हां ...मैं बार नवापारा अभ्यारण्य हूं.....
अलताफ हुसैन
रायपुर (छत्तीसगढ़ वनोदय) हां... मैं बार नवापारा अभ्यारण्य हूँ,,,क्योंकि मैं युगों यूगों से यहां चट्टान की भांति खड़ा हूँ ,,,मेरा अस्तित्व का इतिहास कब का है यह कोई नही बता सकता पर.. हां.. वर्ष 1947 से 1948 में पहली बार मेरे अंचल में अंग्रेजों ने इतिहासिक भवन बनवाया था जो आज भी 75 वर्षों के अविस्मरणीय अध्याय का पन्ना बना हुआ है और साथ ही वर्तमान में मेरे नए स्वरूप का साक्षी भी बना हुआ है ,,, ज़ाहिर है कि आज़ादी के पूर्व एवं पश्चात मेरे प्राकृतिक सौंदर्यता ने गोरे विदेशियों को मेरी ओर आकर्षित किया था,, मेरे विशाल सघन वन में स्वतंत्र विचरण करते,खूंखार शेर भालू,चिता,गौर,हिरन, बायसन, वन भैंस,और इन जैसे और भी अनेक जलचर,नभचर, सरिसृप,वन्य प्राणियों ने जो मेरे परिवार की ही भांति थे वन्य प्राणियों की उपस्थिति और स्वतंत्र,अभय होकर अरण्य में विचरण करने की वजह से भी विदेशी अफसरों को मेरी ओर पर्यटन हेतु आकर्षित किया था मेरी प्राकृतिक सौंदर्य को बहुत करीब से देखने समझने और यहां के शांत स्वच्छ वातावरण को महसूस करने के उद्देश्य से ही उन्होंने मेरे अंचल के मध्य भूभाग में आज़ादी के पूर्व ही अपने सुखद पल व्यतित करने हेतु विश्राम भवन बनाए थे तथा कई दिनों तक यहां रहकर शिकार अथवा प्राकृतिक सौंदर्यता को करीब से जानने,,पहचानने का प्रयास करते थे स्वतंत्रता संग्राम के लिए केंद्र बिंदु रहे वर्तमान राजधानी रायपुर से मात्र 100 किलोमीटर की दूरी में स्थित बार नवापारा अभ्यारण्य तक पहुंचना बड़ा दुरूह था उस वक्त प्रचलित आवागमन हेतु उपलब्ध साधन बग्घी,,घोड़े,अथवा चार पहिया वाहन से तय कर विदेशी पूरे लाव लश्कर के साथ यहां पहुंचते क्योंकि सघन प्राकृतिक वन क्षेत्र होने तथा खूंखार वन जीवों के रहवास के कारण कोई मेरे क्षेत्र में दाखिल अथवा प्रवेश करने का साहस भी नही कर सकता था जब तक वह पूरे सुरक्षा बंदोबस्त चाक चौबंद और रसद के साथ न चले इसके लिए बड़ी संख्या में कुछ भारतीय मूल के जनजाति आदिवासी नौकर चाकर मय अस्त्र शस्त्र के चलते ताकि उनके साथ स्वयं के जानमाल की सुरक्षा कर सके तत्कालीन समय मेरे अंचल में मानव दखल भी न के बराबर था इस संदर्भ में ज्ञात हुआ है कि वर्ष 1940 से 43 के मध्य अंग्रेज ऑफिसर के चाकरी हेतु लाए गए मूल,वनवासी, आदिवासियों को यहां बसाया गया इसकी वजह वन अफसरों को वन में कार्य हेतु कर्मियों की आवश्यकता पड़ती थी जिसकी पूर्ति हेतु बार नवापारा क्षेत्र में मुट्ठी भर आदिवासी,वनवासी,गोंड, बिंझावर,कंवर,जनजाति के लोगों को बसाया गया जो यहां के मूल निवासी थे मेरे इतिहास के पन्ने पलटने पर तथा वन विभाग के अंकित दस्तावेजों को खंगालने से यह भी ज्ञात हुआ कि मनीराम नामक वन कर्मी द्वारा अंग्रेज अफसरों द्वारा कराए जाने वाले सागौन प्लांटेशन को देख कर उसके द्वारा मेरे बार क्षेत्र अंचल में वृह्द भूभाग में सागौन प्लांटेशन करवाया था जो आज भी क्षेत्र में मजूद है एवं उसे मनीराम प्लांटेंशन के रूप में उसके ही नाम पर जाना जाता है यही नही मेरे मध्यांचल में बसाए गए ग्रामीण वनों से सन्दर्भित