रायपुर वन मंडल कर्मियों की मिलीभगत के चलते आरामिल हो रहे गुलज़ार ,,डिपो पड़े बदहाल,,आफसर तस्करों की दोस्ती बनी मिसाल......
अल्ताफ हुसैन की रिपोर्टरायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) छग प्रदेश वन विभाग वनों के संरक्षण,संवर्धन हेतु नाना प्रकार के जतन कर वनों के अस्तित्व को अक्षुण्य बनाए रखने में वनों के विस्तार हेतु अनेक प्रकार के योजनाओ के मध्यम से वास्तविक धरा पर सतत क्रियान्वयन हेतु कटिबद्ध है वनों के लगातार दोहन से बचाने वनों में मॉनिटरिंग कर विभाग के अधिकारी मैदानी कर्मचारियों को सख्त दिशा निर्देश जारी कर प्रदेश वन बल प्रमुख श्री राकेश चतुर्वेदी ने अल्टीमेटम दिया हुआ है कि वनों के विस्तार के साथ साथ प्राकृतिक वातावरण को यथावत रखने तथा अवैध काष्ठों के परिवहन सहित तस्करी के माकूल रोकथाम के लिए प्रदेश भर की आरा मिलों का निरीक्षण कर अवैध काष्ठों के चिरान पर अंकुश लगा कर वन अधिनियम के तहत वैधानिक कार्यवाही की जाए परन्तु देखा यह जा रहा है कि अधिकारियों द्वारा औपचारिक निरीक्षण कर प्रदेश भर में गिनती के ही दो चार आरामिलों में वन अधिनियम के तहत कार्यवाही कर कार्यों की इतिश्री मान ली है वही वन विभाग के अधिकारी कर्मचारियों एवं काष्ठ माफियाओं,तस्करों के हम निवाला हम प्याला,,,और परस्पर लेनदेन के चलते उन्हें ,,,मसौरे भाई बन जाने से अवैध काष्ठों की तस्करी और भरमार परिवहन से अब आरामिल तो गुलज़ार हो गए लेकिन दूसरी ओर अवैध इमारती काष्ठों की लगातार तस्करी से इस पर अंकुश लगाना तो दूर बल्कि प्रदेश के वन विभाग द्वारा लघु मंझोले काष्ठ डिपो,पर ही उनके अस्तित्व पर अब खतरा मंडराते हुए सवाल खड़े होने लग गया है इसका मुख्य सबब यह है कि अब ना ही प्रदेश भर के कथित लघु मंझोले डिपो काष्ठागार में पूर्व की भांति बांस,जलाऊ,चट्टे एवं अन्य इमारती काष्ठों को , वनों में प्रति वर्ष की जाने वाली विभागीय थिनिंग के नाम पर निकलने वाले चट्टे सहित इमारती,जलाऊ काष्ठ इत्यादि कथित डिपो में पहुंच पा रहे है और न ही राष्ट्रीयकृत योजनांतर्गत शहरी क्षेत्रों में मार्ग विस्तारीकरण किए जाने वाले चौड़ीकरण के नाम पर वर्षों से सड़को के किनारे इतिहास की गवाही देते सीना ताने विशाल वृक्ष के पातन पश्चात उसके अवशेष डिपो अर्थात काष्ठागार पहुंच रहे है नतीजा प्रदेश में वर्षो तक वन विभाग का आर्थिक पहिया माने जाने वाले लघु मंझोले काष्ठागार अपनी बदहाली और अस्तित्व पर आंसू बहा रहे है अब न ही ऐसे काष्ठ विहीन काष्ठागारों की कोई पूछ परख रह गई और न ही इसका कोई अस्तित्व शेष रह गया है जबकि एक समय ऐसा भी था कि जब ऐसे लघु मंझोले,काष्ठागारों से बंसोड़ समुदाय सहित अन्य जलाऊ काष्ठ के व्यापारियों के आर्थिक सुदृढ़ता के साथ लकड़ी टाल संचालकों का जीवन यापन होता था परन्तु अब स्थिति