सोमवार, 26 सितंबर 2022

वन विकास निगम में कब थमेगा रिश्वत खोरी,लेनदेन और भ्रष्टाचार का खेल

 वन विकास निगम में कब थमेगा रिश्वत खोरी,लेनदेन और भ्रष्टाचार का खेल

रायपुर(फॉरेस्ट क्राइम न्यूज़) छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम में रिश्वत खोरी,लेनदेन,भ्रष्टाचार और गड़बड़ घोटाले का खेल थमने का नाम ही नहीं ले रहा है आए दिन कोई न कोई नया प्रकरण जन मानस के समक्ष आते ही रहते है अब ताजा सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आर.जी.एम.प्रभात मिश्रा के ऊपर प्रोजेक्ट कार्यों के एवज में रिश्वत खोरी,कमीशन  राशि लेनदेन का मामला सामने आ रहा है बताया जाता है कि आर. जी.एम.प्रभात मिश्रा किसी भी प्रोजेक्ट की जारी की जाने वाली पी.एफ.आर.(परियोजना मांग पत्र)बगैर राशि लेनदेन के जारी नही करते एवम शासकीय मद राशि को कम कर देते है जिससे रेंज अफसरों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पढ़ रहा है ज्ञात हुआ है कि प्रोजेक्ट के प्रारंभ करने हेतु अनेक रेंज अफसरों डिप्टी रेंजर को उनके घर के दहलीज तक जाना पढ़ता है वहां उनसे लेनदेन, रिश्वत खोरी एवम सेटिंग कर के ही उन्हे  जारी की जाने वाली शासकीय मद की राशि प्राप्त होती है इससे चार परियोजना मंडल के अधिकारी खासे परेशान हो चुके है रायपुर का बार नवापारा परियोजना मंडल,कवर्धा परियोजना मंडल, अंतागढ़ रीजनल और पाना बरस परियोजना मंडल के डी. एम.से लेकर रेंज अधिकारी,डिप्टी रेंजर यहां तक अन्य छोटे कर्मचारी जिसमे फॉरेस्ट गार्ड अर्दली भी शामिल है उनके द्वारा लगातार कार्यों में निकाले  जा रहे नुक्ता चीनी से शासकीय कार्यों में जारी की जाने वाली आर्थिक व्यवस्था एक प्रकार से डगमगा गई है संपादित कार्यों में छानबीन,जांच कर कार्यवाही  के नाम से निगम कर्मियों को एक प्रकार से मानसिक,आर्थिक रूप से प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया जा रहा है इससे कई निगम कर्मी त्रस्त हो चुके है सूत्रों से मिले समाचार से यह भी ज्ञात हुआ है कि  आई एफ एस अधिकारी प्रभात मिश्रा के द्वारा डी.एम.से लेकर फॉरेस्ट गार्ड यहां तक अर्दली स्तर के छोटे कर्मियों की मिलने वाली राशि पर भी डाका डाल रहे है उनका भय दोहन कर उनसे राशि वसूलना कुछ शोभा नही देता यदि इसी प्रकार की भ्रष्ट कार्यशैली जारी रही तो मैदानी अमला कैसे प्रोजेक्ट को पूरा कर पाएगा पौधे क्रय से लेकर गड्ढे खनन तक एवम रोपण पश्चात उपचार एवम तीन से पांच वर्षों की मेंटनेंस राशि कहां से उपलब्ध करेगा  इसके लिए मैदानी अमले के समक्ष केवल वनों की अवैध कटाई और चोरी के कोई दूसरा रास्ता ही शेष नही है बताया जाता है कि आर.जी.एम.