वन विकास निगम का हिटलरी फरमान.. पानाबरस मंडल कार्यालय से कुर्सियों को वापस मुख्यालय मंगाया ... कार्यालय के पचास फीसदी कर्मचारी क्षतिग्रगस्त कुर्सियों में कर रहे है काम
अलताफ हुसैन
रायपुर (फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़)कुर्सी पाने या उसको गंवाने का दर्द यदि कोई बता सकता है वह या तो कोई राजनीतिज्ञ इसका दर्द बखान कर सकता है या फिर कोई विभाग का अधिकारी,कर्मचारी ही इसकी पीड़ा बता सकता है वह भी तब जब उसके नीचे से कुर्सी खिसक गई हो चौकिए ! नही, यहां किसी अधिकारी,कर्मचारी के द्वारा भ्रष्टाचार गड़बड़,घोटाला अथवा कार्यालयीन विरोधी कार्यों के लिए किसी की कुर्सी नही गई बल्कि पूर्व में वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा किए गए
गड़बड़,घोटाला,भ्रष्टाचार करके क्रय की गई कुर्सी के इधर से उधर कर वापस मुख्यालय में मंगवाने की वजह से कई अधिकारी कर्मचारी की कुर्सी चली गई अब स्थिति यह हो गई कि सारे कर्मचारी इस बात को लेकर चिंतित है कि कार्यालयीन कार्यों का संपादन किस कुर्सी में बैठ कर किया जाएगा यह उनके समक्ष सवाल खड़ा है फिलहाल, विकल्प के तौर पर वर्षों से कार्यालय में धूल खाती,टूटी फूटी पुरानी पड़ी कुर्सियों कुछ की ही मरम्मत करवा कर कार्य किया जा रहा है किस्सा कुर्सी का तो बहुत सुने गए है परन्तु ऐसा किस्सा जिसमे अधिकारियों ,कर्मचारियों के नीचे से कुर्सी जाने का प्रकरण सुना ही नही गया होगा मामला छग राज्य वन विकास निगम पानाबरस परियोजना मण्डल कार्यालय राजनांदगांव का है जहाँ नव निर्मित नवीन कार्यालय भवन में विगत वर्ष छग वन विकास निगम मुख्यालय नवा रायपुर अटल नगर से लगभग पन्द्रह से बीस रिवाल्विंग कुर्सियां भेजी गई थी जिसका उपयोग पानाबरस कर्मचारीगण कर रहे थे बताया जाता है कि जब कुर्सियां राजनांदगांव परियोजना मण्डल कार्यालय भेजी गई थी तब न ही उसका लिखित में कोई चालान भेजा गया था और न ही कुर्सियां टेबल की संख्या दर्ज कर कोई लिखित प्रमाणक कॉपी प्रदान की गई थी केवल मौखिक रूप से ही टेबल कुर्सी यहां भेज दिया गया था जबकि इसके पूर्व यह भी ज्ञात हुआ था कि मुख्यालय नवा रायपुर से राजनांदगांव पाना बरस परियोजना मंडल कार्यालय में कुर्सियां भेजने के पूर्व वन विकास निगम के मुख्यालय में साल भर तक धूल खाती पड़ी हुई थी न ही इसका कोई मूलरूप से सदुपयोग हुआ था और न ही किसी अन्य कार्यों में इसकी उपयोगिता सिद्ध हुई थी अब कर्मचारियों के मस्तिष्क में यह सवाल कौंध रहा है कि जब कुर्सियों की मुख्यालय कार्यालय में कोई महत्वता अथवा उपयोगिता ही नही थी तो फिर वन विकास निगम मुख्यालय द्वारा इतनी बड़ी संख्या में अतिरिक्त कुर्सियों का क्रय क्यों किया गया ?
