गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

हाथियों की बढ़ती धमक के बीच महासमुंद वन मंडल द्वारा जनहित में जागरूकता प्रसार की कवायद

 हाथियों की बढ़ती धमक के बीच महासमुंद वन मंडल द्वारा  जनहित में जागरूकता प्रसार की कवायद 

छग वनोदय पत्रिका  में इसी माह शीघ्र प्रकाशनार्थ

रायपुर (छग वनोदय) विगत कुछ वर्षों से छग प्रदेश में हाथियों की धमक बड़ी है तथा वनों में निवासरत वनवासी, वनादिवासियों सहित मानव जीवन के लिए एक बहुत बड़ा खतरा भी बढ़ गया है इसके रोक थाम के लिए छग शासन का वन विभाग विभिन्न कार्ययोजना निर्माण कर सुरक्षा के जतन भी कर रहा है परन्तु दिनोंदिन बढ़ती हाथियों की संख्या ने तथा लगातार हो रहे मानव हाथी द्वंद से होने वाली जानमाल की क्षति पर कोई कमी नही आई है एक ओर छग वन विभाग लेमरू प्रोजेक्ट के माध्यम से इनके संरक्षण,सहित प्राशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है तो इसके पूर्व  भी महासमुंद वन मण्डल अंतर्गत कुमकी हाथी के माध्यम से इनके नियंत्रण हेतु दक्षिण  भारत से प्रशिक्षित महावतों को लाकर प्रशिक्षित  हाथियों के माध्यम से घुमंतू हाथियों को नियंत्रण करने हेतु लंबे समय तक बार नवापारा वन क्षेत्र में करोड़ों की राशि लगाकर कैम्प लगाया गया था परन्तु उक्त प्रोजेक्ट के सारगर्भित परिणाम परिलक्षित नही हुए  फिर भी वन विभाग प्रवासी हाथियों के रहवास, सुरक्षा के लिए  कटिबद्ध है साथ ही आम मानव जीवन की सुरक्षा भी उनका मूल कर्तव्य बना हुआ है इसके चलते  आम जन में जागृति पैदा करने के उद्देध्य से विभाग अनेक माध्यम अपना रहा है इसी कड़ी में महासमुंद वन मंडल जो सर्वाधिक गजदल परिवार से प्रभावित क्षेत्र है वहां के युवा ऊर्जावान डीएफओ श्री पंकज सिंह राजपूत द्वारा  मानव हाथी द्वंद नामक लिखित ब्रोसर एवं स्कैच के जरिये जन जगृति लाने का विशेष प्रयास प्रारंभ कर दिया  है साथ ही हाथी प्रभावित वन क्षेत्रों में भी  महासमुंद वन मंडल के अधिकारी,कर्मचारियों के द्वारा समय समय पर वन परिक्षेत्रों में कैम्प लगा ग्रामीणों से रूबरू होकर उग्र मदमस्त हाथियों से सुरक्षा और बचाव हेतु जागरूकता लाई जा रही है हाथियों की लगातार वृद्धि और वन क्षेत्रों में धमक का मूल कारण डीएफओ पंकज राजपूत साहब कहते है कि घटते वन क्षेत्र एवं वनोपज की बड़ी कमी के कारण गज दल अपनी भूख प्यास मिटाने ऐसे सघन वन क्षेत्रों का विचरण कर मानव द्वारा  उपज फसल, धान,अन्य खाद्य पदार्थ इत्यादि की तलाश में वे छग प्रदेश के वन क्षेत्रों में सक्रिय हो गए है इनका आगमन विशेष रूप से झारखंड उड़ीसा बॉर्डर है जहां से इनका प्रवेश होता है इसके लिए ऐसे कोई उपाय नही किए गए कि उन्हें प्रदेश वन क्षेत्रों के आगमन पर रोका जा सके उनका कथन है कि जहां  तक वन शृंखला  का विस्तृत प्रसार है ये अपनी क्षुधा शांति हेतु अन्य राज्यों में प्रवेश कर जाते है फिर  वनों में मानव उपस्थिति तथा उनके विरुद्ध मानव जाति की प्रतिक्रिया शोर शराबे एवं भगदड़ की स्थिति में गजदल के मुखिया जो मादा हथिनी होती है उसके द्वारा दल में मजूद सदस्यों बच्चों की सुरक्षा को लेकर वह अत्यंत क्रोधित हो जाती है तथा परिवार की सुरक्षा को लेकर मानव जीवन पर आक्रमक होकर जानमाल को क्षति पहुंचाती है डीएफओ महासमुंद श्री पंकज राजपूत आगे कहते है कि मानव जीवन को सुरक्षित रखने के लिए गजदल अथवा हाथियों