धार्मिक आस्था के बीच वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए दस हजार हेक्टेयर में किया फलदार वृक्षारोपण
छग वनोदय पत्रिका में प्रकाशनार्थ
रायपुर (छग वनोदय) महासमुंद वन मंडल के अंतर्गत स्थित बागबाहरा परिक्षेत्र कहने को तो यहां प्राकृतिक ने अपनी अद्भुत छटा बिखेर रखी है ऊंचे ऊंचे गगन चूंबी पर्वत माला उसमे वर्षों से सीना ताने इतिहास का साक्ष्य देते जटाधारी पीपल,बरगद, के पेड़ उनके आस पास छोटे छोटे लगे प्राकृतिक पौधों में रंग बिरंगे कुसुम मानों उसकी वैभवता और प्राकृतिक सौंदर्यता को श्रृंगारित करने अपनी विशेष भूमिका निभा रहे हो साथ ही सावन की रिमझिम वर्षा से स्नान कर जैसे प्रकृति पुलकित हो हरित श्रृंगार में शरद ऋतु के आगमन से चहुओर फैली श्वेत ओस की मद्धम आभा में सूर्य उदय की पहली किरणे जब धरती पर स्थित प्राकृतिक के मनमोहक विहंगम स्थल पर पड़ती है तब स्वर्ग की परिकल्पना को बल मिलता है ऐसी नैसर्गिक प्राकृतिक छटा को देखते ही इंसानी बाल मन गौरैय्या चिड़िया की भांति फुदकने लगता है हृदय स्पंदन हिरण की भांति चंचल होकर उछलने लगता है तथा नैसर्गिक पर्वत शिखर को और करीब जा कर उसकी विशालता वैभवता का दर्शन करने मचलने लगता है जब निकट पहुंच कर पर्वतों के मूल से लेकर शिखर की ऊंचाई नापने आसमान की ओर सर उठा कर उसकी वैभवता का आंकलन करता है तब मर्म मस्तिष्क पर यह शब्द स्वतः गुंजयमान होने लगता है कि...आज आया है ऊंट पहाड़ के नीचे ...अर्थात मनुष्य ईश्वर संरचना के विविध,विशाल विकराल स्वरूप प्रकृति के उक्त प्रतीकात्मक दृश्य देखकर उसके समक्ष स्वयं को बौना होने का अहसास करता है तब उसे भान होता है कि ईश्वरीय दिव्य शक्ति के समक्ष उसका कद कितना छोटा है तब वह ईश्वर के अलौकिक दिव्य शक्ति के समक्ष नत मस्तक होता है परन्तु यही ईश्वरीय दिव्य आभा एवं प्राकृतिक की अद्भुत छटा का अविश्वसनीय विहंगम दृश्य का लाभ जब एक ही स्थल पर हो जाए तब मानव का उत्साह दोगुना हो जाता है महासमुंद वन मंडल अंर्तगत बागबाहरा परिक्षेत्र में कुछ ऐसे ही दृश्य दृष्टिगोचर होते है जिसमे प्राकृतिक एवं धार्मिक आस्था का ऐसा समन्वय,और सामंजस्य निर्मित हो जाता है जिसकी केवल परिकल्पना भर की जा सकती है परन्तु यथार्थ से जब मानव का सामना होता है तब उसकी आंखे आश्चर्य विस्मित रह जाती है ऐसा अद्भुत नजारा देखने दूर दूर से श्रद्धालु परिक्षेत्र में आते है जहाँ एक छोर के गगनचुंबी विशाल पर्वत शिखर पर माता खल्लारी का ऐतिहासिक मंदिर विराजमान है तो वही दूसरी पर्वत माला में चंडी का विशाल मंदिर है जो समुद्र तट से 200 फीट ऊपर की ऊंचाई पर विधमान है माता चंडी के उक्त मंदिर में प्रतिदिन हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते है तथा अपनी मनौती मांगने और उतारने आते है वही माता चंडी मंदिर परिसर क्षेत्र में जहां भक्त,श्रद्धालु का प्रातःकाल से लेकर रात्रि तक अनवरत तांता लगा रहता है तो दूसरी ओर सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र बिंदु वहां स्वंछन्द विचरण करते वन्य प्राणी भालू है जिनकी लगातार आमद वर्षों से हो रहा है ऐसा ज्ञात होता है कि ये स्वयं माता के अटूट भक्त है जो नियमित माता के चरणों मे अपना शीश नवाते है यही वजह है कि माता चंडी के दर्शन लाभ के साथ साथ अनेक भक्त मंदिर