वानिकी कार्यों सहित स्थानीय तौर पर काश्तकारी, कर अपना जीवन निर्वाहन करते थे वे ही मेरे प्राकृतिक सौंदर्यता एवं वन क्षेत्र के धरोहर कर्ता और मूल रक्षक भी थे मेरे सुरक्षा प्रहरी भी थे उन्हें मैं फल,फूल,के अलावा प्राकृतिक जड़ी,बूटी, और बहुत से वनोपज प्रदान करता था जिसे वे ग्राम बाजारों हाट में विक्रय कर अतिरिक्त आय का स्रोत बनाए हुए थे मगर आज़ादी पश्चात पूर्ण रूपेण वन से संबंधित विभाग अस्तित्व में आया और यहां अंग्रेज अफसरों के साथ भारतीय अधिकारियों का आवागमन बढ़ गया मेरे सुरक्षा और व्यवस्था के नए नए जतन, किए जाने लगे जब मैं अविभाजित मध्य प्रदेश राज्य के अधीन था तब ही मुझे सन 1973-से 76 के मध्य वन विकास निगम के हवाले किया गया था जहां मेरे सोंधी मिट्टी की खुशबू और स्वच्छ वातावरण जिसमे साल और सागौन जैसी बेशकीमती इमारती काष्ठों वाले वृक्षों की प्रचुरता थी उसका दोहन कर वन विकास निगम उसका व्यवसायिक उपयोग करने लगा पश्चात मेरे अंचल में निवासरत वन्यप्राणी परिवार का शिकार कुछ ज्यादा बड़ा
तब मेरी सुध पूर्ववर्ती मध्य प्रदेश के अधीन वन विभाग ने लेते हुए वर्ष 1976 मे इसे आरक्षित करते हुए मुझे संरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर दिया पश्चात धीरे धीरे मुझे अभ्यारण्य के रूप में विकसित किया गया मेरे अंचल में बसे ग्राम बार और नवापारा को मिला कर मेरा नाम बार नवापारा अभ्यारण्य के रूप में मेरी पहचान विकसित की गई आज भी छग राज्य वन विकास निगम में मेरा एक बहुत बड़ा भूभाग उनके अधीन है जिसमे 1974-76 में कराए गए सागौन वृक्षा रोपण जो छग वन विकास निगम की आर्थिक रीढ़ की हड्डी बनी हुई है मेरे अंचल मे उनका लगभग 121 कंपार्टमेंट है जिसका कुल क्षेत्र फल 352.471 हेक्टेयर में है जिसमे सागौन बांस भिर्रा छग वन विकास निगम के प्रमुख आय का स्त्रोत बना हुआ है जिसका वार्षिकी विरलन कर इनके सेवारत कर्मियों के समूचे परिवार का पालन पोषण होता है बदले में वन विकास निगम राज्य सरकार को भी लाभांश राशि देती है वर्तमान में मैं बलौदाबाजार वन मंडल के अंतर्गत आरक्षित सामान्य वन क्षेत्र 244.66.वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ हूं जिसे सहेजा गया है शेष छग राज्य वन विकास निगम के हिस्से में चला गया इस तरह मेरे विशाल भूभाग को कागजी दस्तावेजो में दो हिस्सों में विभाजित कर दिया गया फिर भी मेरे अंचल मे संरक्षित और अभय होकर विचरण करते वन्य प्राणियों के लिए अभ्यारण्य उनके मूल रहवास के रूप बना हुआ है और वे सरहदों की परवाह किए बगैर निर्भय होकर बिना बंदिश के विचरण करते रहते है कभी मेरे गगन चुंबी वृक्षों की छांव में जो मेरे श्रृंगार है उसमें पीढ़ी दर पीढ़ी स्वछंद विचरण करने वाले वन्य प्राणी परिवार आज भी मुक्त वातावरण में दूर दूर तक विचरण कर अठखेलिया करते दृष्टिगोचर हो रहे है
*प्रकृति सौंदर्य*
मेरे विशाल सौंदर्य का राज़ मेरे इर्दगिर्द ऊंचे ऊंचे पर्वत माला है जो मेरी भुजाएं है मैं स्वयं ऊंचे नीचे असमतलीय भूभाग में रचा बसा हूँ मेरी सौंदर्यता ऊंचे ऊंचे पेड़ पौधों जिनमे उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती के बांस,सागौन,और साल, सहित महुआ,सेमल,चार,तेंदू,बेर,सेमल जैसे पेड़ों की प्रचुरता है जिनमे वर्ष मे एक बार पतझड़ की स्थिति अवश्य बनती है