प्रभात मिश्रा साहब पूर्वानुमान लगाकर एक एक कार्यों का हिसाब लगा कर नवीन परियोजनाओं की दसों लाख की जारी की जाने वाली शासकीय मद की राशि को गुणाभाग कर घटा देते है तथा दो चार लाख का ही योजना बनाकर  परियोजना अधिकारियों को स्पष्ट कह देते है कि इन राशि में कार्य करना है तो करों नही तो किसी अन्य कर्मी को कार्य दे दूंगा ऐसी परिस्थिति में बहुत से मैदानी अमले मन मारकर कार्य को अंजाम देकर यहां वहां से मेंटनेस करते है नही तो कई कई प्रोजेक्ट तो इनके द्वारा बैठाए गए डिप्टी या अन्य निचले स्तर पद के कर्मचारियों से ही योजना पूर्ण करवा लेते है इससे सीधे सीधे उन्हे एक मुश्त लाखों की बड़ी राशि का लाभ प्राप्त हो रहा है और रेंज अधिकारी केवल चौकीदारी समतुल्य बिल बाउचर में हस्ताक्षर  करने विवश हो जाते है उनकी यह भ्रष्ट कार्यशैली को लेकर छग राज्य वन विकास निगम के बहुत से अधिकारी कर्मचारी बेहद क्षुब्ध है तथा कई ने तो कार्य न कर घर में बैठने की सोच रखी है आर.जी.एम. प्रभात मिश्रा की लगातार रिश्वत खोरी एवम भ्रष्ट कार्यशैली से उन्हेने अब तक लाखों करोड़ों की राशि का खेल खेलकर एकत्रित कर ली है और मैदानी अमले को केवल मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना के कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है बताया जाता है कि उनके उक्त व्यवहार से चारों डिविजन के परियोजना मंडल के अधिकारी भी काफी नाराज चल रहे है वही आर जी एम के द्वारा लगातार जारी की जाने वाली राशि में कटौती के कारण बहुत से कर्मी उनके घर की चौखट में शीश नवाने जाते है कि किसी तरह प्रोजेक्ट उन्हे मिल जाए तो कार्यों को गति दे सके परंतु मिश्रा साहब की कठोर प्रताड़ना वाली नीति और परियोजना में कांटा मारने के चलते बहुत से पी.आर. ओ.अपने आप को असहाय महसूस कर रहे है गौर तलब है कि निगम प्रमुख प्रबंध संचालक पी सी पांडे साहब वर्षांत माह दिसंबर में सेवानिवृत हो रहे है उनके आशानुरूप उन्होंने पूर्व में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए विभागीय कर्मियों के स्थान पर आई एफ एस अधिकारियों की नियुक्ति की थी ताकि प्रशासनिक व्यवस्था में कुछ कसावट लाई जा सके परंतु उनके विचार के ठीक उलट यहां आई एफ एस अधिकारी ही रेत से तेल निकालने में लगे हुए है जिससे विभाग की साख पर  दाग लगना स्वभाविक है वैसे भी मुख्यालय प्रबंधक लेखा पद में अंगद के पांव की भांति भोजराज जैन ने वर्षों से अपना पांव एक ही स्थान पर जमाए बैठे है तथा निगम को दीमक की भांति खोखला कर चुके है स्पष्ट करते चले कि यह वही वन विकास निगम है जो मध्यप्रदेश के अधीन था तब राज्य शासन को पच्चीस करोड़ से ऊपर लाभांश राशि से अनुग्रहित करता था आज स्थिति यह निर्मित हो गई है कि एक से डेढ़ करोड़ की लाभांश राशि शासन के जेब में आ रही है तो बाकी की राशि किसके जेब में जा रही है बताते चले कि स्व पोषित संस्था होने की वजह से यह स्वयं लाभ अर्जन कर कंपनी अर्थात निगम का संचालन करती है तथा लाभांश राशि से कुछ लाभांश राज्य सरकार को भी प्रति वर्ष प्रदान करती है परंतु ठीक इसके विपरित उपरोक्त राशि वर्ष दर वर्ष बढ़नी चाहिए थी मगर वन विकास निगम में उक्त लाभ अर्जन की राशि का ग्राफ लगातार गिरते ही जा रहा है   लोगों में चर्चा इस बात को लेकर होती है कि ये कैसा निगम है जो घाटे में चलने के बाद भी संचालित है अनेक निगम कर्मी यहां तक कहने से नही चूकते कि निगम को वन विभाग में मर्ज कर देना चाहिए इसकी मूल वजह,भोजराज जैन जैसे