यह है कि ऐसे लघु काष्ठ डिपो अब पूरी तरह वीरान हो चुके है केवल नाम मात्र वन कर्मचारी यहां अपना समय व्यतीत कर रहे है अब सवाल यह उठता है कि प्रति वर्ष वन विभाग द्वारा की जाने वाली थिनिंग से निकलने वाले काष्ठ आखिर जाता कहां है ? इसके बारे में बताया जाता है कि इसमे कुछ इमारती काष्ठ से लेकर चट्टे इत्यादि तो बड़े काष्ठागारों में पहुंच जाते है जहां नीलामी के माध्यम से करोड़ों का राजस्व वन विभाग को प्राप्त होता है परन्तु वही वनों से निकलने वाले कई ट्रक जिसकी विभागीय पंजी में कोई संख्या दर्ज नही होती ऐसे इमारती काष्ठ के चट्टे अन्यंत्र परिवहन हो जाते है तथा वन अधिकारियों सहित मैदानी अमले के अतिरिक्त आय का साधन बन जाता है वहीं बड़े काष्ठागारों मे पूर्व सुनियोजित गड़बड़ घोटाला करने के उद्देश्य से काष्ठ व्यापारियों और विभागीय लेखा कर्मचारियों द्वारा सांठगांठ कर नीलाम में क्रय की गई काष्ठों में बहुत बड़ा खेल हो जाता है इस संदर्भ में ज्ञात हुआ है कि काष्ठागारों में नीलाम पश्चात लगाई गई बोली के मुताबिक लाट को क्रय पश्चात व्यापारी द्वारा दस परसेंट अमानत राशि विभाग में जमा की जाती है तथा एक निर्धारित अवधि में लगभग ( डेढ़ माह )नीलाम से क्रय की गई काष्ठों के उठाने का अनुबंध होता है ताकि निश्चित समय अवधि में नीलाम से क्रय किए गए काष्ठ को व्यापारी उठा लेगा यदि व्यापारी द्वारा निर्धारित तिथि समय मे लाट नही उठाता है तो अमानत राशि वन विभाग द्वारा राजसात की जा सकती है परन्तु वन अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत के चलते उक्त अमानत राशि निर्धारित तिथि समय में न मिलने के बाद भी एक बड़ी रकम लेकर पंजी रजिस्टर इत्यादि में छोड़े गए पूर्व तिथि अथवा कॉलम में निर्धारित तिथि समय में राशि मिलना दर्शा दिया जाता है तथा इसके एवज में एक बड़ी राशि व्यापारी से ले कर सैटिंग कर ली जाती है
वही चर्चा यह भी है कि नीलाम किए गए लाट में काष्ठागार कर्मचारीयों द्वारा अधिकारियों के दिशा निर्देश पर नीलाम द्वारा क्रय किए गए और निर्धारित समय तिथि में उठाए जाने वाले लाट में अतिरिक्त रखे गए लाट जो पंजी में दर्ज नही होता ऐसे बेशकीमती इमारती काष्ठों का बड़ा लेनदेन कर काष्ठ परिवहन कर दिया जाता है जिसकी बाहर भनक तक नही लग पाती और इस प्रकार बड़े काष्ठागारों के काष्ठ नीलामी में एक बड़ा खेल हो जाता है पिछली तिथि में गड़बड़,घोटाला वाला यह खेल केवल काष्ठागारों में ही नही होता अपितु कार्यालय द्वारा क्रय किए गए वस्तूओं,भंडारण निर्माण, सामग्रियों का क्रय वाला खेल वन विभाग के कार्यालयीन उपयोग में आने वाले अन्य सामग्रीयों में भी खेला जाता है जिसमे विक्रेता से लेकर ठेकेदार,सप्लायर और अधिकारी लाल हो रहे है,ऐसे गड़बड़ी वाले खेल में विभाग द्वारा डाक द्वारा पत्र व्यवहार