कुर्सी क्रय के मामले में बहुत बड़ा गडवद झाला बताया गया है गौरतलब है कि वर्ष 2017-2018 में जब छग वन विकास निगम मुख्यालय कार्यालय नवा रायपुर अटल नगर में हस्तांतरित हुआ था तब तत्कालिक अध्यक्ष श्री निवासराव मद्दी एवं सेवानिवृत्त हो चुके एम डी. राजेश गोवर्धन द्वारा कार्यालयीन उपयोग हेतु बड़ी संख्या मे नए फर्नीचर जिनमे तथा कथित कुर्सियां भी शामिल है का क्रय किया गया था जिसे फॉरेस्ट क्राइम समाचार पत्र द्वारा प्रमुखता से समाचार का प्रकाशन कर यह आशंका व्यक्त किया गया था कि वन विकास निगम में लाखों के फर्नीचर खरीदी में बड़ेपैमाने पर गड़बड़ घोटाला को अंजाम दिया गया है परन्तु तात्कालिक समय इस संदर्भ में कोई भी कार्यवाही नही की गई क्योंकि तात्कालिक भाजपा काल मे भ्रष्टाचार,गड़बड़ घोटाला,अपने चरम में था तथा नीचे से ऊपर तक वरिष्ठ अधिकारीयों से लेकर अफसर भ्रष्ट कार्यों में संलिप्त थे यहां तक वन विकास निगम में प्रमुख वित्त लेखाधिकारी (.सी.एस.) कंपनी सिकरेट्री की नियुक्ति भी नही की गई थी जिसके लिए मात्र औपचारिकता निभाते हुए वन विकास निगम लिमिटेड ने सीधी भर्ती हेतु छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मंडल रायपुर के द्वारा कंपनी सेक्रेटरी (CS) के पद पर प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से सीधी भर्ती करने हेतु 2019 में विज्ञापन जारी किया गया था परन्तु संभवतः यह भर्ती भी अब तक नही हो पाई होगी इसके चलते ही समस्त वित्तीय पॉवर एम डी.के अधिकार में था जिसका मनमाना वित्तीय लाभ एम. डी.तथा वरिष्ठ वित्तीय लेखापाल बी आर जैन जैसे वित्त अधिकारियों की मिली भगत के चलते राजस्व का खुलकर दोहन किया जाता रहा है तथा इसका भरपूर लाभ तात्कालिक छग राज्य वन विकास निगम अध्यक्ष श्री निवासराव मद्दी जैसे नेता भी उठाते रहे यदि इस संदर्भ में आज भी सरकारी जांच एजेंसी से जांच कराई जाती है तो एक बहुत बड़े आर्थिक,गड़बड़ी,भ्रष्टाचार,और घोटाले, का भंडाफोड़ हो सकता है बताते चले कि छग वन विकास निगम आर्थिज रूप से स्व पोषित संस्था है जो एक कंपनी की भांति स्वयं उत्पाद कर लाभ अर्जित कर निगम का संचालन करती है तथा इसका लाभांश वार्षिकी राशि राज्य सरकार को प्रदान करती है परन्तु विगत कुछ वर्षों से राज्य सरकार को दिए जाने वाली लाभांश राशि का ग्राफ भी निरन्तर गिरता जा रहा है जिसकी वजह वन विकास निगम में विगत कुछ वर्षों हो रहे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार,गड़बड़ घोटाले सहित अनियमितताओं को माना जा रहा है जबकि निगम में सीएस (कंपनी सिक्रेटरी) वित्तीय अधिकारी की नियुक्ति को लेकर अनेको बार फॉरेस्ट क्राइम द्वारा समाचार के माध्यम से आवाज़ उठाई गई परन्तु एम डी राजेश गोवर्धन द्वारा केवल औपचारिकता पूर्ण प्रक्रिया अपनाते हुए वन विकास निगम के वेब साइट में विज्ञापन जारी कर कार्यों की इतिश्री मान ली गई तथा संभवतः अब तक सी.एस. (कंपनी सिकरेट्री) की नियुक्ति छग वन विकास निगम में नही की गई जो अब भी वन विकास निगम के वित्तीय व्यवस्था के मामले में सन्देह उत्पन्न कर रहा है क्योंकि लगातार भ्रष्टाचार गड़बड़ घोटालों के चलते अनेक अधिकारी वैतनिक आय से कई गुना अधिक आय अर्जित कर चुके है जिसमे वरिष्ठ लेखापाल के रूप में भी भोजराज जैन का नाम प्रमुखता से आता है इनके साथ आर जी एम के अतिरिक्त प्रभार के रूप में डॉ सोमदास मैडम जिनके पास दोहरा तिहरा प्रभार था उपरोक्त तथा कथित अधिकारियों के