भ्रष्ट अधिकारियों का निगम में वर्षों से जमा रहना माना जा रहा है जो लगातार निगम को आर्थिक क्षति पहुंचा कर अपना घर भर रहे है आज भोजराज जैन ने सेवा में रहते हुए जितना आकुत धन अर्जित किया हुआ है शायद ही किसी निगम कर्मी के पास उतना धन होगा परिवार के नाम पर कई फ्लैट के अलावा खेत,जमीन,सहित कई अघोषित चल,अचल संपतियां उन्होंने अर्जित कर रखी है दैनिक वेतन भोगी कर्मी के पद से सेवा प्रारंभ करने वाले भोजराज जैन ने ऑडिट के नाम से लेकर स्थानांतरण,पदोन्नत,नौकरी लगाने के नाम तथा परियोजनाओ में एक एक एक गड्ढे के खनन के नाम पर निगम में ही भ्रष्टाचार की गहरी खाई खोद दी है  यहां विदित हो कि प्रति वर्ष वार्षिक ऑडिट के नाम से भोजराज जैन ने प्रत्येक परियोजना मंडल से लेखा शाखा अधिकारियों से लाखों की राशि वसूली की जाती है जिसकी राशि कहां जाती है यह आज तक ज्ञात नही हुआ उसी प्रकार कोटा पंडरिया परियोजना मंडल बिलासपुर में भी नौकरी के नाम पर लाखों की राशि लेकर अभ्यर्थियों को आज तक नौकरी में नही लगाया यही नहीं पदोन्नति,ट्रांसफर का खेल में तो वे लालम लाल हो गए है उनका ही अनुसरण आज आर.जी. एम.प्रभात मिश्रा भी कर रहे है और निगम के आर्थिक रीढ़ को क्षति ग्रस्त कर रहे है भोजराज जैन के संदर्भ में यह भी ज्ञात हुआ है कि विगत कुछ माह से उनका सीधा हाथ का कंपन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है अर्थात आंतरिक रूप से वे पूरी तरह अस्वस्थ एवम असक्षम हो चुके है  जिसकी वजह से उन्हें कागज में एक लाइन लिखने के लिए दूसरे का चेहरा देखना पडता है ऐसे में उन्हें कार्य में रखना कहां तक उचित है वे केवल उल्टे हाथ से हस्ताक्षर भर करने के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज कर लाखों का वेतन और शासकीय सुविधाएं प्राप्त कर रहे है वैसे भी ऐसे अधिकारी जो संविदा नियुक्ति में हो उसे किसी भी विभागीय दस्तावेज में हस्ताक्षर और निर्णय लेने का अधिकार नहीं है ऐसे में जो अक्षम,असहाय,रूपी हो वन नियम के अनुसार उसे ऐसे गरिमामयी पद से मुक्त कर देना चाहिए मानवीय संवेदनशीलता अपने स्थान पर है इसका यह आशय कतई नहीं कि केवल अनुभव एवम ट्रांसफर पदोन्नति के खेल खेलने और अवैध वसूली के नाम पर विभाग उन्हे लाखों का वेतन सहित अन्य विभागीय सुविधाएं क्यों प्रदान कर रही है यह समझ के परे है यही नहीं इनके अलावा कोठारे बाबू जैसे और भी अधिकारी है जो वर्षों से संविदा के नाम पर निगम मुख्यालय में कुंडली मारकर बैठे है ऐसे अधिकारियों को तत्काल सेवा पद से मुक्त किया जाना उचित है  क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है  उसके विपरीत जाने से केवल  क्षति का ही सामना करना पड़ता है जिसका साक्षात उदाहरण वन विकास निगम की वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखकर लगाया जा सकता है  बहरहाल, निगम में ऐसे  बैठे भ्रष्ट अधिकारियों के कार्यशैली को संज्ञान में लेकर उन कृत्यों पर रोक लगाना भी आवश्यक हो गया है जिनसे विभाग की छबि धूमिल हो रही हो

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