करने की बजाए- ब-दस्त-पत्र व्यवहार किया जाता है ऐसे निविदाकार,ठेकेदार,क्रेता, सप्लायर,फर्जी तरीके से कार्यों को अंजाम देते है तथा पतासाजी करने पर ऐसे ठेकेदारों सप्लायर के पता भी ज्ञात नही हो पाता ज्ञात तो यह भी हुआ है कि कुछ विभागीय कर्मचारी अपने परिवार के नाम से भी ऐसा खेल खेलते है इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि वन विभाग का एक बहुत बड़ा धड़ा इस काले गोरख धंधे, गड़बड़ घोटाला भ्रष्टाचार में लिप्त है जिसके चलते कोई भी अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर आंख तरेर नही सकता अर्थात गड़बड़ घोटाला, भ्रष्टाचार के इस हम्माम में सारे के सारे नंगे है रहा अन्य नियोजित मैदानी घोटाला तो अमूमन देखा यह जा रहा है कि प्रदेश भर में अवैध काष्ठ तस्करी परिवहन मामले में लगातार वन कर्मचारियों की संलिप्तता सामने आ रही है जिसके चलते ही लघु मंझोले काष्ठागार,डिपो में काष्ठों का संचय किए जाने में भारी कमी दिख रहा है विभागीय कर्मचारियों द्वारा काष्ठ माफियाओं से सांठगांठ कर वनों के एक बड़े हिस्से के परिपक्व इमारती पेड़,वृक्ष मे बगैर विभागीय,हैमर मार्किंग के कटाई कर अतिरिक्त आय का साधन बना लिया गया है जो छोटे मंझोले काष्ठागार डिपो के खाली होने में यही कारण माना जा रहा है क्योंकि इसका साक्षात उदाहरण यह है कि 14 अगस्त 2020 को आरंग परिवृत के द्वारा ग्राम फरफौद के काष्ठ माफिया अशोक चंद्रकार व अन्य के द्वारा अवैध काष्ठ परिवहन करते हुए दो ट्रेक्टर ट्राली में परिपक्व इमारती काष्ठ के गोले का वन अधिनियम अंतर्गत पंचनामा क्रमांक 1652/19/तथा 1652/20/ के तहत वाहन क्रमांक सी जी 04 डी एम 5985 एवं सी जी 04 एच एल 6149 में अवैध मिश्रित प्रजाति जिनमे करही,आम कहुआ , सेमल,शिशु नीम,,इत्यादि कुल 52 नग परिपक्व गोले जिनका कुल घनत्व 6.417 घन मीटर का पी ओ आर कर वन अधिनियम की 1927 की धारा 52 एवं धारा 41 के अंतर्गत जब्ती नामा बनाया गया था परन्तु उन्हें मात्र दस-दस हजार कुल बीस हजार लेकर राजीनामा कर लिया गया जबकि ग्राम फ़रफौद निवासी अशोक चंद्राकर को वन विभाग द्वारा व्यापार हेतु 100 घन मीटर जलाऊ सूखे टहनी, काष्ठ का एक वर्षीय पंजीयन जारी किया गया था परन्तु उसके द्वारा अपने एक अन्य ड्राइवर साथी के माध्यम से लगभग 6.417 घन मीटर परिपक्व गोले का परिवहन करते पकड़ा गया जब्ती नामा सहित सुपुर्द नामा के संपूर्ण लेख विभाग के निचले स्तर के वन रक्षक कर्मचारीयों द्वारा किया गया है