से एक निर्धारित दूरी रखना अनिवार्य है क्योंकि यह प्राश्रित अथवा पालतू वन्य प्राणी नही है इसलिए कभी भी वह आक्रमक हो सकता है वही हाथी जब हमलावर होता है तब वह आक्रमण के पूर्व कुछ संकेत देता है जिसे समझना अति आवश्यक होता है जैसे वह  अपने बड़े सूपा आकार कानों को हिलाते रहता है परन्तु जब वह आक्रमक रुख में होता है तब वह कानों को सीधे कर लेता है  एक पांव को उठा कर या धूल उड़ाकर सामने खड़े मानव को  चुनौती देता अपने विशाल शीश को तेजी से ऊपर नीचे करता है तथा तेजी से चिघाड़कर अपनी पूंछ सीधी कर लेता है ऐसी परिस्थिति देखकर तुरन्त वहां से पलायन करने उचित है नही तो वह सूंड में लपेट कर मानव जीवन की इहलीला समाप्त कर सकता है  वन मण्डलाधिकारी श्री पंकज राजपूत बताते है कि मदमस्त नर गज के संदर्भ में अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि जब वह कामोत्तेजक अवस्था मे होता है तब वह मदमस्त चाल चलता है तथा उसके आंख एवं कानो से पतला द्रव्य अनवरत बहता रहता है ऐसी परिस्थिति में वह अपने से दोगुने शक्तिशाली हाथी से लड़ने की क्षमता रखता है जब उपरोक्त परिस्थिति में मदमस्त हाथी दिखे तो तत्काल लंबी दूरी बना लेना उपयुक्त रहता है डीएफओ पंकज राजपूत आगे बताते है कि मादा हाथी सदैव अपने परिवार के साथ रहती है जिनमे छोटे शावक, नर मादा भी रहते है परिवार का संचालन स्वयं मादा हथिनी करती है यदाकदा कुछ सदस्य अपने परिवार से कुछ दिन अलग भी हो जाते है पश्चात पुनः जुड़ जाते है इनमें सूंड के माध्यम से सूंघने की अद्भुत क्षमता होती है गन्ध तथा चिंघाड़ तथा ऐसे संकेत जो केवल हाथी परिवार के सदस्यों को लगभग दस से सोलह किलोमीटर तक अपने बातों का आदान प्रदान कर सकते है संभवतः दूर हुए हाथी परिवार से लगातार सांकेतिक ध्वनि के जरिये संपर्क में रहते है जिसका भान मनुष्यो को कतई नही रहता तथा  अपने परिवार को इशारा करते रहते है मादा हाथिनी के पारिवारिक मोह का मूल कारण उसके 5 वर्षों के लंबे प्रजनन  की वजह से होती है क्योंकि बीस से बाइस माह तक गर्भ धारण रहता है पश्चात तीन वर्षों तक अपने शावक को यह स्तनपान कराती है पांच वर्ष  पश्चात ही यह दुबारा प्रजनन योग्य होती है यही कारण है कि उसके शावक उसे अत्यंत प्रिय होते है तथा उनकी सुरक्षा को लेकर ही वह सदैव आक्रमक रुख अख्तियार किए रहती है यदि नन्हे शावक के साथ  मादा हथिनी दिखे तो तत्काल आसपास के लोगों को सावधान कर अपने आप को सुरक्षित कर लेने में ही भलाई  है वही नर हाथी के संदर्भ में यह बताया कि वह एकांत प्रिय  स्वच्छंद होता है तथा हथिनी से आकर्षण की वजह से वह दल में सम्मिलित होता है  उसका मूल उद्देश्य वंश वृद्धि ही होता है पश्चात वह दूसरे अन्य नर हाथियों  के दल में ही अधिकांश जीवन व्यतित करता है हालांकि नर हाथी के संबन्ध में यह भी ज्ञात हुआ है कि वह 11 से चौदह वर्ष की आयु में अपने परिवार से पृथक हो जाता है तथा पारिवारिक संबध स्थापित न हो वह स्वयं अन्य दल में शामिल होकर मादा हथिनी से संबन्ध स्थापित कर वंश वृद्धि करता है यही परिस्थिति मादा  हथिनी की भी है उसे भी 11 वर्ष की उम्र में गर्भ धारण की क्षमता होती है परन्तु पृथक  हुए नर हाथी की लगभग 30 वर्ष की आयु जब तक नही होती तथा वह पूर्णतः  वयस्क नही हो जाता तब तक  मादा हथिनी प्रजनन हेतु उसे स्वीकार नही करती यही कारण है कि ऐसे हाथी अन्य नर