फिर भी दो छोर में बालमदेही महानदी और जोंक नदी प्रवाहित है जिस की वजह से मेरे अंचल में नमी बराबर बनी रहती है मेरे संपूर्ण बार अभ्यारण्य क्षेत्र बारह मासी सामान्य तापमान विसर्जित करता रहता है वही सामान्य तापमान की एक वजह बालम देही नदी जो पश्चिम की ओर से बहती है वही जोंक नदी उत्तर पूर्वी नदी से प्रवाहित है जिसका जल अपना मार्ग तय करते हुए छोटे बड़े पोखर एवं स्त्रोत के माध्यम से चारो ओर क्षेत्र में नमी और पानी का रिसाव अनवरत करता रहता है जो हमेशा अभ्यारण्य क्षेत्र में नमी बनाए रखने के साथ ही वन्य प्राणियों की प्यास शांत करता है मध्य क्षेत्र में होने के कारण भीषण ग्रीष्म ऋतु की उष्णता से गड्ढे सुख जाते है जिसके लिए वन विभाग द्वारा वर्षों पूर्व मेरे अंचल के अनेक वन क्षेत्र स्थलों पर तालाब निर्माण करवाया गया था जिससे वन्य प्राणियों के प्यास की समस्या लगभग समाप्त हो जाती है विभाग द्वारा बहुत सी योजनाओं पर भी कार्य किया हुआ है जिनमे मुख्यतः सुगम आवागमन हेतु कच्ची मुरुमी सड़क,जो वर्ष 2005 से-10 के मध्य में कराए गए थे,वर्ष 2012-13 में पहली बार बढ़ते पर्यटकों की संख्या को ध्यान में रखकर बारह कक्ष निर्माण किया गया था जो तात्कालिक रेंजर व्ही. एन. मुखर्जी,एवं जे जे.आचार्या जैसे कर्तव्य निष्ठ अधिकारियों के माध्यम से कराए गए थे जिसमें शयनकक्ष के अलावा समस्त सुविधाएं उपलब्ध कराई गई थी इसके अलावा पुल,पुलिया, रपटा,फायर वॉच टॉवर भी उसी काल की देन है वन्य प्राणियों की सुरक्षा और दावानाल रोकने फायर वॉच टॉवर निर्माण किए गए थे ताकि ग्रीष्म ऋतु में वनों में लगने वाली आग को त्वरित रोका जा सके और वन,एवं वन्य प्राणियों की आग से होने वाली जान माल की क्षति को बचाया जा सके
*राज्य निर्माण पश्चात अभ्यारण्य पर्यटन हेतु बार का द्वार खुला*
काफी वर्षों तक आरक्षित वन क्षेत्र होने की वजह से मेरे अंचल में कोई खास प्रकार के निर्माण नही किए गए जैसे ही वर्ष 2001 पश्चात छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया तब से ही मेरी व्यवस्था रखरखाव एवं सुरक्षा हेतु विशेष योजनाएं बनती गई सर्व प्रथम पगडंडी रूपी मार्ग को व्यवस्थित करते हुए ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों ने कच्चे सड़क मार्ग का निर्माण किया जिस पर आज भी स्थानीय ग्रामीण एवं पर्यटक आवागमन करते है
तत्कालीन समय वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए ऐसे संवेदनशील स्थलों को कांटेदार तारों से फेंसिंग की गई थी जहां वन्य प्राणी स्वतंत्र, स्वच्छंद होकर एक स्थान से दूसरे स्थान में सहजता से पहुंच जाते थे और एक प्रकार से उनकी सुरक्षा भी हो जाती थी मगर वर्षो पूर्व कराए गए कंटीले तारो की फेंसिंग अब जीर्णशीर्ण अवस्था मे पहुंच चुका है जिससे पर्यटकों एवं वन्य प्राणियों के लिए जान का खतरा का सबब बन सकता है क्योंकि ऐसे भी बहुत से अति संवेदनशील क्षेत्र है जहां भालू चीता, जैसे वन्य प्राणियों का