों का क्या करना है, मामले की परिस्थितियों, कानूनी आवश्यकताओं, वैज्ञानिक दृष्टि कोण और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के नियमों पर निर्भर करता है कि इसको नष्टीकरण लकड़ी के ईधन से जला कर या विधुत दाह से या जमीन में दफना कर किस विधि से नष्टिकरण किया जाता है यह नियम एवं आदेशों पर निर्भर करता है परंतु वन विभाग की ऐसी कोई प्रतिक्रिया अब तक स्पष्ट नही हो पाई है,
इस संदर्भ में कुछ आदतन शिकारियों को टटोला गया तो उनका मत है कि रात्रि में बहुत से वन क्षेत्रों में हिरण, कोटरी, नीलगाय, का शिकार आसानी से कर लिया जाता है पश्चात वन्य प्राणी का शिकार कर तुरंत बाल खाल, सींग एवं अन्य अवशेष को बोरे में रख कर या तो बेच दिया जाता है या फिर उसे दफन कर दिया जाता है इसे देखकर ऐसा ज्ञात होता है कि प्रदेश में कोई संगठित गिरोह सक्रिय है जो आवश्यकता अनुसार जिस वन्य प्राणी के अवयव की दरकार होती है उसी वन्य प्राणीयों का शिकार कर उस मांग के अनुसार पूर्ति की जाती है विचारणीय पहलू यह भी है कि वन्य प्राणियों की लगातार शिकार प्रकरण से वन क्षेत्रों के अस्तित्व पर भी सवाल उठने लगा है लगातार वन क्षेत्रों की कटाई,विदोहन, से वन क्षेत्र सिमटाता जा रहा है मूल वन्य प्राणियों के जंगल राज को मानव जैसे पुष्पा राज अनेक काष्ठ माफियाओं की नज़र लग गई है हाल ही दिनों में सिरपुर वविनि परिक्षेत्र में लगभग 65 हरे भरे पेडों की कटाई के जुर्म में 35 लोगों को विभाग ने पकड़ कर नयायालय में प्रस्तुत किया जहाँ सब को जेल भेज दिया गया अब इतने कर्मचारियों के रहने के बावजूद भी इतनी अधिक मात्रा में काष्ठ कैसे निकल गया जानकार सूत्र बताते है कि अनेक वर्षों से वन विकास निगम , एवं वन विभाग रेग्युलर वन कर्मियों की मिलीभगत से सिरपुर महानदी का बहाव बलौदा बाजार, कसडोल, की ओर निकलता है जहाँ प्रति वर्ष कई सौ घन मीटर सागौन की तस्करी हो जाती है तथा इसकी गाज वन कर्मियों पर गिरता है विचारणीय पहलू यह है की वर्षों से पुराने सुशोभित इमारती काष्ठों की तस्करी एवं काष्ठ माफियाओं के कारण बहुत से जंगल अपना अस्तित्व खोते जा रहे है बड़ी मात्र में इसका विदोहन कर अन्य राज्यों में खपाया जा रहा है उड़ीसा, महाराष्ट्र, दिल्ली कलकत्ता तक स्थानीय काष्ठों की खेप फर्जी टी. पी. और चालान के मध्यम से निकली जा रही है इस कृत्य के लिए बड़े काष्ठ माफियाओं से सांठ गांठ कर बहुत से विभागीय पुष्पा राज एक तरफा आर्थिक लाभ उठा रहे है तथा इसकी भनक तक नही लग पाती काष्ठागार से लेकर डिपो तक भंडारण में बड़ी हेराफेरी होती रहती है यहाँ तक मालिक मकबूजा में की गई कटाई में लाखों के सागौन को प्राप्त कर सांठ गांठ मिलीभगत करके राजकीय व्यापार मद के नाम विभाग से अतिरिक्त मद की मांग कर मात्र कुछ हजारों रुपये में उपभोक्ताओं से सागौन एवं इमारती काष्ठ का आंकलन कर लंबी प्रक्रिया के पश्चात चंद रुपये थमा दिया जाता है
जबकि लंबाई, गोलाई, श्रेणि,नग,घन मीटर,एवं दर में सारा गुणा भाग कर इसकी आड़ में देकर लाखों का खेल हो जाता है एवं उपभोगताओ से इमारती काष्ठ कौड़ियों के दाम पर लेकर लाखों की हेरा फेरी कर लिया जाता है अब ऐसे इमारती काष्ठ किस किस सॉ मिलार्स के पास पहुँचता है यह बताने की आवश्यकता नही...मुफ्त का चंदन.. घिस मेरे नंदन ... वाली उक्ति यहाँ चरितार्थ होती नजर आती है अब भले ही चंदन लाल हो या सादा पीला हो..खुशबु तो दोनों से ही निकलती है आज जैसे चंदन मे न ही वो दमक है न ही गमक है वन विभाग में ई कुबेर का हव्वा,ठेकेदारी प्रथा, रिकवरी का भूत से सब कोई दहशत में है परियोजनाओ के नाम पर एक पेड़ मां के नाम, एवं क्षति पूर्ति,बिगड़े वन सुधार वह भी कैंपा मद, औद्योगिक वृक्षारोपण, पर कब तक वन एवं वानिकी कार्य संपन्न किया जाएगा यह सवालो के दायरे में चर्चा का विषय है जबकि विगत दो वर्षों से प्रदेश में कहीं भी वन क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्लांटेशन नही हुआ काष्ठों और वन्य प्राणियों के आसरे पर ही वन विभाग कब तक टिका रहेगा









 
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