जबकि वन अधिनियम की धारा 68 एव 26 में स्पष्ट लेख है कि रेंजर अथवा एस डी ओ जिनकी शासकीय सेवाकाल लगभग दस वर्ष पूर्ण हो चुकी हो वही वनोपज काष्ठों की कटाई सहित पंचनामा सुपुर्दनामा तैयार कर प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करता है वही काष्ठों के घनत्व के हिसाब से उसका मूल्यांकन सी एफ़ द्वारा गैर वानिकी दर पर निर्धारित किया जाता है तथा पकड़े जाने पर अथवा अवैध काष्ठ,वनोपज परिवहन कर्ता को निर्धारित दर से दोगुनी राशि कर,महसूल मुआवजा की भरपाई कर राजी नामा होता है वहीं जिस वाहन,ट्रेक्टर से परिवहन किया जा रहा हो ऐसे वाहन को आर टी ओ के द्वारा मूल्यांकन कर उस के वर्तमान मूल्य के हिसाब से राशि वसूली की जाती है वन अधिनियम में यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि काष्ठ अथवा वनोपज का अवैध परिवहन करने वाले अपराधी को छोड़ने,राजीनामा का आधार उस वक्त बनता है जब उसी ग्राम के ग्रामीणों द्वारा यह कथन कि अपराधी निसहाय लाचार,विकलांग, गरीब हो तब उस परिस्थिति में उसे डबल महसूल मुआवजा कर रोपण कर राजीनामा किया जाता है परन्तु रायपुर वन मंडल कार्यालय अतंर्गत आरंग परिवृत के परिक्षेत्राधिकारी अनूपचन्द अवधिया डिप्टी रेंजर लोकनाथ ध्रुव ने सारे नियम कानून को धता बताते हुए अवैध परिवहन कर्ता को मात्र बीस हजार रुपये में राजीनामा कर लिया गया यह बात लोगों के गले नही उतर रही है जबकि सूचना के अधिकार अधिनियम के अतंर्गत प्राप्त संपूर्ण कार्यवाही के प्राप्त दस्तावेजों में यह ज्ञात हो रहा है कि रायपुर उड़नदस्ता के कर्मचारी ही मौका स्थल पर वहां उपस्थित थे बाकी सब अधिकारी केवल तमाशबीन बने थे जो पद में छोटे कर्मचारियों से अपनी कलम फंसाने की बजाए केवल उसे मार्गदर्शन देते रहे ? और लिखित कार्यवाही करवा लिया गया यानी खुद मुद्दई और खुद गवाह भी बन गए,, यहां उल्लेखनीय यह भी है कि पकड़े गए काष्ठ के नाम गोले की लंबाई गोलाई तो लिखी गई परन्तु गैर वानिकी काष्ठों के दर जो सी एफ़ द्वारा जारी किया जाता है उसका कहीं भी उल्लेख नही है जो कर्मचारियों द्वारा की गई कार्यवाही में अनेक सन्देह पैदा करता है ? वही वाहन मूल्य जो सूचना अधिकार में प्राप्त किए गए है उसमें ट्रेक्टर ट्राली का वर्तमान मूल्य सात लाख रुपये आंकी गई है जिसे भी बगैर मुआवजा के छोड़ दिया गया जबकि दो ट्रेक्टर ट्राली में 6.417 घन मीटर के परिपक्व ताजे काष्ठ जिसे गवाह और सुपुर्द नामा में सूखे टहनी जलाऊ लकड़ी दर्शाना एक सोची समझी रणनीति के तहत कार्यवाही किया जाना माना जा रहा है और राजीनामा कर छोड़ने के पीछे बड़े लेनदेन की बात से भी इंकार नही किया जा रहा है वन अधिनियम में यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ पेड़ चाहे वह किसी भी प्रजाति का हो का यदि कोई पातन करता है तो पूर्व की भांति एक हजार रुपये जुर्माना से बढ़ा कर रुपये दस हजार रुपये जुर्माना प्रावधानित किया गया है परन्तु यहां तो अनेक इमारती,औषधीय प्रजाति के काटे गए गोले थे फिर किस निशक्तता,लाचारी मजबूरी,गरीबी,देखकर विभागीय अधिकारियों ने आरोपियों पर मात्र बीस हजार करारोपण कर छोड़ दिया गया ?