हाथियों के दल में पृथक विचरण करते है तथा उम्र दराज हाथी नए सम्मिलित हुए हाथी को अनुशासन,सुरक्षा इत्यादि सिखाते है अकेले विचरण करने वाले हाथी सदैव बिगड़ैल,गुस्सैल,की श्रेणी में आते है ऐसे बिगड़ैल एवं गुस्सैल हाथियों से  वन विभाग द्वारा जारी सुरक्षा सूत्र मानने पर भी जोर दिया गया है श्री पंकज राजपूत का कहना है कि यदि हाथी वन क्षेत्र परिसर में निवासरत वनवासी के गृह ग्राम में आते है तो ऐसे ग्राम क्षेत्र में माकूल विधुत व्यवस्था होनी चाहिए  ताकि तीव्र प्रकाश की रौशनी में वह क्षेत्र में घुसने क्षति पहुंचाने में असमर्थ होता है पटाखे के स्थान पर  हाथों या लोहे के थाली के माध्यम से समान रूपता में ध्वनि उत्प्न्न करना चाहिए,तेज टार्च की रौशनी उनकी आँखों मे बंद चालू करने से आंखे चौंधियाने पर भी ये वापस हो जाते है यदि ऊंचे ढलान क्षेत्रों में हाथियों से सामना हो जाए तो ऊंचाई की ओर भागने की बजाए ढलान क्षेत्र की ओर भागे क्योंकि वह ढलान क्षेत्र में असन्तुलित हो जाता है तथा उसकी गति भी धीमी हो जाती है इससे आपकी सुरक्षा में समय मिल जाता है जनधन क्षति होने की परिस्थिति में बदले की भावना से उत्प्रेरित न होकर इसकी सूचना तत्काल वन विभाग को दें ताकि शासन द्वारा निर्धारित मुआवजा से जनधन क्षति की भरपाई हो सके फसलों के सुरक्षा हेतु विद्युत संचरण हेतु विद्युत विभाग द्वारा  लगाए गए बिजली तारों के टूटने अथवा खुले तारों के होने पर इसकी सूचना तत्काल विभाग को दे ताकि अज्ञात व्यक्ति या वन्य प्राणी के  संपर्क में आने से रोका जा सके साथ ही फसलों की कटाई के पश्चात प्लास्टिक बैग अथवा बोरे में इसे मजबूती से बंद कर तहखाने नुमा स्थान में रखा जाए ताकि उसकी गन्ध से हाथी दल खाद्य पदार्थ तक पहुंच न सके समय समय पर इन बचाव और सुरक्षा हेतु ग्रामीणों द्वारा लगाए जाने वाले चौपाल बैठक में चर्चा होनी चाहिए ताकि उनमें जागरूकता आए तथा अपनी सुरक्षा हेतु तत्पर रहे साथ ही हाथी आगमन की सूचना मिलते ही ग्राम के वृद्धों और बच्चों की सुरक्षा पूर्व से ही निर्धारित कर ले ताकि वे सुरक्षित रहे डीएफओ महासमुंद श्री पंकज राजपूत ने आगे बताया कि हाथी प्रभावित वन क्षेत्रों में तेंदू पत्ता एवं अन्य वनोपज संग्रहण हेतु कतई न जाए तथा शोर शराबे वाले,ध्वनि विस्तारक यंत्र वाले वाहन इत्यादि का संचालन न करे इससे हाथी आक्रोशित,विचलित हो कर आक्रमक हो सकता है यदि वह करीब हो तो उस पर मशाल अथवा आग्नेय वस्तुओं का प्रयोग कतई न करें इससे वह आपके जान के लिए घातक हो सकता है संध्या एवं प्रातःकालीन नित्य क्रिया अथवा आवागमन उस क्षेत्र में न करे जहां उसके रहवास की संभावना है क्योंकि यह समय उसके भोजन एवं चराई का होता है इसलिए उसका आवागमन निरन्तर बना रहता है प्रातःकाल पश्चात वह अपने आप को सघन वन क्षेत्र के सुरक्षित स्थान को चला जाता है अतएव उक्त काल सावधानी बरतने की होती है डीएफओ महासमुंद वन मंडल ने आगे बताया कि अभी बडी संख्या में हाथी दल प्रदेश के भिन्न भिन्न वन मण्डल क्षेत्रों में सक्रिय है इसलिए समस्त कार्य दिन में ही करें  वन क्षेत्रों में रात्रिकालीन यात्रा आवागमन से स्वयं को रोके ये समयानुसार पुनः क्षेत्र से पलायन कर अपने मूल स्थल की ओर कूच कर जाते है इसलिए सावधानी एवं सुरक्षित रहने पर उन्होंने जोर दिया है 

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