परिसर में वर्षों से आ रहे भालुओं के दर्शनार्थ हेतु भी उत्सुक दिखते है तथा भक्तिभाव सहित भालुओं का साक्षात करीब से दर्शन करना आगन्तुक भक्तों को रोमांचित करता है ऐसी अविस्मरणीय परिकल्पना के साक्षात्कार के लिए बहुत से श्रद्धालु बागबाहरा स्थित मां चंडी मंदिर परिसर में पहुंचते है तथा भालुओं को चना फल्ली,प्रसाद नारियल फल इत्यादि खिलाते है इन्ही खाद्य पदार्थ की लालसा की वजह से भोजन की तलाश में भालुओं की संख्या में अनवरत वृद्धि देखी गई
श्री पंकज राजपूत वन मण्डलाधिकारी महासमुंद
-------------------------------------------------------------उनके लगतार मंदिर परिसर आना तथा भक्तों के द्वारा दी जाने वाली खाद्य वस्तुओं के साथ मानव संपर्क से वन्य प्राणियों में बढ़ते संक्रमण और जान को खतरा का ध्यान रखते हुए महासमुंद वन मंडल द्वारा इनके संरक्षण,संवर्धन, हेतु कार्ययोजना बनाकर इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की अद्भुत पहल की गई है इस संदर्भ में वन मण्डलाधिकारी श्री पंकज राजपूत जिनकी दूरदर्शी सोच ने वन्य प्राणी भालुओं की संरक्षण में न केवल वरदान साबित हो रहा है बल्कि उनके आहार विहार,रहवास, की चिंता करते हुए बागबाहरा परिक्षेत्र स्थित मां चंडी मंदिर परिसर में लगभग दो किलोमीटर से अधिक मंदिर परिसर को चैन लिंक फेंसिंग से सुरक्षित करवाया बल्कि उनके क्षुधा शांति हेतु लगभग दस एकड़ वृह्द पर्वतीय क्षेत्र में 11 हजार फलदार मिश्रित पौधों का रोपण भी करवा दिया वर्ष 2021-22 में राज्य शासन के द्वारा जारी कैम्पा मद से कराए गए उक्त अद्भुत मिश्रित प्रजाति के फलदार वृक्षरोपण कार्य से महासमुंद वन मण्डल के डीएफओ श्री पंकज राजपूत की चारों ओर खूब प्रशंसा हो रही है केवल बागबाहरा परिक्षेत्र में भिन्न भिन्न प्रकार के फलदार वृक्षारोपण कार्य करवाए जाने के पीछे का मन्तव्य ज्ञात करने पर उन्होंने बताया कि इसके पीछे वन्य प्राणी भालुओं की सुरक्षा उनके आहार विहार एवं संरक्षण,संवर्धन की दृष्टि कोण से लगभग दस हेक्टेयर भूभाग में ग्यारह हजार फलदार वृक्षों का सफल असिंचित वृक्षारोपण इसी वित्तीय वर्ष 2021-22में कक्ष क्रमांक 131 में करवाया गया है जिसमे आम,जाम,जामुन, बेर,कटहल, इमली, बेहड़ा, तेंदू,सहित अनेक वनोपज फल का सफल रोपण किया गया फलदार वृक्षों के रोपण से एक तो वर्तमान में उपस्थित लगभग सात भालुओं को उन्हें प्राकृतिक रूप से आहार प्राप्त हो सकेगा साथ ही मानव एवं वन्य प्राणियों में एक निश्चित दूरी निर्मित होगी हालांकि वर्तमान में मानव वन्य प्राणी संपर्क से दूरी बनाए रखने हेतु दो किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में मजबूत दीवार निर्माण कर चैन लिंक फेंसिंग कार्य करवाया है जिससे भालुओं की सुरक्षा का दायरा भी बढ़ गया है महासमुंद वन मण्डलाधिकारी श्री पंकज राजपूत का कथन है कि वर्षों से बागबाहरा परिक्षेत्र में भालू विचरण कर रहे है तथा वे घटते वन एवं निरन्तर मानव द्वारा निर्मित कांक्रीटीकरण के चलते इनके आहार विहार में व्यापक प्रभाव डाला है लगातार वनों के विदोहन से तथा सिमटते वन क्षेत्र के कारण वन्य प्राणी अपनी भूख प्यास मिटाने आबादी क्षेत्र का रुख कर रहे है जिसके चलते मानव द्वारा किए जाने वाले छेड़छाड़,एवं शरारत से स्वच्छंद विचरण करने वाले