एक छोर से दूसरे छोर आवागमन अनवरत बना रहता है गाड़ियों के शोर शराबे, परिवर्तित, ऋतु एवं विपरीत वातावरण के चलते वन्य प्राणियों की मानसिक स्थिति भी बदलती रहती है वे कभी भी आक्रोशित हो कर हमला कर सकते है अतएव ऐसे वन स्थलों पर फैंसिंग करने की अति आवश्यकता है वही मेरा क्षेत्र असमतलीय भूभाग मे होने की वजह से कई स्थलों में ढालान की स्थिति निर्मित होती है जिस पर अनवरत जल प्रवाहित होता था उस पर अस्थायी सड़क,रपटा,अथवा मार्ग निर्मित किया गया था रेतीला क्षेत्र होने की वजह से वर्तमान परिवेश में वे इतने गहरे गड्ढे नुमा स्थिति में पहुंच चुके है कि रेतीले गड्ढे होने के कारण गाड़ी अथवा मोटर सायकिल के दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है मैं नही चाहता कि मेरे धरती रूपी काया पर कोई चोटिल अथवा घायल हो इससे मेरी व्यवस्था पर सवाल उठता है उसके भी सुधार कर खोलदार, पुल,रपटा अथवा निर्माण की आवश्यकता महसूस की जा रही है ताकि प्रवाहित जल स्रोत भी अनवरत जारी रहे एवं आवागमन भी सुगम हो सके ग्रीष्म ऋतु में सर्वाधिक तापमान की तपिश होने एवं जल अल्पता की वजह से मेरे गोद मे कई स्थलों पर पोखर,ताल,तालाब निर्माण किए गए थे ताकि वन्य प्राणियों को यत्रतत्र पानी के लिए न भटकना पड़े इसके लिए यदि ग्रीष्म ऋतु में जल अल्पता होती है तब उसके भराव के लिए बोर अथवा ट्रेक्टर के माध्यम से आपूर्ति की जानी चाहिए
वही मेरा क्षेत्र अति उष्ण कटिबद्ध रेखा में आने के कारण ग्रीष्म ऋतु मे मेरी हरीतिमा युक्त शरीर पर यहां वहां बिखरे गिरे पतझड़ के सूखे पत्तों में आग लगने से मेरे शरीर के झुलसने की संभावना अधिक रहती है ऐसी परिस्थितियों से निपटने विभाग द्वारा पूर्व में फायर वॉच निर्माण किए गए थे जिसमे वन चौकीदारों की नियुक्ति होनी चाहिए ताकि उनकी सुरक्षा एवं चाक चौबंद सुरक्षा के बीच मेरे प्राकतिक स्वरूप की हरीतिमा में निखार बनी रहे
*बार स्थित पर्यटक ग्राम ने लाई पर्यंटन में क्रांतिकारी बदलाव*
मेरे बार नवापारा अभ्यारण्य का सर्वाधिक आकर्षक क्षेत्र बार स्थित पर्यटक ग्राम को माना जाता है जहां बारह कक्षों की शुरुआत धीरे धीरे 34-से 36 कमरों के ग्राम के रूप में अवश्य परिवर्तित हुआ है यहां क्षेत्र में पहुंचते ही पर्यटकों का मन आल्हादित हो जाता है और मेरे हरियाली युक्त वातावरण और वन्यप्राणियों के दर्शन मात्र कल्पना से उनके रोमांच की स्थिति निर्मित हो मन प्रफुल्लित होकर पर्यटकों का दिल बल्लियों की तरह उछलता है यहां उनके रहने ठहरने और भोजन की पूर्ण व्यवस्था सृजन किया गया है जिसकी फीस ही 250- रुपये से लेकर 800 रुपये तक डोरमेट्री रूम किराए में सुविधा अनुसार उपलब्ध कराए जाते है यहां रिसेप्शन कक्ष के अलावा म्यूज़ियम भी है जहां वन्य प्राणियों के संदर्भ में पूर्ण ज्ञान लिया जा सकता है यहां पर बकायदा गाइड द्वारा विभिन्न प्रकार के हिंसक एवं शाकाहारी प्राणियों सरीसृप,जीव,नभचर पक्षियों तितलियों सहित अन्य गौर,वन भैंसा वन प्राणियों की जानकारी उपलब्ध कराई जाती है यहां बकायदा रेस्टोरेंट भी उपलब्ध है जहां स्वादिष्ट भोजन आर्डर पर उपलब्ध कराया जाता है चारो ओर