सन्दर्भ में यह चर्चा आम है कि इन्होंने अनेक स्थलों में चल अचल संपति अपने रिश्तेदारों के नाम पर अर्जित कर रखी है एम डी राजेश गोवर्धन ने भी अनेक चल अचल संपति अर्जित कर रखी है जो इनके भ्रष्ट कार्यशैली के चलते इनके अतिरिक्त आय को दर्शाता है जबकि सोमदास मैडम के द्वारा अभी छुट्टी में जाना बताया जा रहा है परन्तु यह भी चर्चा जोरों पर है कि सोमदास मैडम अपनी पदस्थी अन्य स्थान में न करवा ले क्योंकि तिकड़ी के रूप में इन लोगों ने निगम के आर्थिक ढांचे को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है तथा सब धीरे धीरे भ्रष्टाचार कर के वन विकास निगम को भ्रष्टाचार के काजल की काली कोठरी बनाकर यहां से दूर भागना चाह रहे है यही कारण है कि अकूत संपति अर्जित कर सब निगम से नौ दो ग्यारह हो गए है अब यहां जो नए पदस्थ एम डी और अन्य कर्मचारी आ रहे है वे केवल इनके बड़े बड़े गड्ढे ही भरते रहेंगे वही ज्ञात तो यह भी हुआ है कि वरिष्ठ लेखापाल, भोजराज जैन अब भी बहुत से पिछले बिल बाउचर में हस्ताक्षर लेने पूर्व एम डी राजेश गोवर्धन के नए भवन में आते है जबकि इस दरमियान दो एम डी की बिदाई हो चुकी है फिर भी वित्तीय बिल पत्रों में हस्ताक्षर अब भी सेवानिवृत्त आई एफ़ एस अधिकारी राजेश गोवर्धन से करवाने का खेल कुछ समझ मे नही आ रहा है जो अनेक सन्देह को उत्पन्न करता है बहरहाल,फर्नीचर क्रय के बाद से कभी मुख्यालय में तो कभी राजनांदगांव परियोजना मंडल में धक्का खाती कुर्सियों को अंततः मुख्यालय मौखिक आदेश में मंगवाया गया जिससे कार्यालय कर्मचारी हतप्रभ के साथ आश्चर्य चकित भी है कि सहसा स्टाफ के बैठने की कुर्सी वापस मुख्यालय ने क्यो मंगवाया ? समस्त कुर्सी बड़ा टेबल शनिवार दिनांक पांच नवंबर 2020 को दोपहर पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय के ट्रक से भेजी गई लगभग पन्द्रह कुर्सियां तथा एक बड़ा कॉन्फ्रेंस हॉल हेतु भारी भरकम टेबल दिनांक 06 रविवार को सुबह मुख्यालय में उतारा गया चर्चा इस बात को लेकर भी हो रही है कि जब कुर्सी मुख्यालय में ही रखना था तो लाने ले जाने हेतु लोडिंग अनलोडिंग आवागमन हेतु ट्रक उसके ईंधन में हजारों रुपये फूंकने की क्या आवश्यकता थी ? इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि कुर्सी फर्नीचर खरीदी में बड़ा गड़बड़ झाला हुआ है तथा उसके आवागमन में भी भ्रष्टाचार करने की संभावना तलाशी जा रही है अब पानाबरस कार्यालय के कर्मचारी इस बात को लेकर चिंतित है कि वे कार्यालयीन कार्यों का संपादन किस पर बैठकर और कैसे करेंगे ? वहीं यह भी ज्ञात हुआ है कि मुख्यालय भेजने के पूर्व पानाबरस कार्यालय में डेढ़ दर्जन से ऊपर कुर्सियां रखी हुई थी मगर अनेक सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारी एक एक कुर्सी ले जाकर अपने घर की शोभा बढ़ा रहे है वही आशंका यह भी व्यक्त की जा रही है कि लाखों रुपये में क्रय की गई शेष कुर्सी भी धीरे धीरे कहीं किसी बड़े अधिकारी के घर की शोभा न बन जाए वही करोड़ों रुपये का राजस्व देने वाले पानाबरस परियोजना मंडल कार्यालय राजनांदगांव के पचास फीसदी कर्मचारी फिलहाल पूर्व की टूटी फूटी क्षतिग्रस्त कुर्सियों को रिपेयर करवाकर काम चला रहे है अब देखना होगा वन विकास निगम प्रबंधन इस ओर क्या कदम उठाता है या कर्मचारियों को टूटी फूटी कुर्सी में ही अपना कार्यालयीन कार्य संपादित करना पड़ेगा ?



 
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