वन्यप्राणी अपना आपा खोकर मानव जीवन के लिए घातक साबित हो सकते है यही वजह है कि इनके लिए प्राकृतिक वातावरण निर्मित करने के उद्देश्य से सिकुड़े,सिमटे वनों का विस्तार कर प्रकृतिक वातावरण निर्मित किया जा रहा है तथा दस हेक्टेयर भूमि में ऐसे चयनित पौधों का रोपण किया जा रहा है ताकि उन्हें प्राकृतिक रूप से भोजन इत्यादि प्राप्त हो सके इस लिए ही परिक्षेत्र मे फलदार,छायादार वृक्षों का सफल रोपण कार्य संपादित किया गया है ताकि उन्हें नैसर्गिक,प्राकृतिक वातावरण में रहने का अहसास हो सके बागबाहरा परिक्षेत्र के ऊंचे पर्वत शिखर पर माता चंडी मंदिर के समीप स्थित कक्ष क्रमांक 131 में लगाए गए फलदार पौधा रोपण की उन्होंने प्रशंसा करते हुए बताया कि बागबाहरा परिक्षेत्राधिकारी एवं मैदानी अमले ने ऐसे पर्वतीय क्षेत्र में चुनौती पूर्ण कार्य को अंजाम दिया यह सर्वाधिक हमारे लिए संतोषप्रद कार्य है
श्री विकास चन्द्राकर परिक्षेत्राधिकारी बागबाहरा
------------------------------------------------------------रोपण कार्यों को जानने जब महासमुंद वन मण्डल अंतर्गत बागबाहरा वन क्षेत्र के परिक्षेत्राधिकारी श्री विकास चन्द्राकर जो युवा एवं धर्मिक प्रवृत्ति के साथ, आधुनिक, विचारधारा भी रखते है तथा वनों के संरक्षण,संवर्धन में भी विशेष रुचि रखते है उनसे मिलकर रोपण कार्यों के संदर्भ में पूछा गया तब उन्होंने बताया कि क्षेत्र में फलदार पौधों का रोपण किया जाना वन्य प्राणी भालुओं के रहवास,भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित करना मुख्य उद्देश्य है
श्री चुकेश ध्रुव परिसर वन रक्षक
---------------------------------------------------------------क्योंकि भोजन की अल्पता एवं लगातार भक्तों,श्रद्धालुओं द्वारा वितरित प्रसाद ने भालुओं के विचारधारा को परिवर्तित कर दिया अब भालू अपने निश्चित समय पर उपस्थित होकर प्रसाद ग्रहण करता है तथा कुछ समय विश्राम कर अन्यंत्र कूच कर जाता है परिक्षेत्राधिकारी विकास चन्द्राकर साहेब बताते है कि भालुओं का रहवास क्षेत्र आसपास ही पांच दस किलोमीटर पर्वत क्षेत्र के आसपास बन गया है तथा अब तक उसने किसी मानव भक्तों को जानमाल की हानि नही पहुंचाया है फिर भी विभाग का यह प्रयास है कि मानव निर्मित भोजन अथवा प्रसाद से उन्हें दूर रखा जाए भक्तों,श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए आहार,प्रसाद के निरन्तर उपयोग से उसके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है इसके लिए विभाग द्वारा उसे प्राकृतिक वन जैसा वातावरण, वनोंपज से प्राप्त उसके रुचिकर फल फूल आहार एवं उसके स्वछंद विचरण हेतु विहार जैसी परिस्थिति निर्मित कर सुरक्षा की दृष्टिकोण से दस हेक्टेयर भूभाग में ग्यारह हजार फलदार पौधों का रोपण किया गया जो शत प्रतिशत सफल है रोपण किए गए पौधे के संदर्भ में जब जानकारी ली गई तब श्री चंद्रकार ने बताया कि चट्टानी एवं रेतीले भूभाग में रोपण करना बहुत बड़ी चुनौती पूर्ण कार्य था इसके लिए पहाड़ी क्षेत्र स्थल को साढ़े चार फीट गड्ढा किया गया पश्चात रेती मिश्रित मिट्टी में चुना मिलाया गया जिससे उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ी तथा आज पांच माह की अल्पवधि में उसके आश्चर्यजनक परिणाम देखने मिले आज रोपित फलदार पौधे बड़ी तीव्रता से सर्वाइव कर रहे है वरना चट्टानी रेतीले भूभाग में वृक्षों का उगना केवल ईश्वरीय शक्ति के हाथ मे ही है परन्तु हमने असंभावित,चुनौती पूर्ण कार्यों को कर दिख़या जो सबसे बड़ी उपलब्धि है कथित कक्ष क्रमांक 131 में कराए गए वृक्षारोपण के संदर्भ में उन्होंने आगे बताया कि सफल वृक्षारोपण कार्य को देख कर महासमुंद वन मण्डलाधिकारी श्री पंकज राजपूत साहब भी काफी प्रसन्न हुए तथा कार्यों की भूरी भूरी प्रशंसा की