मचान रूपी कक्षों का निर्माण नैसर्गिक वातावरण में निर्मित किया गया है मध्य में बच्चों के खेलकुट उपकरण फिसलपट्टी सहित गोल चकरी एवं अन्य उपकरण लगाए गए है जिसके मध्य ही हजारों वर्षीय विशाल बूढ़े बरगद के पेड़ मौजूद है जो वर्षों के इतिहास के साक्षी बने हुए है वे इसलिए भी कि यहां उनकी वृक्षों के शीर्ष से दाढ़ी नुमा निकली जड़ें आज भी जमीन को थामे अपना अस्तित्व बचाने संघर्षरत होती दिखाई पड़ती है करीब ही ऊंचे मिट्टी के निर्मित बांबी धार्मिक मान्यता की गवाही देते है परिसर में एक ओर गार्डन का रूप भी दिया गया है जहां लगे कुर्सी पर्यटकों के परस्पर विचार मन्त्रणा,और परिवार संग हंसी ठिठोली के साथ एन्जॉय कर प्रकृति का आनंद उठा सकते है यहां चारो ओर रंग बिरंगे फूलों से मनोहारी दृश्य निर्मित किया गया है मेरे बारे में सर्वाधिक ज्ञान एवं पर्यटकों के मनोरंजन के उद्देश्य से मिनी थिएटर भी निर्मित है जहां वन्य प्राणियों,प्राकृतिक से सन्दर्भित फ़िल्म दिखाई जाती है यहां नाटक प्रहसन का आयोजन भी किया जाता है इस मिनी थियेटर की संरचना आदिवासी कला से निर्मित कर उसे आकर्षक रूप प्रदान किया गया है मुख्य द्वार पर ही बंदरों चीते एवं गौर की विभिन्न मुद्राओं में भाव भंगिमा युक्त मूर्ति निर्माण किए गए है जो पर्यटकों को मेरी ओर आकर्षित करने पर्याप्त है इस संदर्भ में अधीक्षक कुदरिया साहब कहते है कि बार नवापारा एक विश्व प्रसिद्ध पर्यंटन स्थल है यहां स्थानीय पर्यटकों के अलावा देशी विदेशी सैलानियों का लगातार अवागमन रहता है पर्यटन स्थल बार वर्षा ऋतु जून से लेकर अक्टूबर में ही बंद रहता है तथा एक नवंबर से पन्द्रह जून तक खुला रहता है इस वर्ष सर्वाधिक पर्यटक बार नवापारा अभ्यारण्य में भ्रमण हेतु आए थे जो आपने आप मे एक रिकॉर्ड है वही परिक्षेत्राधिकारी कृपालु चंद्राकर का कहना है कि बार नवापारा पर्यटन स्थल विश्व विख्यात पर्यटन स्थल है यहां पर्यटक स्वच्छंद विचरण करते वन्य प्राणियों को मुक्त वातावरण में देखना किसी रोमांच से कम नही है राजधानी रायपुर सहित देश विदेश के पर्यटकों का यहां अनवरत आवागमन रहता है परिक्षेत्राधिकारी कृपालु चंद्राकर आगे बताते है कि संपूर्ण व्यवस्था और अभ्यारण्य की सुरक्षा की दृष्टिकोण से स्थानीय निवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वन विभाग द्वारा चक्र वृद्धि के अंतर्गत उन्हें लोन में दिया गया है तथा वे ही इसके रखरखाव सहित बहुत से निर्माण कार्यों का निष्पादन करते है यहां तक पर्यटकों के भ्रमण हेतु गाइड इत्यादि भी स्थानीय ग्रामीण ही होते है जिसका लाभ पर्यटक सफारी भ्रमण का लुत्फ उठाते है
सेवा निवृत्त हो चुके तथा वर्षों से बार नवापारा अभ्यारण्य की व्यवस्था को सम्हाले अनुभवी ऊर्जावान कर्तव्य निष्ठ बार पर्यटक ग्राम के प्रभारी पी.एल.