जो अब भी अनेक सवाल खड़ा कर रहा है ? जबकि आरोपी स्वयं दो ट्रेक्टर ट्राली का स्वामी है तथा क्षेत्र भर के आरमिलों में अवैध रूप से काष्ठ सप्लाय करता है जिसे विभागीय अधिकारियों,कर्मचारियों के प्रश्रय देते हुए मात्र बीस हजार रुपये देकर राजीनामा कर लिया गया ? यदि विभागीय अधिकारी वन अधिनियम के अनुकूल कार्यवाही करते तो विभागीय कार्यवाही के साथ साथ माननीय सक्षम जिला न्यायालय के समक्ष संपूर्ण प्रकरण प्रस्तुत किया जा सकता था तथा वर्षों से वनों का दोहन शोषण करने वाले ऐसे दक्ष,पारंगत,पेशेवर, काष्ठ माफियाओं के विरुद्ध नकेल कसते हुए कठोर कार्यवाही की जा सकती थी मगर रायपुर वन मंडल के परिक्षेत्राधिकारी अनूप चंद अवधिया डिप्टी रेंजर लोकनाथ ध्रुव उड़न दस्ता के कर्मचारियों द्वारा विभागीय नियमो को धता बताते हुए केवल आर्थिक स्वहित साधने के उद्देश्य से काष्ठ माफियाओं पर कृपादृष्टि बनाए रखते हुए उन्हें लचीले वन अधिनियम में उलझा कर एक बड़ी राशि लेकर एक प्रकार से उन्हें संरक्षण प्रदान किया है अब उसका ही परिणाम है कि नवापारा परिवृत से लेकर,नवा रायपुर, आरंग परिवृत से लेकर महासमुंद बार नवापारा,सिरपुर,बलौदा बाजार तक कथित काष्ठ माफियाओं ने अपना एक छत्र जंगल राज स्थापित कर लिया है तथा खुल कर वनोपज,वन काष्ठों का दोहन,शोषण कर रहे है और वन अधिकारी वन के मैदानी कर्मचारीअंध मूक बधिर की भांति अपना आंख मुंह कान सब बंद किए हुए है जब यह समाचार लिखा जा रहा था तभी सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि विधान सभा धनेली ग्राम के समक्ष एक ट्रैक्टर ट्राली में काष्ठ परिवहन करते पाटले नामक विभागीय कर्मचारी सहित टीम ने रायपुर शहर जो दो सेक्टर में विभाजित है रायपुर रेंजर मिर्जा फिरोज बेग के नेतृत्व में पकड़ा तथा अवैध काष्ठ परिवहन कर्ता से बड़ी राशि लेकर छोड़ने की मांग की बात सामने आई है जो इनके मिली भगत वाले रिश्तों में कडुवाहट आने का आभास कराता है जबकि इस संदर्भ में सूत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि काष्ठ तस्करों द्वारा परस्पर डेढ़ से दो लाख की एक बड़ी राशि संग्रहण कर आरंग परिवृत नवा रायपुर डिवीजन,मंदिर हसौद के कर्मचारियों को पहुंचाया गया था उसके बावजूद विधान सभा क्षेत्र में पकड़े गए अवैध परिवहन करते हुए रायपुर वन कर्मियों द्वारा बड़ी राशि की मांग से त्रस्त तस्करों ने क्षेत्रीय विधायक से भी राजनीतिक एप्रोच लगाया परंतु मामला नही सुलझा,,,जिसे लेकर काष्ठ माफिया विभाग के कर्मचारियों को ही अब डाकू की उपमा दे रहे है,जो अफसर ..तस्कर..मसौरे भाई की उक्ति को सार्थक करता है बहरहाल कुल मिलाकर यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि आज नही तो कल मामला लेनदेन से ही सुलटेगा तथा विभागीय कार्यवाही का कुछ पता भी नही होगा यानी बगैर अपराध पंजीबद्ध किए कर्मचारी बाला बाला अपनी जेब गरम कर लेंगे और प्रारंभ होगा काष्ठ तस्करी का एक नया अध्याय जिसमे यही विभाग के कर्मचारी भविष्य में अवैध कटाई तस्करी और उसके परिवहन को संरक्षण देने से भी गुरेज नही करेंगे जो विभाग के राजस्व को नुकसान पहुंचाएगा ही साथ वनों का दोहन भी अनवरत जारी रहेगा ?अब देखना होगा छग वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी अवैध कटाई और परिवहन के साथ रायपुर वन मण्डल के रेंजर चौकड़ियों के द्वारा संरक्षण में फल फूल रहे अवैध तस्करी पर कहां तक अंकुश लगाने में कामयाब होते है या फिर ये सिलसिला यूं ही अनवरत चलता रहेगा ?




 


