वन्य प्राणी भालू
------------------------------------------------------------- वही क्षेत्र में मधु मक्खी पालन हेतु भी प्रयास किए जाएंगे जिससे शहद इत्यादि की उत्पत्ति होगी इसके लिए डीएफओ पंकज राजपूत साहब के दिशा निर्देश पर ही कार्य किया जाएगा शहद जैसा तरल पदार्थ भी भालुओं के प्रिय भोजन में शामिल है इसके अलावा रोपे गए फलदार वृक्ष के फल भी भविष्य में उनके आहार के लिए पर्याप्त होगा पर्याप्त भोजन खाद्य सामग्री मिलने पर उसकी आमद ओ रफ्त मंदिर परिसर में कम होगी इससे उसकी सुरक्षा,एवं, संरक्षण भी हो पाएगा बागबाहरा स्थित
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मां चंडी मंदिर परिसर में भालुओं की सुरक्षा में तैनात महेश चन्द्राकर उर्फ मिंटू से मिलने पर बताया कि विभाग से मेरे अलावा अन्य विभागीय कर्मचारियों की ड्यूटी लगी रहती है तथा एकजुटता से पब्लिक एवं वन्य प्राणियों की एक निर्धारित दूरी तय की जाती है ताकि मानव हाथों से निर्मित कोई खाद्य पदार्थों का सेवन से उन्हें सुरक्षित किया जा सके पेशे से मैकेनिक रहे महेश उर्फ मिंटू चंद्रकार ने बताया कि वे विगत पांच वर्षों से विभागीय ड्यूटी निभा रहे है तथा उनका एवं भालुओं का एक रिश्ता सा बन गया है वे ही उनके आगमन पर मूंग फल्ली ,फल इत्यादि देते है तथा वे उन्हें प्रिंस,लव,कुश,छोटा,छोटी, नाम से पुकारते है उनके द्वारा मानव पर किसी प्रकार के खतरे के सबन्ध में बताते है कि अधिक भीड़ देखकर वे थोड़ा अपना आपा खोने लगते है परन्तु विभाग द्वारा एक किलोमीटर मंदिर परिसर में मजबूत लोहे का सुरक्षा बाड़ा निर्माण करवाया गया है वही आठ किलोमीटर के दायरे को दस फीट ऊंचाई बाउंड्री वॉल एवं चैन लिंक फेंसिंग कराई गई है ताकि किसी अन्य क्षेत्र से वह प्रवेश न कर सके तथा मंदिर परिसर क्षेत्र में यत्र तत्र घूम रहे भक्तों को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचा सके महेश उर्फ मिंटू चन्द्राकर ने सुरक्षा कर्मी ने आगे बताया कि वे वन्य प्राणियों की रेस्क्यू कार्य भी करते है तथा जख्मी हालत में मिले वन्य प्राणीयों का उपचार भी डॉ. की सलाह पर करते है उनके इस साहसी कार्य के लिए भय नही लगने पर वे कहते है कि प्रेम की भाषा मानव ही नही बल्कि मूक वन्य प्राणी भी समझते है बस इन्हें भी कभी थोड़ा पुचकार कर देखों ये भी आपके प्रेमी बन जाएंगे उनके कथन में भी वास्तविकता की छलक तब देखने मिली जब भालू एक साथ मंदिर परिसर में प्रवेश किए तब भालुओं को उनके नाम से संबोधित करते हुए उनके प्रतिदिन की रूटिंग के हिसाब से दौड़ दौड़ कर पानी टँकी में हाथ से पानी को खल बलाना,तथा उन्हें थैली भर मूंग फल्ली बीज देना , मानो ऐसा ज्ञात हो रहा था जैसे ये कोई जंगली जानवर नही बल्कि पालतू भालू है
 
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