मिश्रा ने बताया की छः वर्षों से पर्यटक ग्राम में मैनेजर के प्रभार में हूं तथा इसके पूर्व देवपुर विश्राम गृह में उप वन क्षेत्र पाल के पद से सेवा निवृत्त हुआ हूँ पर्यटक ग्राम बार के प्रभारी मिश्रा जी बताते है कि 34 कक्षों का पर्यटक ग्राम का सफल संचालन अनवरत जारी है यहां 300 रुपये से लेकर 800 रुपये तक श्रेणी अनुसार कक्ष उपलब्ध कराए जाते है भोजन में स्वादिष्ट और ताज़ा भोजन प्राप्त होता है तथा भ्रमण हेतु पूरा बार नवापारा क्षेत्र उपलब्ध है भविष्य में इसके और विस्तार किए जाने की संभवना व्यक्त की है उन्होंने बताया अधीक्षक कुदरिया साहब के आगमन के साथ ही यहां गार्डन,कक्षों इत्यादि में सुधार हुआ है इंटरकॉम में सुधार किया गया है साथ ही पर्यटकों को अधिक से अधिक सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे है पर्यटकों के मनोरंजन की दृष्टिकोण से इन्टरपीटीशन सेंटर है ओपन थियेटर है जहां ज्ञान,शोध, फोटोग्राफी,सहित वन्य प्राणियों और प्राकृतिक के ऊपर फिल्मों का प्रदर्शन किया जाता है शनिवार, रविवार,को स्थानीय कलाकारों द्वारा सुआ नृत्य का आयोजन भी पर्यटक ग्राम द्वारा आयोजित किया जाता है पर्यटकों का बार बार पर्यटन स्थल में आना इससे ज्ञात होता है कि उन्हें पर्यटन स्थल बार और पर्यटक ग्राम उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है
*मेरी कमियों को दूर करो सरकार*
जैसा कि मेरे प्रहरी एवं रख रखाव सुरक्षा के व्यवस्थापक मेरे बार नवापारा के वर्तमान पदस्थ अधिकारी अधीक्षक कुदरिया साहब एवं वर्तमान पदस्थ रेंजर कृपालु चंद्राकर जैसे अनुभवी और युवा जुझारु अधिकारियों ने जैसा बताया है कि कैम्पा मद से जारी नरवा प्रोजेक्ट कार्य हेतु कोई बजट प्राप्त नही हुआ जबकि मेरे पालनहार बलौदाबाजार वनमण्डलाधिकारी कृष्ण राम बढई साहब का कथन है कि छग वन जलवायु विभाग द्वारा कैम्पा मद से बहुत से कार्य किए गए है तथा तथा बलौदाबाजार वन मंडल अंतर्गत बार नवापारा मे भी नरवा प्रोजेक्ट का कुछ स्थलों में सफल क्रियान्वयन हो रहा है
परन्तु वर्तमान पदस्थ अधिकारियों के कथनानुसार कैम्पा मद से ऐसा कोई कार्य न होना बताया जाना बड़ी उहापोह की स्थिति निर्मित करती है अब मैं बलौदाबाजार वन मंडलाधिकारी कृष्ण राम बढ़ई की बात सही मानूं या मैदानी क्षेत्र में पदस्थ अधिकारियों की बातों को सत्य मानूं वास्तविकता क्या है ये तो वही जाने पर यह उतना ही कटु सत्य है कि मुझ अभागे को ऐसा कोई बजट अथवा राशि प्रदाय नही किया गया जिनसे चेक डेम के अलावा सुरक्षात्मक दृष्टि कोण से वनों के चारों ओर फेंसिंग,उबड़ खाबड़ गड्ढे,को समतली करण करवा कर आवागमन सुगम बनाया जा सके वनों के साथ मानव जीवन एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा की जा सके वर्तमान में मेरी सुरक्षा हेतु कोई भी उत्कृष्ट कार्य नही किया गया जिससे मेरा मन गर्वित हो सके क्योंकि गड्ढों में मुरुम भरना अलग बात है परन्तु इससे क्या आवागमन सहज सरल होगा
वही छग राज्य वन विकास निगम के रेंजर एम्ब्रोस एक्का साहब जो वानिकी कार्यों में बहुत ज्यादा पारंगत है तथा रायकेरा नर्सरी में उन्होंने अपना लंबा समय व्यतीत कर दिया तथा वर्तमान में वे बार से लगे रवान परिक्षेत्र के अधिकारी है उनका कथन था कि रवान क्षेत्र के इस ओर कुछ वर्ष पूर्व सड़क निर्माण किया गया था जिसका हजारों का भुगतान अब तक लंबित है मेरा सवाल उन अधिकारियों और वन कर्मचारियों से है जब मेरे अंचल में पर्यटन हेतु आए पर्यटकों से विभाग लाखों की आय अर्जित करता है छग वन विकास निगम मेरे सागौन पेड़ो का विरलन कर लाखों करोड़ों की आय अर्जित कर सकती है तो मेरे रख रखाव,सुरक्षा हेतु उक्त राशि का उपयोग क्यो नही किया जाता ? क्यों मेरे साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है ? क्योंकि इसलिए कि ..मैं केवल बार नवापारा अभ्यारण्य हूँ ?.. एक भ्रमण स्थल,.मेरी सौंदर्य को निहारने पर्यटको के साथ साथ विभाग के चोटी के अधिकारी अपने परिवार संग यहां केवल आ सकते है ...मेरे परिवार वन्य प्राणियों के दर्शन कर सकते है ... और वर्ष भर मेरे दर्शनार्थ एवं पर्यटन से विभाग को लाखों करोड़ों का आय देकर उनका और उनके परिवार का पोषण भी कर सकते है परन्तु मेरे रख रखाव सुरक्षा और विस्तार हेतु कोई राशि व्यय नही कर सकते वह इसलिए कि मैं केवल प्राकृतिक वरदान पर निर्भर बना रहूं और मेरे पर्यटन से विभाग लाखों करोड़ों आय अर्जित करता रहे.. मगर जाते हुए मैं यही कहना चाहूंगा कि मेरी यही प्राकृतिक सुंदरता उसकी वैभवता जब समाप्त होगी तभी विभाग मेरी सुध लेगा क्या? मैं केवल उन वन कर्मियों पर आश्रित हूँ जो केवल अपना कार्य कर कर्तव्य परायणता का दंभ भरते है मगर मेरे सुरक्षा,एख रखाव,और विस्तार से उनको कोई लेना देना नही मेरे वो दृश्य जो मैं महसूस करता हूँ हरे भरे हरीतिमा वातावरण के मध्य रिक्त विशाल भूभाग चटियल होते मैदानी स्वरूप में सूखते पीले और ज़र्द पत्ते की आभा विहीन क्षेत्र जिसे देखकर मुझे अपनी काया किसी कुष्ठ रोगी होने का अहसास कराते है परन्तु ऐसी स्थिति को देख कर भी ये अधिकारी उसे अनदेखा कर देते है .. ... जी हां, मेरे ऐसे भी कई क्षेत्र है जहां कच्चे पगडंडी रूपी सड़क से ही पूरा मैदान स्पष्ट नज़र आने लगता है क्या वहां बिगड़े वनों के सुधार के उद्देश्य से जिसके लिए विभाग लाखों की राशि जारी करती है उस राशि से अभ्यारण्य में वृक्षारोपण नही किया जा सकता ? या छग वन विकास निगम जो वार्षिकी विरलन के नाम पर मेरा विदोहन करती रहती है और प्लांटेशन लगाने के नाम पर बजट का रोना लेकर कब तक रोते रहेंगे कब तक वर्षों पूर्व पूर्वजो के द्वारा कराए गए प्लांटेशनों के ऊपर निर्भर रहेंगे ? एक प्रकार से छग राज्य वन विकास निगम एवं वन विभाग सरहदों में उलझ कर पहले आप पहले आप...कर मेरी कब तक उपेक्षा करते रहेंगे अब मुझे ऐसा प्रतीत होने लगा है कि मेरे पर्यटन स्थल के दर्शन हेतु आए पर्यटकों से अर्जित आय से ही ( संभवत रख रखाव और व्यवस्था राशि निकलती ही है ) यदि मेरे अस्तित्व एवं सौंदर्यता नही बढ़ाई जा सकती तो शनैः शनैः हो रहे मेरे दोहन और खोखले होते अस्तित्व के समापन से ऐसे आय का क्या लाभ ? जो मेरे प्रकृति को बचाने मेरी पहचान अक्षुण्य बनाए रखने में काम न आए ! और मुझ पर थोड़ी सी राशि भी व्यय नही किया जाए.अब तो थोड़ा संवेदनशील बन मेरे अस्तित्व बचने ..... मेरी इन कमियों को दूर करो सरकार.......












 
👍👍👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंअत्यंत ही सुंदर एवं मनमोहक.....
सादर धन्यवाद ssvnewstv प्रबंधक महोदय
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